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श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध, (भाग-5)

श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध, (भाग-5)  ज्ञान अमृत है। जिसे पढ़ने , सुनने व सुनाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्री कर्दम जी द्वारा अपनी नौ कन्याओं का विवाह एवं भगवान कपिल जी की जन्मकथा अत्यंत ही मोक्षदायिनी है।

श्री कर्दम जी का मोक्षपद को प्राप्त करना तथा भगवान कपिल द्वारा माता देवहूति को तत्वज्ञान प्रदान करने की कथा है ।

इसमें आप पाएंगे-

  1. भगवान कपिलदेवजी के जन्म की कथा।
  2. श्री कर्दमजी द्वारा कन्याओं का विवाह।
  3. कैसे मोक्षप्राप्ति हुई कर्दमजी को।
  4. माता देवहुति को तत्वज्ञान।
  5. मोक्षप्राप्ति

1-भगवान कपिल देव जी का जन्म! Birth of Lord Kapil Dev ji

  • कन्याओं की उत्पत्ति के पश्चात कर्दमजी प्रतिज्ञा अनुसार सन्यास आश्रम ग्रहण कर वन जाना चाहते थे।
  • तब देवहुति ने कहा; प्रभु इन कन्याओं के लिए वर ढूंढने होंगे तथा वन में मेरे जन्म मरण व शोक को दूर करने के
  • लिए कोई होना चाहिए। श्रीकर्दमजी को भगवान विष्णु का कथन याद आया, उन्होंने देवहूति से कहा
  • तुम्हारे गर्भ में अविनाशी भगवान विष्णु स्वयं पधारेंगे। और मेरा यश पढ़ाएंगे।
  • तथा ब्रह्म ज्ञान का उपदेश करके तुम्हारे हृदय की अंधकार मय ग्रंथि का छेदन करेंगे। पति के यह वचन सुनकर ;
  • देवहुति भगवान पुरुषोत्तम की आराधना करने लगी। बहुत समय बाद देवहूति के गर्भ से भगवान कपिल प्रकट हुए।

2- श्रीकर्दमजी द्वारा कन्याओं का विवाह! Marriage of girls by Shrikardamji!

  • ब्रह्मा जी को यह मालूम हो गया था कि साक्षात परम ब्रम्ह भगवान विष्णु ही सांख्यशास्त्र का उपदेश देने,
  • अपने विशुद्ध सत्वमय अंश में अवतीर्ण हुए हैं। ब्रह्मा जी ने कहा; प्रिय कर्दम तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है।
  • तुम्हारी यह नौ कन्याएं अपने वंशों द्वारा इस सृष्टि को बढ़ाएंगी।
  • अब तुम मरीचि आदि मुनियों को इनके स्वभाव अनुसार अपनी कन्याएं समर्पित करो।
  • तब कर्दम जी ने अपनी कन्याओं को, कला-मरीचि को, अनुसूया-अत्रि को, श्रद्धा-अंगिरा को, हविर्भू-पुलस्त्य को,
  • गति-पुलह को, क्रिया-कृतु को, ख्याति-भ्रुगू को, अरुंधति- वशिष्ठ जी को व शांति-अथर्वा ऋषि को समर्पित कर दीं।(श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध, भाग -5)

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श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध

श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध)

 

3- कर्दमजी की मोक्षप्राप्ति! Kardamji’s salvation!

  • कर्दम जी ने देखा कि उनके यहां साक्षात श्री हरि ने अवतार लिया है तो वे एकांत में उनके पास गए।और कहा;
  • प्रभु मैं आपकी कृपा से तीनों ऋणों से मुक्त हो चुका हूं।अब सन्यास लेना चाहता हूं। भगवान ने कहा;
  • मुनि मैं आज्ञा देता हूं। तुम जाओ और अपने ,संपूर्ण कर्म मुझे अर्पण करते हुए दुर्जय मृत्यु को जीतकर मोक्ष पाओ।
  • माता देवहूति को भी मैं संपूर्ण कर्मों से छुड़ाने वाला आत्मज्ञान प्रदान करूंगा। जिससे वह संसार रूपी भव से
  • पार हो जावेगी। भगवान कपिल के ऐसा कहने पर कर्दम जी उन की परिक्रमा कर वन को चले गए। वहां अहिंसामय
  • सन्यास धर्म का पालन करते हुए भगवत भक्ति से संपन्न हो श्री कर्दम जी ने भगवान का परम पद प्राप्त कर लिया।

4-भगवान कपिल द्वारा माता देवहुति को तत्वज्ञान! The philosophy of Mother Devahuti by Lord Kapil!

  • भगवान कपिल ने भक्ति योग की महिमा का वर्णन करते हुए कहा; माता यह आध्यात्मिक योग ही मनुष्य के
  • कल्याण का मुख्य साधन है,जहां दुख और सुख से मुक्ति हो जाती है।जीव के बंधन और मोक्ष का कारण मन ही है।
  • विषयों में आसक्त होने पर वह बंधन का हेतु होता है और परमात्मा में अनुरक्त होने पर वही मोक्ष का कारण बनताहै।
  • जो लोग सहनशील,दयालु, शांत,सरल स्वभाव और सत पुरुषों का सम्मान करने वाले होते हैं जो मुझ में अनन्यभाव
  • से सुदृढ़ प्रेम करते हैं मेरे लिए संपूर्ण कर्म को त्याग मेरे परायण रहकर मेरी पवित्रकथाओं का श्रवणकीर्तन करते हैं
  • तथा मुझ में ही चित्त लगाए रहते हैं उन भक्तों को संसार के तरह-तरह के ताप कोई कष्ट नहीं पहुंचाते हैं।

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5- माता देवहुति की मोक्षप्राप्ति! Salvation of Mother Goddess!

  • भगवान का अपनी माता के प्रश्न करने पर उन्हें भक्ति योग की महिमा और वह तत्वों की उत्पत्ति तथा अष्टांगयोगविधि
  • एवं प्रकृति पुरुष के विवेक से मोक्ष प्राप्ति,व भक्ति का मार्ग और काल की महिमा समझाई।
  • कपिल देव जी ने देह में आसक्त पुरुषों की अधोगति व मनुष्य योनि को प्राप्त हुए जीव की विभिन्न गति बताई।
  • तथा धूम मार्ग और अर्चनादी मार्ग से जाने वालों की गति का और भक्ति योग की उच्चता समझाई।
  • तब माता देवहूति ने कपिल देव जी के बताए हुए मार्ग द्वारा थोड़े ही समय में नित्य मुक्त परमात्मा को प्राप्त कर लिया।
  • अंत मे महायोगी भगवान कपिल जी भी माता की आज्ञा ले पिता के आश्रम से ईशान कोण की ओर चले गये । (श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध, भाग -5)

वहां स्वयं समुद्र ने उनका पूजन करके उन्हें स्थान दिया। वे तीनों लोकों को शांति प्रदान करने के लिए योग मार्ग का

अवलंबन कर समाधि में स्थित हो गए। क्रमशः .. चतुर्थ स्कंध अगले अंक में अगले लेख में प्रस्तुत किया जाएगा।

जय श्री कृष्णा!

श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध, भाग- 5 श्रीमद्भागवत महापुराण से संकलित कर मेरे द्वारा संक्षिप्तीकरण किया गया है।

जो भी त्रुटियां हो क्षमा करें। जय श्री कृष्णा! आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा, तो इसे अपने दोस्तों को भी शेयर करें।

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