- श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध, भाग-4 परम पवित्र एवं पुण्यप्रभावकारी है।
इसके पढ़ने, सुनने व सुनाने से भगवान की भक्ति प्राप्त होती है।
परम धर्मज्ञ महाराज मनु एवं महारानी शतरूपा के पुत्री देवहूति का कर्दम जी से विवाह की किस प्रकार हुआ।
भगवान ने कर्दमजी को क्या वरदान दिया आइए जानते हैं। इस लेख में आप पाएंगे
- विदुरजी कर्दमजी से सम्बन्धित कौन से प्रश्न थे।
- भगवान का विदुरजी को वरदान।
- देवहुति व कर्दमजी का विवाह।
- कर्दमजी व देवहुति का विहार।
1-विदुरजी ने कौन से प्रश्न किये! Question of Vidurji!
- विदुर जी ने कहा; कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि को कैसे आगे बढ़ाया? श्री मैत्रेयजी ने कहा; उन्होंने भगवान की भक्ति से
- संगठित होकर एक स्वर्ण अंड की रचना कीजिसमें श्री हरि ने प्रवेश किया।उनकी नाभि से एक कमल प्रकट हुआ।
- उसमें से ब्रह्मा जी का उतपन्न हुए। फिर पांच प्रकार की अविद्या उत्पन्न कर उस शरीर को ब्रह्मा जी ने त्याग दिया।
- जिसे यक्ष और राक्षस ने ग्रहण कर लिया। फिर देवताओ व असुरों उत्पन्न हुये। पुनः ब्रह्माजी द्वारा छोड़े गए शरीर से
- संध्या देवी हुए। जिससे गंधर्व अप्सराएं उत्पन्न हुई।ब्रह्मा जी के पुनः शरीर त्याग से उसे विश्वावसु गंधर्वों ने ग्रहण किया।
- ब्रह्मा जी की तन्द्रा से भूत पिशाच हुए।यदि कोई मनुष्य झूठे मुंह सोता है तो उसपर भूत पिशाच आक्रमण करते हैं।
- उसी को उन्माद कहते हैं।तेजोमय अदृश्य रूप से साध्य,व पित्रगण व तिरोधान शक्ति से सिद्ध-विद्याधर उतपन्न किये।
- अपने प्रतिबिंब से किन्नर व किंपुरुष, भोगमय देहत्याग से सर्प, नाग, व मन से मनुओं, फिर ऋषियों को रचा। (श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध, भाग-4)
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2- कर्दमजी को भगवान ने क्या वरदान दिया ! God’s blessing to Kardamji!
- श्री मैत्रेयजी ने कहा विदुर जी जब ब्रह्मा जी ने भगवान कर्दम जी को आज्ञा दी कि तुम संतान की उत्पत्ति करो।
- तो उन्होंने 10000 वर्ष तक सरस्वती नदी के किनारे तपस्या की।सतयुग के आरंभ में श्री हरि ने उन्हें दर्शन दिए।
- से कर्दम जी ने भगवान को साष्टांग प्रणाम किया और उनकी स्तुति की। तब भगवान ने कहा ; जिसके लिए तुमने
- आत्म संयम से मेरी आराधना की है उस भाव को जानकर मैंने पहले ही उसकी व्यवस्था कर दी है।
- परम धर्मज्ञ महाराजा , महारानी शतरूपा के साथ तुमसे मिलकर, परसों अपनी कन्या देवहूति को अर्पण करेंगे।
- जिससे तुम्हारी 9 कन्याएं होंगी, जो मरीचि आदि ऋषिगणों से विवाहित होंगी। महामुने मैं भीअपनी अंशकला रूप से
- तुम्हारी पत्नी देवहूति के गर्भ से उतपन्न हो सांख्यशास्त्र की रचना करूंगा।यह वरदान दे श्रीहरि अपने लोक चले गये।
- भगवान के जाने के बाद, कर्दम जी समय की प्रतीक्षा करते हुए बिंदु सरोवर पर ही ठहरे रहे।
3-देवहूति व कर्दमजी का विवाह! Marriage of Devahuti and Kardamji!
- इधर मनु जी भी महारानी शतरूपा के साथ निश्चित दिन में कर्दम जी के आश्रम पहुंचे।
- कर्दमजी ने महाराजा मनु की स्तुति की ।मनु जी ने कहा यह मेरी कन्या है जो प्रियव्रत व उत्तानपाद की बहन है।
- जब से नारदजी के मुख से आपके गुणों का वर्णन सुना, तभी से आपको अपना पति बनाने का निश्चय कर चुकी है।
- द्विजवर!मैं बड़ी श्रद्धा से आपको यह कन्या समर्पित करता हूं। आप इसे स्वीकार कीजिए!
- कर्दमजी ने कहा; मैं आपकी कन्या को अवश्य स्वीकार कर लूंगा ,किंतु एक शर्त के साथ।
- जब तक इसके संतान ना हो जाएगी तब तक मैं गृहस्थ धर्म अनुसार इसके साथ रहूंगा।
- उसके बाद भगवान के बताए सन्यास प्रधान धर्म को महत्व दूंगा।
- महारानी शतरूपा व राजकुमारी की अनुमति होने से कदम जी को अपनी कन्या देवहूति को दान कर दिया।(श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध, भाग-4)
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4-देवहूति व कर्दमजी का विहार ! Deity of Devahuti and Kardamji!
- श्रीमैत्रेयजी ने कहा; विदुर जी माता पिता के चले जाने पर साध्वी देवहूति कर्दम जी की सेवा करने लगी।
- उसने कामवासना, दंभ, लोभ, पाप और मद का त्याग कर बड़ी सावधानी और लगन के साथ सेवा में तत्पर रहकर,
- विश्वास,पवित्रता,गौरव,संयम,सुश्रुशा,प्रेम,मधुरभाषण आदि गुणों से अपने परम तेजस्वी पति को संतुष्ट कर दिया।
- तब कर्दम जी ने प्रसन्न होकर देवहूति को दिव्य दृष्टि प्रदान की।
- तब देवहूति ने कर्दमजी को प्रसन्न देखकर, उनकी प्रतिज्ञा व गृहस्थ धर्म की याद दिलाई।
- कर्दमजी ने देवहुति की इच्छापूर्ति हेतु सभी सुखभोग देने वाला विमान रचा जो इच्छानुसार कहीं भी जा सकता था।
- उस विमान पर बैठ कर महायोगी कर्दम जी सारा भूमंडल अपने प्रिया को दिखा कर अपने आश्रम को लौट आये।
- अनेक वर्षों तक बिहार कर: भगवान के आदेश को स्मरण करअपने नौ रूपों से एकसाथ नौ कन्याओं की उत्पत्ति की।
क्रमशः……… तृतीय स्कंध का शेष भाग अगले लेख में प्रस्तुत किया जाएगा।
श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध, भाग-4 श्रीमद्भागवत महापुराण से संकलित कर मेरे द्वारा संक्षिप्तीकरण किया गया है।
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