नमस्कार दोस्तों! हरछठ पर्व भाद्र पद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाए जाने की परंपरा है। इस बार यह 5 सितंबर 2023 को मनाया जाएगा. इसे हलषष्ठी व्रत भी कहा जाता है । यह भाद्र मास के कृष्णणपक्ष की षष्टी तिथि को मनाया जाता है । इस दिन ही बलदाऊ जी, श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था और उनका प्रिय शस्त्र हल था, अतः इसे हलषष्ठी भी कहते हैं।
अतः इस पर्व के प्रमुख देवता बलदाऊ जी एवं षष्ठी माता है। अतः इस दिन बलराम जी की पूजा की जाती है। बलराम जी श्री कृष्ण के बड़े भाई थे और वे नीले वस्त्र धारण किया करते थे । तथा उनका शस्त्र हल था । अतः पूजा करते समय पर्व के प्रमुख देवता की प्रिय वस्तुओं का विशेष ध्यान रखते हुए ही पूजन सामग्री तैयार की जानी चाहिये ।
हलषष्ठी या हरछठ व्रत की पूजा सामग्री !
यह पूजा अलग तरह से की जाती है । जिसमें झरबेरी की एक टहनी, कपास की एक टहनी, एवं पलाश की एक टहनी,
यह तीनों को लेकर के एक मिट्टी के गमले में गड़ा दिया जााता है । एवं पूजा स्थल पर गोबर से लीप कर
चौक बनाकर, उस पर गमले को अच्छी तरह सजा कर फिर उसे चौक के ऊपर रखा जाता है ।
पूजा की थाली में 6 मिट्टी की छोटी मटकी जिसे डबुलिया कहते हैं, रखी जाती हैं ।
जिनमें 7 तरह के अन्न एवं मेवेे इत्यादि भरे जाते हैं
इसमें छः दोने, भैंस का दही, दो पत्तल ,पसई के चावल कुछ अक्षत जैसे चढ़ाने के लिए और भोग में अलग से ,
फूल, हल्दी, कुमकुम , इत्र , पुष्प, सुपारी, हल्दी ,पान,दक्षिणा, नैवेद्य जो भी वस्तु आप भगवान को चढ़ाना चाहते हैं,
समर्पित करना चाहते हैं, उनके पसंद की चीजें रख करके पूजा की थाली तैयार की जाती है।
हलषष्ठी या हरछठ व्रत की पूजन विधि !
प्रत्येक पूजा का विधान है कि पूजन करने वाले व्यक्ति को प्रातः काल
अर्थात 5:00 से 6:00 के बीच में स्नान करके भली-भांति तैयार हो जाना चाहिए।
किसी भी व्रत या पर्व को शुरू होने के पूर्व ही भगवान के समक्ष नहा कर हाथ में अक्षत जल और दूरबा लेकर के
उस व्रत और पर्व के संबंध में संकल्प लेते हुए
भगवान से उस संकल्प को पूरा करने की प्रार्थना करनी चाहिए।
इस प्रकार व्रत की शुरुआत की जाती है।
हलषष्ठी या हरछठ की पूजा विधि !
इसके पश्चात संपूर्ण दिन निराहार रह कर बलरामजी का ध्यान करते हुए एवं षष्ठी माता को नमन करते हुए
समस्त पूजा की तैयारी करने के पश्चात गोधूलि बेला के मुहूर्त में कलश जला कर,
गमले में लगे हुए झरवेरी कपास एवं पलाश की डंडियों में षष्ठी माता
एवं बलदाऊ जी का आवाहन करते हुए जल अर्पण करें।
एवं जनेऊ धारण कराकर कच्चे सूत का जनेऊ पहनाकर विधिवत हल्दी, कुमकुम , इत्र , पुष्प, फल , नैवेद्य, वस्त्र
इत्यादि जो भी आप ईश्वर को चढ़ाना चाहते हैं ,समस्त सामग्री चढ़ा दें ।
सात अन्न से भरी हुई और मेवे से भरी हुई मिट्टी की डबुलिया भी टीक कर उन्हें समर्पित करें ।
तत्पश्चात छःदोनों में एक एक चम्मच दही दोना में डालकर वह भी समर्पित करें ।
पुत्र की दीर्घायु का व्रत हलषष्ठी या हरछठ !
उसके पश्चात माता अपने पुत्र की दीर्घायु की कामना करते हुए प्रत्येक दोनों के दही को जीभ से चाटती है
और दूसरे लोग उनसे जब पूछते हैं , कि यह क्या कर रही हो ,तब माता जवाब देती है की
“अपने पुत्र का नाम लेते हुए कि अमुक बेटे की कुकरिया बनकर लिझरिया चाट रही हूं “।
जिसका अर्थ होता है कि मैं अपने बेटे बेटियों के कष्टों को इस प्रकार हरण कर रही हूँ ,
जिस प्रकार कुकरिया( कुतिया)दूध दही चाटती है।
इस प्रकार अपनी समस्त संतानों के नाम लेकर के माता
उक्त दोनों के दही को एक-एक करके जीभ से चाट लेती हैं।
यह व्रत पुत्रवती माताएं अपने पुत्र की दीर्घायु एवं निष्कंटक जीवन की प्रार्थना हेतु करती हैं।
इसके पश्चात इस व्रत की कहानी या कथाएं कहीं जाती है।
हलषष्ठी या हरछठ व्रत की कथा या कहानी !
कथा इस प्रकार है ।
जिस समय कंस को यह पता चलता है, कि उसकी बहन देवकी से उत्पन्न होने वाला आठवां पुत्र
उसका वध करेगा । तब कंस अपनी बहन देवकी को कारागार में डाल देता है एवं
उसकी प्रत्येक संतान का पैदा होते ही वध कर डालता है।
जिस से दुखी होकर देवकी ईश्वर से प्रार्थना करती है,
तब नारदजी आकर देवकी को षष्ठी माता के व्रत के करने की सलाह देते हैं।
जिस पर देवकी उस व्रत को करती हैं।
और जिससे योग माया से प्रभावित होकर देवकी के सातवे गर्भ को वासुदेव की बड़ी रानी रोहिणी के गर्भ में
स्थित कर दिया जाता है । एवं कंस को इस बात का पता नहीं चलता । तथा कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म
कंस के कारागार में बंद वासुदेवजी की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ से सुरक्षित हो जाता है।
इसलिए सभी स्त्रियां अपने पुत्र की दीर्घायु व सुरक्षित जीवन की कामना के लिए हलषष्ठी व्रत करती हैं।
दूसरी कथा इस प्रकार है
एक बार एक ग्वालन दूध बेचने के लिए जा रही थी, उस समय वह गर्भवती थी ।
जंगल से खेतों से निकलते हुए अचानक उसके पेट में दर्द हुआ और उसको प्रसव पीड़ा शुरू हो गई।
तब झारबेरी के पेड़ के नीचे खेतों में उस ने एक बालक को जन्म दिया ।
किंतु उसके पास दूध दही रखा था जो उसको गांव पहुंचाना था
, लोगों के घर देना था तो गौ रस खराब ना हो जाए ,
इस कारण वह दूध को ले जाकर गांव में बांट देती है ।
उस दिन षष्ठी तिथि रहती है और सभी माताएं व्रत रखती हैं ।
व्रत में गाय का दूध का निषेध है।
किंतु अनजाने ही ग्वालन के द्वारा गाय का दूध सबको वितरित कर दिया जाता है ।
इधर जब ग्वालन लौट के आती है ,
तो अपने बच्चे को हल की नोक से मृत पाकर अत्यंत दुखी हो जाती है
और तभी अचानक उसको याद आता है कि आज तो षष्ठी थी
और मैंने गाय का दूध लोगों को वितरित कर दिया है ।
जो मुझसे बड़ा पाप हुआ है शायद इसी की सजा मुझे षष्ठी माता ने दी है ।
तब तुरंत वापस गांव में जाकर सभी को अपनी गलती के बारे में बताती है ।
एवं सब से क्षमा याचना करके गाय के दूध को
वितरण करने की बात बता कर बहुत रोती और दुखी होती है ।
तब गांव की सभी स्त्रियां उसको क्षमा करती हैं और आशीर्वाद देती हैं,
तथा सभी मिलकर षष्ठी माता की पूजा करती हैं और उसके पश्चात उसके बच्चे को देखने के लिए
सभी खेत में आते हैं तो वहां पर देखते हैं कि उसका बच्चा खेलता हुआ,
जीवित अवस्था में पाया जाता है ।
इस प्रकार षष्ठी माता की पूजा से व अपनी भूल का पश्चाताप करने एवं षष्ठी माता से क्षमा मांगने से
ग्वालन को अपने पुत्र की जीवन की प्राप्ति होती है ।
अतः इस प्रकार सभी माताएं पुत्र की कामना एवं पुत्र की दीर्घायु के लिए हलषष्ठी या हरछठ व्रत करती हैं।
हलषष्ठी या हरछठ व्रत में 6 बातें मुख्य होती हैं
1- पहले तो इसमें हल से जुता हुआ अन्न नहीं खाया जाता ।
(क्योंकि आज बलदाऊ जी का जन्म दिवस भी होता है और हल बलदाऊ जी का शस्त्र है,
इसीलिए आज हल की पूजा की जाती है एवं बलदाऊ जी की पूजा की जाती है । )
2- तालाब से स्वमेंव उगा हुआ पसई का चावल या पेड़ों के फल जो हल से ना जोते गए हो,
को खाया जाता है।
3- गाय के दूध दही का उपयोग ना किया जाकर भैंस के दूध दही का उपयोग किया जाता है।
4- 7 तरह के अन्न एवं मेवे इत्यादि भोग में अवश्य लगाए जाते हैं।
5- सुबह माताएं महुआ की दातुन से ही मंजन करती हैं।
6- झरवेरी ,कपास के डंडी एवं पलास की डंडी की पूजा की जाती है।
इस दिन ये चढ़ाएं !
चूंकि आज बलदाऊ जी का जन्मदिन भी होता है अतः पूजा में नए खिलौने बच्चों की पढ़ने की पुस्तक
पेन कॉपी बहीखाता इत्यादि चीजें भी भगवान को चढ़ाई जाती हैं।
एवं उक्त सभी आयोजनों से बच्चे के जीवन में आयु के साथ-साथ विद्या , धन , समृद्धि, प्रसन्नता , निरोगी जीवन की
कामना की जाती है ।
इस प्रकार बड़े ही श्रद्धा के साथ हलषष्ठी या हरछठ व्रत का पूजन करके पूजा के पश्चात
पसई के चावल को दही के साथ भोजन करके माताएं व्रत का पारण करती हैं।
अंत में !
हलषष्ठी या हरछठ का यह व्रत अत्यंत शुभ फलदायी एवं
बल के धाम बलराम जी के जन्म दिवस के रूप में,
बड़े ही धूमधाम से एवं उत्साह पूर्वक माताएं अपने पुत्रों की दीर्घायु होने के लिए करती हैं।
इसके अलावा जो भी स्त्री पुत्र या संतान की कामना करती हैं,
वे भी इस व्रत को कर सकती हैं ।
पुत्रवती माताओं के अलावा भी संतान की माताएं अपने कन्या संतान के लिए भी दीर्घायु जीवन की कामना
और सुखी जीवन की कामना के लिए इससे कर सकती हैं।
अंत में हलषष्ठी या हरछठ व्रत की शुभकामनाओं के साथ व्रत की संपूर्ण जानकारी प्रस्तुत है।
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