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स्वयं के लिए कैसे जियें ?

( मेरा यह अंक उन प्यारी बहनों के लिए हैं जिन्होंने अपना जीवन परिवार को इस तरह समर्पित कर दिया है कि वे स्वयं के लिए जीना भी भूल चुकीं हैं।)   

        स्वयं के लिए जीवन जीने का अर्थ है स्वावलम्बी होना। अतः आप स्वयं स्वावलम्बी बनकर अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य को स्वावलम्बी  बनाएं, वर्तमान समय की मांग भी यही है। पूरे देश मे महामारी फैली है ऐसी स्थिति में हमारे घर मे बाहरी किसी भी व्यक्ति का आना एक संकट का कारण बन सकता है फिर वो घर मे काम करने वाले कर्मचारी ही क्यों न हों। साथ ही यह एक बहुत अच्छा समय है अपनी शारीरिक क्षमताओं को विकसित करने और बढाने का भी।

                     ऐसे समय मे क्यों न स्वयं के लिए  भी कुछ नियम बना लेते हैं, अक्सर हम अपनी सारी ऊर्जा दूसरों के लिए नियम व व्यवस्थाएं बनाने में लगा देते हैं, किन्तु हमें भी निश्चित व नियमित व्यवस्थित जीवन जीना चाहिए ! इस बारे में कभी नहीं सोचते।इसके पूर्व अपने लिए क्यों जीना चाहिए ये हम चर्चा कर चुके हैं। अब कुछ बिंदु स्वयं के लिए जीवन कैसे जीना चाहिए पर निर्धारित करते हैं…….. 

1.          अपने जीवन की शुरुआत सुबह उठने से तय करतें हैं। निश्चित समय पर अलार्म लगाकर उठ जाएं।सुबह का एक घण्टा स्वयं को दिन भर के लिए तैयार करने में अवश्य दें । कोई दूसरा कार्य इस समय के लिए बिल्कुल भी न रखें , किसी से कोई बात या कार्य आप स्वयं भी न करवाएं। केवल अपने ही प्रयासों से अपने सुबह के स्नान पूजन इत्यादि सम्पन्न करें।ततपश्चात घर के अन्य सदस्यों जैसे छोटे बच्चे , बुजुर्गों आदि के आवश्यक कार्यों में जुटे।2.             नाश्ता, भोजन नियमित व निश्चित मात्रा में अवश्य करें अक्सर महिलाओं के नाश्ते व भोजन का कोई निश्चित क्रम नही होता। अतःयहाँ सभी के लिए सबकुछ करते हुए जिस तरह सबका भोजन व नाश्ता करना आप जरूरी समझतें हैं वहां आप स्वयं के लिए भी उतना ही जरूरी समझें।

 3.                 जिस तरह परिवार के अन्य सदस्यों के लिए साफ सुंदर कपड़े पहनना व व्यवस्थित रहने की व्यवस्था आप करती हैं उतनी व्यवस्था आपको स्वयं के लिए भी करनी चाहिए।

4.                  मनोरंजन सभी के लिए आवश्यक है अतः अपने लिए समय निकाले व अपने शौक व रुचियों के मुताबिक मनोरंजन जरूर करें।

 5.                   आराम /विश्राम को जीवन मे स्थान दें कार्यों को समाप्त करने के लिए अपने विश्राम को नष्ट न करें क्योंकि काम के बीच का  यह विश्राम आपको पुनः कार्य करने की ऊर्जा प्रदान करता है। अतः आराम करने का कुछ समय दोपहर में जरूर निश्चित करें, किन्तु उस समय मोबाईल न चलाये न ही किसी से बात करें, एकांत में रहें, ध्यान कर सकतें आधा घंटे की नींद भी के सकते हैं।

 6.                      रात्रि भोजन भी निश्चित रूप से करें। रात्रि भोजन के पश्चात स्वयं को समय दें। थोड़ी देर टहलें, पुनः एकांत 10 मिनट का रखें। ये बार बार एकांत या ध्यान में जाने से हमारा मस्तिष्क वातावरण व अन्य परिस्थितियों के प्रभाव से थोड़ी देर के लिए हमे मुक्त कर देता है और हमारे अंदर पुनः ऊर्जा का संचार होने लगता है।

7.                       कम से कम 6 घंटे की भरपूर नींद अवश्य लें। इसमें कभी कोई समझौता न करें।आपातकाल की बात अलग है।

 8.                      यह सही है कि बदलते समय के साथ महिलाओं में स्वयं को लेकर काफी अच्छे बदलाव अपने जीवन मे लाएं हैं उसके बावजूद प्रत्येक महिला स्वयं की आवश्यकताओं व इक्छाओं को लेकर कहीं  न कहीं समझौता करती ही है, समझौता करना अच्छी बात है, किन्तु उतना ही जिसमें आप की स्वयं की व्यवस्थाओं में कोई रुकावट न आये। यदि आप मे कोई विकृति आएगी तो आपका परिवार विकृत हो जावेगा। अतः स्वयं को व्यवस्थित रखें, व अपना ख्याल रखें। इसीलिए स्वयं के लिए जीना सीखें।

                        आपका जीवन आपके परिवार व समाज के लिए एक मिसाल होना चाहिए, आप जो करेंगी आपकी संतान को आपको अलग से नही सीखना होगा, वह खुदबखुद आपको देखकर सिख जाएंगी।

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