नमस्कार दोस्तों! सावन के सोमवार व्रत करने से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। और समस्त सुख संपदा प्रदान करते हैं। सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला यह व्रत बहुत ही सरल होता है। चतुर्मास में भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन है। और भगवान शिव ही सृष्टि का संचालन कर रहे होते हैं। ऐसे समय उनकी प्रसन्नता के लिए उनके ही दिन सोमवार में व्रत और भक्ति करने से वे बहुत प्रसन्न होते हैं।
आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि सावन के सोमवार कब से शुरू हो रहे हैं और उसके पूजन विधि क्या है। और व्रत की कथा क्या है। अतः इस से अंत तक ध्यान से पढ़ें।
सावन के सोमवार व्रत की पूजन विधि!
- जो भी व्यक्ति सावन के सोमवार व्रत को करना चाहते हैं उन्हें आज के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए।
- शुद्ध तीर्थ के जल से अर्थात गंगा जल से स्नान करें। सूर्य को जल अर्पण करें।
- तथा भगवान भोलेनाथ के समक्ष खड़े होकर अंजलि में अक्षत और जल लेकर तीन बार विष्णु-विष्णु-विष्णु कहकर
- संकल्प करें और अपना नाम व अपने गोत्र का नाम लेकर भगवान से यह प्रार्थना करें
- कि आज मैं यह सावन के सोमवार का व्रत कर रहा/ रही हूं आप इसे स्वीकार करें।
- ऐसा प्रत्येक सोमवार को करना चाहिए। अब दिन में भोजन न करें 3 प्रहर के बाद ही भोजन करना चाहिए।
- यह व्रत दिनभर फलाहार या एक समय भोजन या निराहार करके तथा
- कुछ लोग एक फल या एक वस्तु को खाकर करते हैं इस प्रकार जैसा आपका शरीर साथ दे वैसा व्रत करना चाहिए।
- 3:00 बजे के बाद भगवान शिव की पूजन करें। शुद्ध जल व गंगाजल से स्नान कराकर पंचामृत से स्नान कराएं।
- तथा उनके पसंद के पुष्प और पत्र उन्हें समर्पित करें जैसे बिल्वपत्र धतूरा के पुष्प,फल और पत्ते, पीले कनेर चढ़ाएं।
- महादेव को सफेद पुष्प बहुत पसंद है। भगवान शिव को हमेशा गीले चावल ही चढ़ाने चाहिए।
- चावल को गीला करके भगवान शिव को अर्पित करें। सफेद चंदन लगाएं इत्र धूप आदि समर्पित करें।
- जनेऊ, कच्चा धागा चढ़ाएं और कोई भी मौसमी फल भगवान को अर्पित करें और भोजन का भोग लगाएं।
- भगवान की आरती कर, कथा सुने। अंत में सभी को प्रसाद वितरण करें और स्वयं भोजन करें।
- सावन माह में शिवजी को प्रसन्न करने के लिए करें 12 उपाय! मैं से जो सामग्री उपलब्ध हो वैसा करें।
- एवं पूरे दिन ओम नमः शिवाय का मन ही मन जप करते रहे।
सावन के सोमवार व्रत की कथा!
- कथा इस प्रकार है। एक नगर में एक साहूकार रहता था वह और उसकी पत्नी दोनों शिवभक्त थे।
- किंतु उनकी कोई संतान नहीं थी। साहूकार प्रति सोमवार को शिव जी का व्रत रखता ।
- और हमेशा उनसे एक पुत्र की कामना करता था। उसने कई वर्षों तक सावन के सोमवार का व्रत किया।
- जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उसे पुत्र का वरदान दिया। किंतु साथ में स्वप्न में दर्शन देकर बताया कि
- यह पुत्र 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा। अब साहूकार को पुत्र पाकर भी खुशी नहीं हो पा रही थी।
- उसे हर वक्त अपने पुत्र की कम आयु का दुख सताता था। साहूकार ने अपने सोमवार के व्रत को निरंतर जारी रखा।
- जब 11 वर्ष पूर्ण हो चुके तब साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर काफी धन धान्य देकर उसे अपने पुत्र को
- काशी ले जाकर विद्या अध्ययन कराने को कहा। और मार्ग में चलते हुए वह गरीबों कोअन्न धन बांटने को कहा।
- और भोलेनाथ के नाम से भंडारा व साधु संतों को दानपुण्य कर प्रणाम करते हुए जाने को कहा।
- पुत्र और उसके मामा काशी के लिए चल दिए ।
- और जैसा साहूकार ने कहा था वैसा ही मामा और पुत्र रास्ते भर सभी साधु संतों को भंडारा कराते
- उनसे प्रणाम करते और आशीर्वाद लेते हुए काशी पहुंचे।
साहूकार के पुत्र का विवाह!
- काशी में रास्ते में एक नगर के राजा की पुत्री का विवाह होना था।
- जिसमें दूसरे राजा का पुत्र काना होने के कारण वह साहूकार के लड़के को पकड़कर विवाह कराने ले गया।
- तथा उससे कहा कि अब विवाह के पश्चात दुल्हन मेरे पास आएगी और तुम वापस चले जाना।
- विवाह के समय साहूकार के पुत्र ने यह बात दुल्हन की चुन्नी में विस्तार पूर्वक लिख दिया।
- विवाह के बाद जब कन्या ने अपनी चुन्नी में सभी बातें पढीं तो उसने अपने पिता को बताया ।
- पिता ने दूसरे राजा को वहां से खाली हाथ लौटा दिया और अपनी पुत्री को अपने घर ले आया।
- इधर साहूकार का पुत्र शिक्षा ग्रहण करने काशी चला गया। काशी जाकर मामा ने खूब शिव पूजा की।
- तथा बहुत बड़ा यज्ञ कराया जिस दिन यज्ञ हो रहा था वह साहूकार के पुत्र का अंतिम दिन था।
सावन के सोमवार व्रत के प्रभाव से साहूकार के पुत्र का पुनर्जीवित होना!
- अर्थात 12 वर्ष पूर्ण हो रहे थे। यज्ञ में बैठने पर साहूकार के पुत्र की तबीयत बिगड़ने लगी ।
- और वह उठकर वहां से चला गया। बहुत देर तक साहूकार का पुत्र वापस नहीं आया तो मामा ने जाकर देखा।
- तो पुत्र का प्राणांत गया था। ऐसे में यज्ञ के बीच में शोक ना करते हुए मामा ने यज्ञ को पूर्ण किया ।
- और उसके बाद आकर बहुत जोर जोर से विलाप करने लगा।
- जिसे यज्ञ मंडप में उपस्थित भगवान भोलेनाथ और शिव और माता पार्वती ने सुना तो माता ने भगवान से कहा कि
- प्रभु यह इतना क्यों रो रहे हैं तब भगवान ने बताया कि मैंने इन्हें पुत्र दिया था जिसकी आयु 12 वर्ष थी।
- जो आज मृत्यु को प्राप्त हो चुका है इसीलिए यह विलाप कर रहे हैं।
- तब माता ने भगवान से प्रार्थना की कि प्रभु यह आपके इतना बड़ा भक्त है इसे इसका पुत्र लौटा दीजिए।
- भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर साहूकार के पुत्र को जीवित कर दिया।
- तब भगवान की नाम गुण गाते हुए मामा और भांजा दोनों अपने नगर को वापस लौटने लगे।
- रास्ते में राजा की पुत्री अपने पति का की राह देख रही थी उन्हें देख राजा ने ससम्मान बहुत से धन-धान्य देकर
- अपनी पुत्री को उनके साथ भेज दिया। इधर काशी में साहूकार बड़े चिंतित होकर अपने पुत्र की राह देख रहा था।
- जैसे ही उसने अपने पुत्र को वापस जीवित लौटता हुआ देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा।
- साथ में पुत्र वधू और इतना धन देखकर वह भोलेनाथ की महिमा पहचान गया ।
- और भगवान को कोटि-कोटि प्रणाम करके आभार व्यक्त करने लगा ।
- तथा जीवन पर्यंत सोमवार के व्रत को करता रहा।
- इस प्रकार भोलेनाथ आपकी सोच से भी अधिक आपको प्रदान करते हैं अतः बोलिए हर हर महादेव।
अंत में!
- आपको सावन के सोमवार व्रत की पूजन विधि और कथा अच्छी लगी हो तो इसे अवश्य शेयर करें।
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