बच्चों में बनाए अच्छे संस्कार Total Post View :- 3618

संस्कार क्या हैं? इनका निर्माण कैसे करें? कौन से संस्कार निर्मित करें?

  1. संस्कार किसे कहते हैं ?
  2. संस्कार कैसे निर्मित किये जाते हैं ?
  3. संस्कारों का नवीनीकरण !
  4. निरन्तर अभ्यास से संस्कार गढ़ें !
  5. किस उम्र में संस्कार निर्मित करें ?
  6. संस्कारों का जीवन मे महत्व !
  7. कौन से संस्कार निर्मित करने चाहिए ?
  8. क्या करना चाहिए ?

1-संस्कार किसे कहते हैं ?

संस्कार हमारे विगत जीवन का परिणाम होते हैं जो हम विगत जन्म में जिस प्रकार जीवन जीते हैं । पूर्व जन्म की आदतें और स्वभाव एक संस्कार के रूप में हमारे आगामी जीवन में भी हमारे साथ में चलते हैं।

अतः संस्कार वह कार्य है , जिन कार्यों को हम नियमित करते हैं और निरंतर लंबे समय तक जो कार्य बिना रुके किए जाते हैं । वह संस्कार के रूप में परिणित हो जाते हैं ।

उसी प्रकार हमारी आदतें, हमारा स्वभाव यह भी नियमित और निरंतर चलने के कारण एक संस्कार के रूप में परिवर्तित हो जाता है ।

2-संस्कार कैसे निर्मित करें ?

दूसरी कड़ी में हम यह जान लें कि यदि हमें किसी संस्कार को अपने में डालना है तो सबसे पहले तो संस्कार यह समझे कि संस्कार हमारा स्वभाव है, हमारी आदतें हैं, हमारे विचार हैं।

अब जिन विचारों को और जिन आदतों को जिन्हें हम अपने में गढ़ना चाहते हैं या अपने बच्चों में गढ़ना चाहते हैं । उन आदतों को और उन कार्यों को हम नियमित रूप से करें , व अपने बच्चों से भी कराएं ।

जब निरंतर किसी भी स्वभाव को, किसी भी आचरण को या किसी भी कार्य को लगातार तीन माह तक भी किया जाता है तो उस कार्य , आदत, व स्वभाव की हमारे शरीर और मन को आदत हो जाती है ।

फिर आप नहीं भी करेंगे, तब भी वह स्वभाव व आदत आपके मन को पकड़ लेता है ।

इसीलिए जो भी अच्छा कार्य आप करना चाहते हैं या अपने बच्चों से करवाना चाहते हैं तो कम से कम 3 महीने तक उस कार्य को निरंतर अपनी निगरानी में करते व करवाते रहें ।

इससे आप में , व आपके बच्चे में संस्कार निश्चित रूप से उत्पन्न हो जाएंगे । यह आत्मा के संस्कार होते हैं और निरंतर चलते रहते हैं।

3-संस्कारों का नवीनीकरण !

यदि हम इन संस्कारों के नवीनीकरण ना करें, तब क्या होता है ?

इसका एक उदाहरण ले लें ।

जिस प्रकार हम घर बनाते हैं और अपने ही जीवन काल के 100 वर्षों में यदि उस घर की रिपेयरिंग या दुरुस्तीकरण नहीं करते हैं तो वह घर छिन्न-भिन्न होने लगता है टूटने लगता है ।

और उसमें अनेक तरह की विकृतियां होकर कीड़े- करकट चूहे, मकड़ी जाले और बिल आदि बनाने लगते हैं । जिससे उस घर की शोभा और सुंदरता नष्ट हो जाती है। और नींव कमजोर होकर घर टूटने लगता है।

उसी तरह आत्मा पर पड़े हुए पुराने संस्कार जो अच्छे भी होते हैं और बुरे भी । किन्तु यदि उनमे सुधार न् किया जाए तो पुराने संस्कार धीरे धीरे नष्ट हो जाते हैं, व आपके व्यक्तित्व को नष्ट कर देते हैं। आपकी आत्मा की सुंदरता, पवित्रता को नष्ट कर देते हैं।

इसीलिए हमें अपने संस्कारों का नवीनीकरण करते रहना चाहिए ।

4- निरन्तर अभ्यास से संस्कार गढ़ें !

निरंतर आदत ही संस्कार कैसे बनती है । इसका बहुत ही सरल और उत्तम उदाहरण है कि अपने टाइपिंग करना सीखा होगा अपने जीवन में या कभी किया होगा ।

या मोबाइल पर भी आप टाइप करते हैं तो आप देखते होंगे कि शुरुआती समय में आपको अंगुलियों से टाइप करने में काफी दिक्कतें आती हैं।

लेकिन उस टाइप का अभ्यास होते-होते निरंतर ही 2 से 3 माह के अंदर आप उस कार्य में इतने प्रवीण हो जाते हैं कि वह कार्य पलक झपकते आपसे हो जाता है।

अर्थात वह लिखने का कार्य आपके अंदर एक संस्कार के रूप में गठित हो गया है। इसलिए अब जब भी आपके दिमाग में विचार आते हैं उंगलियां चलने लगती हैं।

इसी प्रकार निरन्तर अभ्यास से हम अपने जीवन में संस्कारों को निर्मित सकते हैं।

5- किस उम्र में गढ़ें संस्कार !

बड़ी ही अद्भुत व रोचक बात तो यह है कि संस्कार गढ़ने की कोई उम्र नही होती।

संस्कार एक नियमित चलने वाली प्रक्रिया है । आपका जीवन जिस प्रकार निरंतर विकसित होता रहता है, वैसे ही आपके मन में विचार भाव उत्पन्न होते जाते हैं और यही विचार और भाव जो है, वह समय के साथ संस्कार के रूप में परिणित हो जाते हैं ।

संस्कारों को सीखने की या संस्कारों को उत्पन्न करने की कोई विशेष उम्र नहीं होती जब भी आप अपने में कोई नया संस्कार निर्मित करना चाहते हैं तब भी आप उस संस्कार को निर्मित कर सकते हैं।

यह गलत है की अधिक उम्र के बाद संस्कार नहीं सीखा जा सकता. क्योंकि अपने अनुभव के आधार पर मैं यह समझती हूं कि आप जितनी ज्यादा परिपक्वता की उम्र को प्राप्त करेंगे उतना जल्दी किसी संस्कार को सीख सकते हैं और अपने जीवन में ला सकते हैं।

6- संस्कारों का जीवन मे।महत्व !

संस्कार का क्या महत्व है, सामान्य जीवन जो हम जीते हैं, हमारा व्यवहार व स्वभाव यह सब हमको श्रेष्ठता दिलाने के लिए ही हम अपने अंदर पैदा करते हैं ।

यदि आप चाहते हैं कि आपका जीवन उन्नत हो , प्रगतिशील हो , श्रेष्ठ हो ,सबको आप प्रिय हो और आपका चरित्र ऐसा हो कि, जो सब को प्रेरित करें । तब आपको अपने अंदर अच्छे अच्छे संस्कार डालने होंगे ।

कुछ संस्कार तो हमारे पूर्वजन्म से हमें प्राप्त होते हैं।

लेकिन जैसे मैंने बताया कि जो हमने नया घर बनवाया और घर बनाने के बाद हम देखते हैं कि ,यहां पर यह चीज ना हो करके यह अलमारी होनी चाहिए या यह दरवाजा इस तरफ न हो कर दरवाजा उस तरफ से हमें सुविधा होती। इस तरह अपनी सुविधा के अनुसार हमें कई फेरबदल करते हैं।

उसी प्रकार पुराने जन्म के संस्कार हमारे नये जन्म में प्रवेश करते हैं , तो नए जीवन में जो भी पुराने संस्कार हमें असुविधा पैदा करते हैं ।

तब हम अपने बुद्धि और विवेक के अनुसार जब जानने लगते हैं कि हमारा यह संस्कार बुरा है जिससे दूसरे लोग प्रभावित हो रहे हैं, दुखी हो रहे हैं, हम खुद प्रभावित हो रहे हैं।

हमारा जीवन हमारे पुराने संस्कारों के कारण नष्ट हो रहा है तो हम अपने जीवन में नए संस्कारों को जन्म दे सकते हैं और संस्कारों को बनाया जा सकता है ।

संस्कारों का महत्व यही है कि हम अपने जीवन में जितने भी दुखदाई स्थितियां हैं , उनको दूर करने के लिए स्वयं में नये संस्कार गढ़ सकते हैं।और अपने जीवन को उत्तरोत्तर आगे बढ़ा सकते हैं और उन्नति के शिखर पर ला सकते हैं।

7- कौन से संस्कार निर्मित करने चाहिए ?

अब विचार ये आता है कि ऐसे कौन से संस्कार हैं जो हमें उन्नति के मार्ग में ले जाते हैं?

तो इसके लिए यह सोचना स्वयं से जरूरी है की हमें चाहना कैसे संस्कारों को है । क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की स्थितियां भिन्न-भिन्न होती हैं उसके स्वभाव में विभिन्न होते हैं उसको समुदाय भिन्न भिन्न होता है ।

प्रत्येक व्यक्ति के संस्कार, उसके समुदाय ,उसकी स्थिति और उसके आसपास के लोगों के आधार पर ही निर्मित होते हैं ।

स्थितियों को अपने नियंत्रण में रखते हुए हम अपने में वह संस्कार पैदा करें जो हम चाहते हैं।

वे संस्कार जो सभी मे आवश्यक हैं, जो जीवन को उन्नत करते हैं, जिनके पीछे ही सारी समृद्धि व सफलता छुपी हुई है । वे संस्कार जिनके प्रति हमारे शास्त्र बताते है वे हैं ….

स्नानं दानं जपो होमो स्वाध्यायो देवतार्चनम्।
यस्मिन् दिने न सेव्यन्ते स वृथा दिवसो नृणाम्।।


जिस दिन स्नान, दान, जप, होम, स्वाध्याय तथा देवतार्चन नहीं होता, मनुष्य का वह दिन व्यर्थ हो जाता है।

अर्थात नियमित स्नान, नियमित दान, नियमित जप, नियमित होम , नियमित स्वाध्याय, व नियमित देवराधना ही वे संस्कार हैं जो मनुष्य जीवन को उन्नत बनाते हैं।

अतः यदि हमने स्वयं को व अपनी संतानों को इन 6 संस्कारों से सुसज्जित कर लिया तो स्वयं के जीवन के साथ साथ समाज कल्याण व परलोक को भी सुसज्जित कर सकने में सफल होंगे।

8- क्या करना चाहिए ?

इसे सोचे तो अपने जीवन में पहले तो हमें प्रेरक प्रसंगों को पढ़ना पड़ेगा ।

जो श्रेष्ठ मनुष्य हैं उनकी जीवनी या और उनके जीवन चरित्र को समझने के पश्चात हम यह जाने कि श्रेष्ठ चरित्र निर्मित करने के लिए क्या क्या आवश्यकता होती है ।

आवश्यकता की पूर्ति के लिए किस तरह का आचरण किया जाना चाहिए वही संस्कार बनेगा।

तो फिर आज ही से आप अपने अध्ययन को अपनी श्रेष्ठता को बनाने के लिए चरित्रों को पढें या देखें या अपने अनुभव के आधार पर समझें और जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के आधार पर उनका अनुकरण करें।

प्रकृति के साथ तालमेल

प्रकृति के साथ तालमेल बनाएं प्रकृति में देखें कि सबसे अच्छा उदाहरण हमारी प्रकृति है जिससे हम सीख सकते हैं कि हमें कैसा आचरण करना चाहिए ।

यदि आप नहीं पढ़ सकते यदि आपको नहीं मालूम कि श्रेष्ठ लोगों का चरित्र कैसा होता है। उनका आचरण कैसा होता है तो बहुत दूर जाने की आवश्यकता भी नहीं है।

आप अपनी प्रकृति के आधार पर आसपास की जो प्रकृति है उसको देख कर के भी आप अपने चरित्र को निर्मित कर सकते हैं।

आप देखें कि सूर्य चंद्रमा जल थल वायु पशु पक्षी इन सब का क्या आचरण है , यह कैसे रहते हैं , यह प्रकृति के इतने निकट है और यही सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं संस्कारों को सीखने के।

सूर्योदय से सीखें

सूर्य कब उदित होता है, सूर्योदय के साथ उठने की आदत डालें ।यह आपका पहला संस्कार होना चाहिए की हम सूर्योदय के साथ उठने के बाद अपने तेज को प्रदीप करने के लिए प्रयास करें।

हम नित्य संस्कारों को ध्यान में रखते हुए अपने नित्य जीवन के कर्म स्नान करें ।आसान ध्यान पूजन स्वाध्याय इत्यादि को अपनी नियमित दिनचर्या में लाएं।

समय ना भी हो तब भी विशेष रूप से इन कार्यों को करें।

पक्षियों से सीखें

ततपश्चात देखें कि पक्षी सुबह होते ही अपने भोजन की फिराक में घूमने लगते हैं। उड़ने लगते हैं।

तब इन से यह शिक्षा लें कि हमें बैठकर आरामदायक स्थिति में भोजन नहीं करना है। भोजन बना मिले और हम खा ले।

एक संस्कार जरूर आप डाले कि यदि आपके घर में छोटा भी बच्चे हैं तो भी बिना परिश्रम भोजन की आदत ना डालें।

चिड़िया का बच्चा भी तभी तक के घोसले में बैठकर खाता है जब तक उसके पर नहीं निकल निकल आते ।

पर नहीं निकलने का मतलब कि जब तक वह उड़ना सीख नहीं पाता अर्थात हमें भी अपने बच्चों को जब तक मुख से बोलना न सीख ले ,चलना न सीख लें, तब तक ही आराम से बिठालकर खिलाएं।

जैसे ही बच्चा चलना सीखे उसके अंदर संस्कारों का निर्माण शुरू कर दें । बैठे-बैठे खाने के लिए बिल्कुल ना दे उसे अवश्य ही कुछ कार्य भोजन के पूर्व करने जरूर करें ।

चाहे वह कार्य पढ़ना ही क्यों ना हो, खेलना ही क्यों ना हो, या कुछ भी परिश्रम का ऐसा कार्य ,जिससे उसको यह समझ आ जाए कि भोजन के पहले मुझे यह कार्य करने ही हैं ।

संस्कारों को इस तरीके से हम बच्चों के जीवन में डालें ताकि उनको यह प्रवृत्ति हो कि हमें खाना खाने के पहले कुछ ना कुछ कार्य अवश्य करना है।

पशुओं से सीखें

आपने देखा होगा कि रात के समय अंधेरा होने के बाद गाय आदि पशु भोजन नहीं करते।

अब हो सकता है कहीं-कहीं विशेष परिस्थितियों में कोई भूखा जानवर कुछ खा भी ले लेकिन यह अपवाद कहलाते हैं।

सामान्यतः पशु पक्षी देर रात से भोजन नहीं करते। इस संस्कार को हम अपने अंदर ले आए कि हमें भी रात्रि के कम से कम 8:00 बजे के बाद तो भोजन नहीं करना है।

समय पर सोएं

इसके पश्चात सोने की जो प्रक्रिया होती है। सोने की प्रक्रिया के समय में भी एकांतवास करें दिन भर के जितने भी क्रियाएं हैं , उन सब को दिमाग से शांत करते हुए सोने की कोशिश करें ।

यदि 8:00 बजे भोजन करेंगे तो निश्चित है कि आप 10:00 बजे से 11:00 बजे तक के सो ही जाएंगे और जब आप 11:00 बजे सो जाएंगे तो 5:00 बजे उठ जाना कोई मुश्किल काम नहीं है ।

यह मूलभूत संस्कार हैं जिनका केवल मानव मात्र के रूप में हमें सीखना आवश्यक है ।

एक अत्यंत आवश्यक बात आपको यह बता दूं जीवन में उन्नति करने के लिए बहुत सी बातें हम देखते हैं, सुनते हैं ,खूब पढ़ो, खूब अच्छा काम कर लो , खूब मेहनत कर लो, कुछ नई बातें सीख लो, लेकिन यह सब संभव तब है जब हम अपने मूलभूत जीवन को संस्कारित कर सकें।

संस्कार मुख्य रूप से हमें सोना , जगना, भोजन करना और नियमित स्वाध्याय, विचार, संस्कार जिस व्यक्ति के अंदर आ जाएंगे वह व्यक्ति अपने पूरे जीवन को बदलने की ताकत रखता है।

क्योंकि आप यदि समय से उठेंगे तो आपके पास बहुत समय होगा । उस समय का आप अपने अन्य कार्यों में जीवन के प्रगति करने वाले कार्यों में, जिसके जो स्वेच्छा हो उन कार्यों को करने में ,अपनी रुचि यों को बढ़ाने में, समय अधिक मिलेगा ।

और जब आप अपनी रुचियों को, अपने शौक को, अपनी इच्छाओं को, इस तरीके से बढ़ाएंगे तो आपकी उन्नति निश्चित होगी ।

तब आपका जीवन निखर कर के सामने आएगा।

भोजन कैसे करें!

भोजन की प्रक्रिया में जब आपको यह निश्चित हो जाएगा कि हमें भोजन के पहले कुछ करना ही है या हमें भोजन पाने के लिए बिना परिश्रम भोजन हमें नहीं मिल सकेगा तब आप भोजन के महत्व को समझेंगे ।

और जो आजकल की प्रकृति है कि आपने देखा होगा कि बच्चे, बूढ़े, जवान ,क्या सभी लोग आजकल भोजन को महत्वहीन समझते हैं।

भोजन का मतलब केवल दाल चावल रोटी सब्जी खाना ही नहीं है । आपके मुख में जो भी चीज जाती है वह भोजन ही है। तो कभी बिस्किट तो कभी कुरकुरे तो कभी टॉफी तो कभी नमकीन, तो कभी मिष्ठान ,कभी फल, कभी जूस, कभी दूध, कभी पानी , यह सब भोजन के प्रकार हैं।

और आप गिनेंगे, तो आप स्वयं देखेंगे कि कम से कम दिन में 50 बार तो हम भोजन करते हैं । अब आप सोचिए संस्कार कैसा है ।

जानवर तो इसलिए 50 बार खाते हैं क्योंकि उनको उतनी खुराक मिल नहीं पाती । एक बार में उन्हें कोई उतना खिलाता नहीं। इसलिए वह जो मिलता है, जब मिलता है खाते रहते हैं।

क्योंकि उनका शरीर भी बड़ा रहता है उस हिसाब से उनकी भोजन की मात्रा अधिक होती है ।जो थोड़ा थोड़ा भोजन मिलने से उनको ज्यादा खाना पड़ता है ।

लेकिन हमारी खुराक तो निश्चित होनी चाहिए। हमारे पास भोजन पर्याप्त है। हमारा पेट भी छोटा है । तब हम थोड़ा सा खा कर भी, और नियम को बनाकर भी भोजन कर सकते हैं।

आप जितनी बार भोजन करते हैं उतनी बार आपका मन और आपका शरीर केवल और केवल भोजन पचाने में जुट जाता है ।

ऐसी स्थिति में आप जीवन के अन्य कार्यों को करने में अक्षम हो जाते हैं और यह भोजन जो शरीर के निर्माण के लिए होता है यह आपके जीवन को नष्ट कर देता है।

इस प्रकार प्रकृति को साथ में रखते हुए हम स्वयं को संस्कारित करें कोई बहुत ज्यादा संस्कारित होने की जरूरत नहीं है।

कुल 6 संस्कार जो ऊपर बताए है, ही अपने जीवन में गढ़ लेते हैं तो यह छः संस्कार ही आपको उत्तरोत्तर उन्नति की ओर ले जाने में पूरी तरह सक्षम हैं।

संस्कारों को हम अपने जीवन में उतारे जिनके द्वारा निश्चित ही हमें अत्यंत उन्नति और प्रगति के मार्ग दिन प्रतिदिन मिलते चले जाएंगे।

क्योंकि अच्छाई अच्छाई की ओर ले जाती है और बुराई बुराई की ओर ले जाती है अच्छाइयों का अनुसरण करें और अपने जीवन में अच्छे संस्कारों को स्थान दें ।

धन्यवाद।

✍️श्रीमती रेखा दीक्षित एडवोकेट

?यह आलेख पूर्णतः मौलिक व स्वरचित है।

 

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19 thoughts on “संस्कार क्या हैं? इनका निर्माण कैसे करें? कौन से संस्कार निर्मित करें?

  1. संस्कार निर्माण हेतु अति सुसंस्कृत प्रयास

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