श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ है। किसी भी व्रत को न करके भी इसे किया जाए तो सभी व्रतों का फल प्राप्त हो जाता है। इसे व्रतराज भी कहते हैं। ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा व विश्वास को दृढ़ता या मजबूती प्रदान करने के लिए भगवान के प्रगटोत्सव पर विभिन्न आयोजन करना ही भक्तिमार्ग है। भक्ति के नौ प्रकार बताए गए हैं।
उन्हीं में पूजा करना, कथा सुनना, ईश्वर को उनकी प्रिय वस्तुएं भेंट करना शामिल है। आज हम आपको बताएंगे
- श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत की कथा,
- पूजा विधि ,
- पूजन सामग्री,
- श्री कृष्ण की प्रिय वस्तुएं !
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा !
आइये पढ़ते है श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा ! कथा इस प्रकार है की देवकी और वासुदेव के विवाह के बाद
विदाई के समय जब कंस देवकी के भाई देवकी को विदा कराने ले जा रहे थे ,तभी आकाशवाणी हुई की देेेवकी का
आठवां पुत्र के द्वारा तुम्हारा विनाश होगा । यह आकाशवाणी सुनकर कंस विचलित हो गए
और वासुदेव और देवकी को बंदी गृह में डाल दिया ।
श्री कृष्ण का जन्म..
भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि 12:00 बजे हुआ था।
उस समय घनघोर बारिश हो रही थी और प्रभु की माया के प्रभाव से बंदी ग्रह के सारे पहरेदार सो रहे थे
और कारागृह के दरवाजे अपने आप खुल गए । वासुदेव की बेड़ियां खुल गई और भगवान की ही प्रेरणा से
एक सूप में भगवान श्रीकृष्ण को लेकर के वासुदेव जी नंद बाबा के घर नंद गांव यमुना नदी को पार करते हुए पहुंचे।
उसी समय यशोदा रानी ने पुत्री को जन्म दिया था जो कि योग माया थी ।
तब वसुदेव के वहां पहुंचने पर नंद देव ने अपनी पुत्री वासुदेव जी को दी और वासुदेव जी के पुत्र को
यशोदा रानी के पास सुला दिया । इस प्रकार अदला बदली करके योग माया को लेकर के वासुदेव वापस मथुरा में
कंस के बंदी गृह में पहुंच गए । वसुदेव के वापस पहुंचते ही। कारागार के दरवाजे बंद हो गए ।
बेड़ियां यथावत लग गई और सो रहे पहरेदार भी जग पड़े ।
इधर बच्चे की रोने की आवाज सुनकर पुत्र जन्म का समाचार सुनकर तत्काल बच्चे के वध करने के लिए
कंस कारागार पहुंचा । बहुत अनुनय विनय करने पर भी, कि संतान पुत्र नहीं है । पुत्री है ।
कंस ने बच्चे को नहीं छोड़ा और जैसे ही उसे मारने के लिए देवकी के हाथ से छीना ,
वैसे ही योग माया आकाश में उड़ गइं और उन्होंने भविष्यवाणी की कि कंस तेरा काल जन्म ले चुका है।
इस प्रकार कृष्ण नंद गांव में यशोदा रानी के वात्सल्य में पलने बढ़ने लगे,
और श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का उत्सव मनाया जाने लगा।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत क्यों मनाते हैं !
आज के दिन इस धरती पर दुष्टों के विनाश के लिए ही भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था
और जो भविष्यवाणी के जरिए प्रमाणित हो चुका था कि यही बालक बड़ा होकर राक्षसों ,दुष्टों एवं आतताइयों का विनाश करेगा ।
इसीलिए संपूर्ण नंद गांव एवं मथुरा में श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को बड़े ही धूमधाम से
और प्रसन्नता के साथ मनाया जाता था क्योंकि आज के दिन सभी का तारणहार जो उनके बीच अवतरित हुआ था ।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि !
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को व्रतराज भी कहा जाता है। क्योंकि समस्त व्रतों का फल व पुण्य
एकमात्र श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करने से प्राप्त हो जाता है। अतः इसका बहुत महत्व है।
इस दिन पूरे घर मे पोंछा के पानी मे एक दो बूंद गंगाजल की डालकर पोंछा लगाना चाहिए।
प्रातःकाल स्नान के जल में दो बूंद गंगाजल की डालकर स्नान करना चाहिए।
तत्पश्चात भगवान के समक्ष अपने दोनों हाथों में गंगाजल, दूर्वा, तुलसी एवं सिक्का हाथ में लेकर संकल्प लें ,
” प्रभु आज के दिन मैं श्री कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत का या पूजा का संकल्प लेता या लेती हूं,
जिसे आप स्वीकार करें एवं व्रत को पूर्ण करें। इसके बाद गंगाजल व पन्चामृत से लड्डूगोपाल को स्नान कराकर ,
चंदन पाउडर लगाकर पीताम्बर पहनाएं व विधिवत सुसज्जित करें।
आज कान्हा को अवश्य चढ़ाएं ये चीजें !
उपरोक्त उपायों से भगवान का श्रृंगार करने एवं पूजा करने से निम्न फायदे होते हैं
- मोरपंख – यदि कालसर्प दोष हो तो मोर पंख साथ में रखने से कालसर्प दोष दूर होता है।
- बाँसुरी – वंश वृद्धि के साथ ही जीवन में तनाव को दूर करने के लिए प्रतीक के रूप में,
- श्री कृष्ण को बांसुरी अर्पित की जाती है । तिजोरी में बांसूरी रखने से धनवृद्धि होती हैै।
- जिस घर गाय और बछड़ा की मूर्ति की पूजा की जाती है उस घर में मां और बच्चों का प्रेम अटूट होता है।
- श्री कृष्ण की वाणी है श्रीमद्भागवत गीता ।
- अतः आज के दिन श्री कृष्ण के सम्मुख गीता की भी पूजा की जानी चाहिए।
- कान्हा का झूला – ऐश्वर्य का प्रतीक है और आज के दिन कान्हा के झूले का बड़ा महत्व है।
- ऐसी मान्यता है कि आज रात्रि में कान्हा के जन्म के समय जो भी व्यक्ति कान्हा के झूले को झुलाता है,
- उसकी समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं ।
- गंगाजल – श्री कृष्ण के चरणों का धोवन माना जाता है एवं श्री कृष्ण को गंगाजल अत्यंत प्रिय है ।
- साथ ही यह घर की और मन की सभी नकारात्मकता को दूर करता है।
- इसलिए गंगाजल का विशेष प्रयोग करना चाहिए।
- माखन-मिश्री- स्निग्धता मधुरता केे प्रतीक है यह कृष्ण को बहुत पसंद है
- इसलिए जीवन में मधुरता लाने के लिए और निरोगी रहने के लिए यह उपाय जरूर करना चाहिए।
- तुलसीदल व तुलसी मंजरी श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय है साथ ही यह अत्यंत पवित्र एवं औषधीय पौधा है
- जिसे घर में लगाने से घर की नकारात्मकता दूर होती है।
- श्री कृष्ण को पारिजात के फूल व वैजयन्ती माला भी अत्यंत प्रिय है अतः यह जरूर चढ़ाने चाहिए।
- अतः श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत के दिन इन उपायों को करके अपने जीवन में श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत की पूजन सामग्री !
आज के दिन क्या भोग लगाएं !
- श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत के दिन इन बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है।
- आज के दिन व्रत रखकर फलाहार का सेवन करना चाहिए।
- भगवान के भोग में भी आज विशेषकर धनिया का प्रसाद बनाया जाता है जिसे धनिया पंजीरी कहते हैं ।
- जो कि उपवास में भी खाई जाती है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पट !
- श्री कृष्ण के साथ साथ उपरोक्त पूजन के साथ ही एक पट बाजार में मिलता है ।
- जिसमें श्री कृष्ण के जन्म से लेकर के उनके संपूर्ण जीवन की लीलाओं के चित्र बने हुए रहते हैं।
- जिसे श्री कृष्ण जन्माष्टमी पट कहते हैं उसकी भी पूजा पारंपरिक रूप से की जाती है।
श्री कृष्ण की झांकी !
- इस प्रकार घरों में एवं मंदिरों में श्री कृष्ण की झूले में बैठाकर झांकी तैयार की जाती है
- और लोग ठीक 12:00 बजे रात में मंदिरों में जाकर श्री कृष्ण जन्मोत्सव को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं ।
- तत्पश्चात श्री कृष्ण की आरती गाई जाती है।
श्री कृष्ण जी कीआरती !
आरती कुंज बिहारी की सुनें ।
आज के दिन पूर्ण निष्ठा के साथ विधि विधान से भगवान की पूजा करने पर
यह व्रत राज हमें सुख समृद्धि आरोग्य एवं सफलता प्रदान करने वाला उत्सव है।
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