श्रीकृष्ण की 16 कलाएं क्या है! अद्भुत जानकारी! Total Post View :- 1818

श्रीकृष्ण की 16 कलाएं क्या है! अद्भुत जानकारी!

नमस्कार दोस्तों! श्रीकृष्ण की 16 कलाएं क्या है? यह विषय हमारे भगवत प्रेमियों के लिए अनोखा नहीं है। किंतु फिर भी ईश्वर का स्मरण जीवन की हर मुश्किलों को आसान कर देता है। इसी को ध्यान में रखकर आज हम भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाओं की याद करेंगे।

ब्रह्म संहिता में लिखा है

“ईश्वर: परम: कृष्ण: सच्चिदानंद विग्रह:।

अनादिरादि गोविंद: सर्व कारण कारणम।।

अर्थात भगवान केवल कृष्ण हैं, जो सच्चिदानंद शाश्वत ज्ञान तथा आनंद के स्वरूप हैं। उनका कोई आदि(प्रारम्भ) नहीं है क्योंकि वह प्रत्येक वस्तु के आदि (प्रारम्भ) हैं। वह समस्त कारणों के कारण हैं।

आज हम आपको भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाओं के बारे में बताएंगे। यह जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को अवश्य होनी चाहिए। यह भक्ति और ज्ञान को उत्पन्न करके मन और विचारों को शुद्ध और प्रबुद्ध करती है। अतः इसे अंत तक अवश्य पढ़ें।

श्रीकृष्ण की 16 कलाएं क्या हैं!

  • भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाएं इस प्रकार हैं
  • पहली कला धन संपदा है अर्थात समस्त ऐश्वर्य से युक्त भगवान अक्षय धन भंडार के स्वामी हैं। उनके द्वार से कभी भी कोई खाली हाथ नहीं जाता।
  • दूसरी कला पृथ्वी अर्थात समस्त भूभाग के स्वामी हैं, उन्होंने अपनी कला से द्वारका को बसाया था।
  • तीसरी कला कीर्ति है। भगवान की यश और कीर्ति चारों दिशाओं में गूंजती है। सभी उनकी जय-जयकार करते हैं।
  • चौथी कला इला है। अर्थात वाणी की मधुरता भगवान श्री कृष्ण की वाणी में बड़ी मधुरता थी।
  • वह सबका मन मोह लेते थे और सभी उनकी वाणी सुनकर अपनी सुध-बुध खो देते थे।
  • 5वीं कला लीला है – अर्थात आनंद और उत्सव।
  • बाल्य काल से लेकर अंत तक भगवान की लीलाएं आनंद और उत्सव के रूप में देखी और सुनी जाती रही हैं।
  • जो सभी को भाववभोर कर देती थी।
  • 6वीं कला कांति है। कांति का अर्थ है सुंदरता। भगवान की सुंदरता सभी को आकर्षित करती थी।
  • हजारों कामदेव भी भगवान की सुंदरता के आगे फीके पड़ जाते थे।
  • 7वीं कला विद्या है। भगवान सभी विद्याओं में पारंगत थे।
  • वेद, वेदांग, युद्ध, कौशल, नृत्य, संगीत सभी कलाओं से युक्त थे।

भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाएं अद्भुत हैं!

  • 8वीं कला विमला है। विमला का अर्थ है पारदर्शिता
  • अर्थात भगवान के मन में किसी भी प्रकार का छल कपट नहीं होता था।
  • वह पूरी पारदर्शिता के साथ सभी के साथ न्याय करते थे।
  • 9वीं कला उत्कर्षिनी अर्थात प्रेरणा देना और नियोजन करना।
  • भगवान सभी को कार्यों को करने की प्रेरणा देते थे तथा उनके कार्यों का नियोजन भी करते थे।
  • 10वीं कला है ज्ञान- भगवान अथाह ज्ञान के सागर थे।
  • वे नीर-क्षीर विवेक के साथ हर समस्या का समाधान किया करते थे।
  • 11वीं कला है क्रिया अर्थात कर्मण्यता। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में कार्यों को करने अर्थात
  • कर्मण्यता को विशेष महत्व दिया था। उनका पूरा जीवन कर्मठता का दर्शन कराता है।
  • 12वीं कला है योग अर्थात मन को एकाग्र करना। भगवान श्री कृष्ण स्वयं परम योगी थे।
  • 13वीं कला प्रहवि अर्थात विनयशीलता –
  • भगवान इतने अधिक विनयशील थे कि शत्रु भी उनके आगे मौन होकर नतमस्तक हो जाते थे।
  • उन्हें कभी भी अपने धन वैभव यश और ताकत का अहंकार नहीं था।
  • वह ग्वालों के सखा भी थे, और द्वारकाधीश भी थे।
  • 14वीं कला सत्य – भगवान तो स्वयं परम सत्य हैं।
  • कटु सत्य को बोलने में भी नहीं हिचकते। हमेशा सत्य का साथ देते हैं।
  • 15वीं कला है इसना – अर्थात आधिपत्य।
  • समस्त लोकों के स्वामी जिनका आधिपत्य समस्त सृष्टि पर है। ऐसे भगवान श्री कृष्ण इसना कला से युक्त हैं।
  • 16वीं कला है अनुग्रही– परम दयालु, परम कृपालु, भगवान श्रीकृष्ण बिना स्वार्थ के ही सब का उपकार करते हैं।
  • जिन राक्षसों ने उन पर आघात किया, उन्हें चोट पहुंचाने का प्रयास किया।
  • उन्हें भी दीन दयाल प्रभु ने अनुग्रह करके सद्गति प्रदान की। फिर भक्तों की तो बात ही क्या है।

अंत में!

इस प्रकार श्रीकृष्ण की 16 कलाएं अद्भुत है। इनमें से जितनी भी कलाएं किसी मनुष्य में पाई जाती हैं तो वह श्रीकृष्ण के सादृश्य वंदनीय होता है। श्रीकृष्ण की 16 कलाएं उनके अद्भुत रूप और ऐश्वर्य को प्रकट करती है। तथा मन में भक्ति के भाव को जगाती हैं। अतः भगवत भक्ति से ओतप्रोत यह जानकारी अपने मित्रों और परिजनों को भी अवश्य शेयर करें। ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए देखते रहें आपकी अपनी वेबसाइट

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