नमस्कार दोस्तों!! वेदसार शिवस्तव: शिव स्तुति एक मंत्र स्तुति है। यह मंत्र स्तुति स्वयं भगवान शंकर द्वारा दिया गया सुख का मंत्र है। क्योंकि यह भगवान के अवतार माने गए श्री शंकराचार्य द्वारा रची गई है।
भगवान शिव को प्रिय अति पवित्र श्रावण मास में किसी भी दिन सुबह शाम या किसी भी समय इसे पढ़ने पर यह मंत्र स्तुति समस्त ऐश्वर्य प्रदान करती है । साथ ही जीवन में आ रही समस्त बाधाओं को दूर करती है।
भगवान का स्मरण करते हुए मन में श्रद्धा और विश्वास का होना बहुत आवश्यक है। आपकी श्रद्धा और आपका ईश्वर के प्रति विश्वास ही आपको सफलता प्रदान करता है। अतः इसे कम से कम श्रावण माह में एक बार अवश्य करें। प्रस्तुत है वेदसार शिवस्तवः (शिव स्तुति) !!
वेदसार शिवस्तव: (शिव स्तुति)!!
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं,गजेन्द्रस्य कृत्ति वसानं वरेण्यम् ।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्ग. वारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम || १ ||
महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्ग.भूषम्।
विरु पाक्ष मिन्द्वर्क वन्हि त्रिनेत्रं
सदानन्द मीडे प्रभुं पञ्च वक्त्रम् ।।२।।
गिरीशं गणेशं गले नील वर्णम्
गवेन्द्रा धिरुढं गुणातीत रुपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्ग
भवानी कलत्रं भजे पञ्च वक्त्रम् ॥३॥
शिवाकान्त शम्भो शशाङ्कार्ध मौलेमहेशान शूलिन् जटाजूट धारिन् ।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरुप ।।४।।
परात्मान मेकं जगद्वीज माद्यं
निरीहं निराकार मोड़कार वेद्यम् ।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ।।५।।
न भूमिर्न चापो न वहिर्न वायुः
र्नचाकाश मास्ते न तन्द्रा न निद्रा ।न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो,
न यस्यास्ति मूर्ति स्त्रिमूर्तिं तमीडे॥६॥
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम् ।
तुरीयं तमः पारमाद्यन्त हीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैत हीनम् ।।७।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्व मूर्ते
(1) “नमस्ते नमस्ते चिदानन्द मूर्ते।”
नमस्ते नमस्ते तपो योग गम्य
(१) नमस्ते नमस्ते श्रुति ज्ञान गम्य ।।८।।
प्रभो शूल पाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र ।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारेत्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ।।९।।
शम्भो महेश करुणा मय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाश नाशिन् ।
काशीपते करुणया जगदेत देकस्त्वं
हंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ।।१०।।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मकं हर चराचर विश्वरुपिन् ।।११।।
॥ इति श्रीमच्छड्काचार्यककृतो देवसारशिवस्तवः सम्पूर्णम् ।।
श्री शंकराचार्य द्वारा रचित वेदसार शिवस्तव: (शिव स्तुति)का हिंदी में अर्थ!
हिंदी में पद 1 –
- जो सम्पूर्ण प्राणियोंके रक्षक हैं, पापका ध्वंस करनेवाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराजका चर्म पहने हुए हैं.
- तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूटमें श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजीका मैं स्मरण करता हूँ।
हिंदी में अर्थ पद 2 –
- चन्द्र, सूर्य और अग्नि – तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर,
- विभु, विश्वनाथ, विभूतिभूषण, नित्यानन्दस्वरूप, पंचमुख भगवान् महादेवकी मैं स्तुति करता हूँ।
हिंदी में अर्थ पद 3 वेदसार शिवस्तव: (शिव स्तुति)
- जो कैलासनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ हैं, बैलपर चढ़े हुए हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसारके आदिकारण हैं,
- प्रकाशस्वरूप हैं, शरीरमें भस्म लगाये हुए हैं और श्रीपार्वतीजी जिनकी अर्द्धांगिनी हैं,
- उन पंचमुख महादेवजीको मैं भजता हूँ।
हिंदी में अर्थ पद 4
- हे पार्वतीवल्लभ महादेव, हे चन्द्रशेखर, हे महेश्वर, हे त्रिशूलिन्, हे जटाजूटधारिन्, हे विश्वरूप!
- एकमात्र आप ही जगत्में व्यापक हैं। हे पूर्णरूप प्रभो! प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये।
हिंदी में अर्थ पद 5 वेदसार शिवस्तव: (शिव स्तुति)
- जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत्के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं
- और प्रणवद्वारा जाननेयोग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्वकी उत्पत्ति और पालन होता है और
- फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभुको मैं भजता हूँ।
हिंदी में अर्थ पद 6 वेदसार शिवस्तव: (शिव स्तुति)
- जो न पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश हैं;
- न तन्द्रा हैं, न निद्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है,
- उन मूर्तिहीन त्रिमूर्तिकी मैं स्तुति करता हूँ।
हिंदी में अर्थ पद 7 वेदसार शिवस्तव: (शिव स्तुति)
- जो अजन्मा हैं, नित्य हैं, कारणके भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं,
- एक हैं, प्रकाशकोंके भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रयसे विलक्षण हैं,
- अज्ञानसे परे हैं, अनादि और अनन्त हैं, उन परमपावन अद्वैतस्वरूपको मैं प्रणाम करता हूँ ।
हिंदी में अर्थ पद 8
- हे विश्वमूर्ते, हे विभो आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे चिदानन्दमूर्ते! आपको नमस्कार है, नमस्कार है।
- तप तथा योग से प्राप्तव्य, हे प्रभो आपको नमस्कार है, नमस्कार है।
- वेदवेद्य हे भगवन्! आपको नमस्कार है, नमस्कार है।
हिंदी में अर्थ पद 9
- हे प्रभो, हे त्रिशूलपाणे, हे विभो, हे विश्वनाथ, हे महादेव, हे शम्भो, हे महेश्वर, हे त्रिनेत्र, हे पार्वती प्राणवल्लभ,
- भगवन हे शान्त, हे कामारे, हे त्रिपुरारे, तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, न माननीय है और न गणनीय है।
हिंदी में अर्थ पर 10
- हे शम्भो, हे महेश्वर, हे करुणामय, हे त्रिशूलिन्, हे गौरीपते, पशुपते, हे पशुबन्धमोचन, हे काशीश्वर!
- एक तुम्हीं करुणावश इस जगत्की उत्पत्ति, पालन और संहार करते हो; प्रभो, तुम ही इसके एकमात्र स्वामी हो।
हिंदी में अर्थ पद 11 वेदसार शिवस्तव: (शिव स्तुति)
- हे देव, हे शंकर, हे कन्दर्पदलन, हे शिव, हे विश्वना, हे ईश्वर, हे हर,हे चराचर जगत रूप प्रभो!
- यह लिंगस्वरूप समस्त जगत् तुम्हींसे उत्पन्न होता है, तुम्हींमें स्थित रहता है और तुम्हीं में लय हो जाता है।
- इति श्री वेदसार शिवस्तवः (शिव स्तुति) सम्पूर्ण।
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