विजया एकादशी व्रत फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से अनंत पुण्य प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से आध्यात्मिक लाभ के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक फायदे भी होते हैं।
आज इस लेख में पाएंगे-
- क्यों करते हैं विजया एकादशी व्रत ?
- व्रत कब शुरू करना चाहिए।
- इस दिन क्या खाना चाहिए ।
- पारण में क्या खाना चाहिए।
- विजया एकादशी की पूजन विधि क्या है।
- एकादशी के क्या लाभ हैं।
- स्वास्थ्य की दृष्टि से एकादशी व्रत का महत्व।
- एकादशी व्रत की कथा क्या है ।
क्यों करते हैं विजया एकादशी व्रत
- विजया एकादशी व्रत को करने के संबंध में प्राचीन काल की कथा प्रसिद्ध है। पूर्व काल में मुर नामक दैत्य था। जिसे मारने के लिए भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या उत्पन्न हुई थी।
- वह कन्या विष्णु के समान ही तेजवान थी तथा युद्ध कौशल में भी निपुण थी। उसके हुंकार मात्र से मुर दैत्य राख का ढेर हो गया था। कन्या के इस पराक्रम पर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए और देवी को वर मांगने कहा।
- यह देवी ही एकादशी देवी थी उन्होंने भगवान विष्णु से वर मांगा कि मैं सभी तीर्थों में प्रधान, सभी विघ्नों का नाश करने वाली व समस्त सिद्धि को देने वाली बनूँ।
- जो लोग मेरा व्रत उपवास करें उन्हें आप समस्त ऐश्वर्य धन धर्म व मोक्ष प्रदान करें। तब भगवान विष्णु ने तथास्तु कहते हुए कहा कि तुम्हारे भक्तजन ही मेरे भी भक्त हैं।
- इस प्रकार एकादशी तिथि को मनाने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है। इसीलिए लोग इस विजया एकादशी व्रत को श्रद्धा पूर्वक करते हैं।
व्रत कब शुरू करना चाहिए।
- विजया एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को एक रात पूर्व से ही कुछ नियमों का पालन करते हैं।
- एकादशी के पूर्व रात्रि से ही व्रत प्रारंभ किया जाता है।
एकादशी के दिन क्या खाना चाहिए।
- एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित तिथि है इस कारण सर्वश्रेष्ठ और अति महत्वपूर्ण तिथि है।
- इस तिथि में सात्विकता का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। आज के दिन प्याज लहसुन मांस मछली अंडा शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
- आज चावल खाने की भी मनाही होती है तथा एक अन्न का ही भोजन किया जाता है।
पारण के दिन क्या खाना चाहिए ।
- पूर्ण सात्विकता के साथ व्रत करते हुए चावल का निषेध बताया गया है लेकिन पारण के दिन चावल जरूर खाना चाहिए
- ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन चावल खाने से रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म होता है। किंतु द्वादशी को चावल खाकर इस योनि से मुक्ति मिल जाती है।
- इस कारण से द्वादशी के दिन चावल खाना सर्वोत्तम माना जाता है ।
विजया एकादशी व्रत की पूजन विधि क्या है ।
- विजया एकादशी व्रत की पूजन विधि इस प्रकार है।
- व्रत के दिन की पूर्व रात्रि से ही व्रत के नियमों का प्रारंभ करना चाहिए। रात्रि से ही चावल नहीं खाना चाहिए।
- दूसरे दिन गंगाजल से स्नान करके भगवान विष्णु को एक कलश में स्थापित करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- सप्त अन्न्न से युक्त कलश स्थापित करें जिसके ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति रखें ।
- उसके बाद विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजन अर्चन करें। विष्णु पूजा में चावल वर्जित है अतः अक्षत के स्थान पर तिल का प्रयोग करें।
- इस तिथि को 24 घंटे भगवान विष्णु का कीर्तन करते हुए बिताना चाहिए।
- द्वादशी के दिन अन्न्न से भरा हुआ कलश या घड़ा ब्राह्मण को दान किया जाता है।
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विजया एकादशी व्रत करने के क्या लाभ हैं ।
- ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन बैकुंठ का द्वार खुलता है और वैकुंठ श्री हरि का निवास स्थान है।
- जो लोग पूर्ण श्रद्धा और विधि विधान से एकादशी व्रत को करती हैं उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
- श्री विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होने से जन्म मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
- इस व्रत के प्रभाव से सभी तीर्थों के दर्शन के बराबर फल मिलता है साथ ही आज के दिन किया गया दान का फल जन्मों-जन्मों तक प्राप्त होता है।
- विजया एकादशी व्रत के दिन किया गया जप-तप और दान अश्वमेध यज्ञ के बराबर फलदाई होता है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से एकादशी करने का क्या महत्व है।
आध्यात्मिक और धार्मिक ही नहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।
- प्रत्येक माह में 2 पक्ष होते हैं शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष। शुक्लपक्ष में चंद्रमा अपनी 11 (एकादश) कलाओं के साथ होते हैं।
- जिनका प्रभाव समस्त प्राणियों पर पड़ता है और चंद्रमा मन का कारक है। और मन से शरीर का संचालन होता है।
- इस प्रकार शुक्ल पक्ष का चंद्रमा प्राणी के मन और शरीर पर प्रभाव डालता है।
- जिससे शरीर में अस्वस्थता बनी रहती है और मन भी चंचल होता है ।
- इसी तरह कृष्ण पक्ष में सूर्यदेव अपनी एकादश कलाओं के साथ उदित रहते हैं।
- जिनका प्रभाव जीवो के मन मस्तिष्क पर पड़ता है इस कारण माह में दो बार विशेष तिथियों पर उपवास रखना एक वैज्ञानिक तत्व है।
- अतः दोनों पक्षों की एकादशी तिथि पर उपवास रखने से शरीर तथा मन को नियंत्रित रखा जा सकता है।
विजया एकादशी व्रत का चमत्कारी प्रभाव
- इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी दुख और दर्द मिट जाते हैं। और सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है।
- इस व्रत को भगवान राम ने भी रावण पर विजय प्राप्ति के लिए किया था ।
- इसीलिए इससे विजया एकादशी व्रत भी कहते हैं। जिस के संबंध में एक कथा कही जाती है जो निम्न है
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विजया एकादशी व्रत की कथा क्या है।
विजया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा इस प्रकार है:
- एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से विजया एकादशी के महत्व के बारे में पूछा। तब श्री कृष्ण ने बताया कि एक समय की बात है नारदजी ने ब्रह्मा जी से इस एकादशी के बारे में जानना चाहा।
- तब ब्रह्माजी ने नारदजी को बताया कि यह व्रत सभी जन्मों के पापों को मुक्त करने वाला और सभी दिशाओं में विजय दिलाने वाला है।
- त्रेतायुग में भगवान राम के 14 वर्ष वनवास के समय पंचवटी में रावण ने सीता का हरण कर लिया था।
- सीता जी की खोज करते हुए श्री राम सुग्रीव से मिले और बाली का वध किया।
- हनुमान जी द्वारा लंका की खोज की गई। सीता जी का पता लगाया गया। किंतु इतना लंबा समुद्र पार करना और लंका पर विजय पाना बड़ा कठिन था।
- ऐसे में भगवान श्रीराम ने ऋषि के कहने पर विजया एकादशी का व्रत अपनी समस्त सेना के साथ किया।
- जिससे श्रीराम की लंका पर विजय हुई और सीता जी की प्राप्ति हुई।
- इस प्रकार विजया एकादशी व्रत के प्रभाव से भगवान श्रीराम को अपने शत्रु पर विजय प्राप्त हुई ।
सभी पापों का नाश करने वाली विजया एकादशी अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि है। श्रद्धा पूर्वक व्रत और विष्णु की उपासना करने से समस्त धर्म धन और मुक्ति की प्राप्ति होती है।
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