वात प्रकृति की चिकित्सा :शरीर में बढ़े वात रोग का आयुर्वेदिक समाधान ! Total Post View :- 2204

वात प्रकृति की चिकित्सा : शरीर में बढ़े हुए वात दोष का आयुर्वेदिक समाधान !

इस आर्टिकल में आप वात प्रकृति के लोगों की चिकित्सा से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करेंगे । आयुर्वेद में वर्णित खानपान , दिनचर्या व प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से वात रोगों का शमन किया जा जा सकता है। जिसका संक्षेप में वर्णन किया जा रहा है, जिससे निश्चित रूप से वात प्रकृति के लोगों को फायदा पहुंचेगा। तो आइए शुरू करते हैं –

वात प्रकृति के लक्षण !

  • इसका प्रमुख लक्षण शरीर में रुक्षता का होना है। अर्थात शरीर में रूखापन दिखता है।
  • अतः वात की मुख्य चिकित्सा ही शरीर को स्निग्धता प्रदान करना है अर्थात तेल का उपयोग।
  • आयुर्वेद में वाद प्रकृति की रक्षा के लिए तिल के तेल को श्रेष्ठ माना है।
  • तिल के तेल की अनुपलब्धता होने पर सरसों तेल, नारियल तेल या मूंगफली तेल का भी उपयोग किया जा सकता है।

आयुर्वेद में वात प्रकृति की चिकित्सा या दिनचर्या !

  • वात प्रकृति के लोगों को आयुर्वेद के अनुसार विशेष दिनचर्या का पालन करना चाहिए ।
  • जिसमें तेल का प्रयोग पांच प्रकार से किया जाना चाहिए।
  • 1-तेल को खाकर – किन्तु तली हुई चीजें ना खाएं बल्कि तेल को रोटी में या सलाद में डालकर खाएं।
  • वाट प्रकृति के लोगों को तेल खाने से कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ेगा क्योंकि शरीर में तेल की मात्रा पहले से ही कम है।
  • अतः यह शरीर के तेल को मात्र को बढ़ाएगा कोलेस्ट्रोल को नहीं। तेल वात का दुश्मन है।
  • 2- तेल की मालिश – वात दोष से प्रभावित व्यक्तियों को प्रतिदिन तिल के तेल से मालिश करना चाहिए ।
  • क्योंकि तिल का तेल गर्म और स्निग्ध होता है इसलिए तिल के तेल का ही प्रयोग करना चाहिए ।
  • किंतु यदि मालिश न की जा सकी तब ऐसी स्थिति मे सिर, कान और पैरों के तलवे में अवश्य तेल लगाना चाहिए ।
  • इससे वात रोगों में शांति मिलती है। तथा नाभी में और नाक में भी तेल का प्रयोग करना चाहिए।
  • सुबह एक चम्मच नारियल तेल पानी मे मिलाकर 2-3 मिनट मुंह मे घुमाकर कुल्ला करने चाहिए।

वात प्रकृति के लोगों की दिनचर्या !

  • इससे पीड़ित व्यक्ति या रोगियों को ज्यादा मेहनत और पसीना निकलने वाले कार्य नहीं करने चाहिए।
  • आयुर्वेद के अनुसार आराम पूर्वक जीवन जीने से ही वातरोग शांत हो जाता है।
  • ज्यादा व्यायाम, दौड़ना , जिम आदि नहीं करना चाहिए। केवल प्राणायाम करें।
  • इसके अलावा बात रोगियों को शीत से भी बचाव करना चाहिए।

वात प्रकृति की भोजन चिकित्सा !

  • भोजन में ताजा गर्म व स्निग्ध भोजन करना चाहिए।
  • तथा वात रोगियों को अपने प्रतिदिन के भोजन में खट्टा मीठा और नमकीन यह 3 रसों को प्रधान रूप से खाना चाहिए।
  • क्योंकि यह तीनों रस वात का शमन ( नाश) करते हैं ।

इसके अलावा वात रोग की चिकित्सा आयुर्वेद में वमन, विरेचन और बस्ति के रूप में बताई गई है जो कि विशेषज्ञ चिकित्सक की देखरेख में की जानी चाहिए ।

इस प्रकार हम अपनी दिनचर्या में सुधार लाकर वात से मुक्ति पा सकते हैं।

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