नमस्कार दोस्तों! मंगला गौरी व्रत विधि और कथा में हम आपको सावन के महीनों में पड़ने वाले मंगलवार व्रत के संबंध में बताएंगे। यह कब पड़ता है एवं पूजा विधि क्या है? पूजन सामग्री क्या है तथा इसकी कथा क्या कही जाती है? व्रत करने का तरीका क्या है आदि सभी बातें विस्तार से बताएंगे। अतः इसे अंत तक ध्यान से पढ़ें।
मंगला गौरी व्रत कब है!
- सावन माह में प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत किया जाता है।
- सावन के सोमवार और मंगलवार दोनों प्रकार के व्रत एक साथ करने का संकल्प ना लें।
पूजन सामग्री!
- सावन के प्रत्येक मंगलवार को किए जाने वाले इस व्रत में माता गौरी की पूजा की जाती है।
- कुछ लोग सावन के मंगलवार से शुरू करके सोलह मंगलवार तक व्रत रखते हैं।
- और सत्रवें मंगलवार को इस का उद्यापन करते हैं।
- कुछ लोग केवल सावन के मंगलवार को व्रत रखकर 5 वर्ष तक सावन के मंगलवार व्रत रखते हैं।
- इसे सुहागिन स्त्री और कुंवारी कन्याएं सभी रख सकती हैं। यह सभी मनोकामना को पूरा करने वाला व्रत है।
- अतः इसे स्त्री पुरुष सभी रख सकते हैं।
- वैवाहिक संबंधों में मधुरता लाने वाला तथा श्रेष्ठ वर प्रदान करने वाला यह व्रत पति और पुत्र को दीर्घायु बनाता है।
- तथा सर्व सौभाग्य प्रदायनी व्रत माता गौरी को बहुत प्रिय है। इसमें लाल रंग और 16 की संख्या का बहुत महत्व है।
- लाल फूल और लाल चुनरी माता को चढ़ाएं स्वयं भी लाल वस्त्र पहन कर पूजा करें
- मां गौरी को प्रत्येक वस्तु 16 की संख्या में चढ़ाएं। जैसे 16 पुष्प, 16 फल, 16 सुपारी, 16 पान, 16 श्रंगार आदि।
- इस दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान करके माता गौरी की कच्ची मिट्टी से प्रतिमा बनायें।
- हाथ में अक्षत और जल लेकर माता भगवती से अपने कष्टों को दूर करने और
- अपनी मनोकामना को पूर्ण करने की प्रार्थना करते हुए मंगला गौरी व्रत करने का संकल्प लें।
मंगला गौरी व्रत की पूजन विधि!
- एक पटे पर आधे में सफेद और आधे में लाल कपड़ा बिछाएं।
- सफेद कपड़े पर चावल से छोटी-छोटी 9 ढेरियां बनाएं यह नवग्रह कहलाते हैं। उन पर 9 सुपारियां रख दें।
- अब गेहूं से छोटी-छोटी 16 ढेरियां बनाए यह षोडश मातृका कहलाती है।
- नवग्रह और षोडश मातृका स्थापित करके विधि विधान से पूजा करनी चाहिए।
- पटे के बाएं तरफ कलश स्थापना करें, जिस पर चौमुखी दीपक बनाकर रखें।
- 4-4 बत्तियां चारों दिशाओं में लगाएं।अथवा
- लाल रंग की मौली से 4-4 धागे लेकर चौमुखी दीपक में चारों ओर बत्तियां लगा लें। इस तरह 16 बत्तियां हो जाएंगी।
- एक तांबे की प्लेट में माता रानी की मिट्टी की प्रतिमा को स्थापित करें। गणेश जी की मूर्ति की स्थापना करें।
- अब गणेश जी, कलश, नवग्रह, षोडश मातृका, माता गौरी की क्रमवार पूजा करें।
- स्नान, पंचामृत स्नान, चंदन, गंध, पुष्प, वस्त्र, दीप, धूप, कपूर, फल, नैवेद्य, तांबूल, मंत्र, आरती, दक्षिणा करें।
- इस प्रकार 16 उपचारों से षोडशोपचार पूजन करें। हलवे का भोग लगाएं। सोलह सिंगार की 16 सामग्री अर्पित करें।
- अंत में सुहागन स्त्री को श्रृंगार सामग्री भेंट करें। भोजन कराएं व सायंकाल में स्वयं मीठा भोजन ग्रहण करें।
- इस प्रकार अत्यंत सरल तरीके से श्रद्धा और भक्ति के साथ माता गौरी का व्रत पूजन करें ।
- तथा अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मां से प्रार्थना करें। और मंगला गौरी व्रत की कथा श्रवण करें।
- ऐसा सावन के प्रत्येक मंगलवार को करना चाहिए।
- पूजन के पश्चात दूसरे दिन माता गौरी की मिट्टी की प्रतिमा का विसर्जन कर दें।
- अगले मंगलवार को नई मूर्ति स्थापित कर पुनः पूजन करें।
मंगला गौरी व्रत की कथा!
- प्राचीन काल में श्रुतिकीर्ति नामक राजा रहता था जिसकी कोई संतान नहीं थी। वह मां गौरी का परम भक्त था।
- वह सावन के महीने में प्रत्येक मंगलवार को माता भगवती की पूजा व आराधना किया करता था।
- माता भगवती ने प्रसन्न होकर उसे वर देना चाहा तब उसने पुत्र की कामना का वरदान मांगा।
- माता ने कहा कि यह तो बहुत कठिन बात है क्योंकि तुम्हारे भाग्य में संतान नहीं है ।
- तब राजा श्रुति कीर्ति ने माता से कहा कि मुझे तो पुत्र ही चाहिए।
- इस पर माता ने कहा कि ठीक है मैं तुम्हें पुत्र का वरदान देती हूं किंतु वह 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।
- वरदान पाकर राजा श्रुति कीर्ति बहुत प्रसन्न हुए और कुछ समय पश्चात उनके घर में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
- किंतु अब राजा को बच्चे के कम आयु होने की चिंता सताने लगी। राजा ने अपने पुत्र का नाम चिरायु रख दिया।
- वह माता की सेवा करते रहा प्रति मंगलवार मंगला गौरी व्रत करता रहा।
- राजा ने बच्चे की जन्म पत्री दिखाई तब विद्वान पंडितों ने सलाह दी कि आप इस का विवाह 16 वर्ष की आयु से पूर्व
- किसी ऐसी कन्या से कर दें जो मंगला गौरी व्रत रखती हो।
- क्योंकि व्रत के प्रभाव से उसे अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त रहेगा और आपका पुत्र दीर्घायु हो जावेगा।
- राजा ने ऐसा ही किया और उसका पुत्र सचमुच चिरायु अर्थात लंबी आयु वाला हो गया।
- राजा ने मंगला गौरी व्रत का विधि पूर्वक पूजन किया और माता को आभार व्यक्त किया।
- नगर में कन्याओं और सुहागिनों को भोजन कराया। तथा सुहागिनों को सुहाग की 16 सामग्रियां भेंट की।
- सर्व सुख सौभाग्य प्रदायिनी व्रत, दीर्घायु और अखंड सौभाग्य को देने वाला है।
अंत में!
हमने मंगला गौरी व्रत विधि और कथा से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी आपको देने का प्रयास किया है। जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे दूसरों को भी शेयर करें। और ऐसे ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए देखते रहें आपकी अपनी वेबसाइट
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