नमस्कार दोस्तों !! भूत पलाश के फूल कहानी संग्रह से ली गई ग्रामीण परिवेश से रंगी हुई एक रोमांचक और मनोरंजक कहानी है। यह कहानी संग्रह श्रीमती मनोरमा दीक्षित भूतपूर्व प्राचार्य मंडला द्वारा लिखी गई है। आइए आनंद लेते हैं पलाश के फूल कहानी संग्रह से ली गई कहानी भूत का-
भूत पलाश के फूल
गांव के बाहर नदी के किनारे लगे पुराने विशालकाय पीपल पेड़ पर ढेरों पक्षियों ने अपना बसेरा बना रखा था।
वहीं बहुधा दोपहर को गांव के मनचले बेफ्रिक हो जुआ पत्ती खेलते और गांजा चिलम की तलब पूरी करते थे।
यह बैठ चना का ‘होरा’ धनिया-नमक के साथ ये लोग अक्सर खाते-पीते थे,
परन्तु इस पेड़ के बाद घना जंगल शुरू हो जाता था,
जहाँ अंधेरा होते ही जंगली जानवरों की भयावह आवाजें आने लगती थीं,
अतः रात में तो वह स्थान भूतों का डेरा सा बन जाता था।
शिवलाल, सोहन, माही और ..
(भूत पलाश के फूल)
भी खेत खार से फुर्सत हो, घर के गाय-गोरु चराने उसी ओर ले जाते थे।
दोपहर को सब जानवर छाया में सुस्ताने बैठ जाते थे और ये दोस्त ताश खेलने में मशगूल हो जाते थे।
घर परिवार के सुख-दुख की बातें भी ये दोस्त यहीं बैठकर करते थे।
किस्सा कहानी, प्रेम मोहब्बत बैर अदावत और भूत-प्रेत की कपोल कथाओं को वे आपस में चटखारे ले लेकर कहते सुनते थे।
इनमें सोहन सबसे निडर था, वह भूत-प्रेत के किस्से नमक मिर्च लगाकर अपने दोस्तों को सुनाता था।
न जाने आज शिवलाल को क्या सूझा और उसने सोहन से प्रश्न दागा-
“अच्छा बता यार सोहन, क्या तूने भूत से बात की है?” “क्यों नहीं ? मैं तुम लोगों सा डरपोक तो हूं नहीं,
मैं तो कई बार भूत से आमने-सामने बात कर चुका हूँ” शेखी बघारते हुए सोहन ने जवाब दिया।
बहरहाल उन चारों के बीच एक शर्त लगी, जो भुतहा पीपल की जड़ के पास यह खील, रात को बारह बजे गड़ाकर
सही सलामत लौट आवेगा, उसे हम सब 500 रुपये नगद इनाम देंगे।
छोटी परिस्थिति में जीवन जीने वाले इन अल्प शिक्षित बेरोजगारों के लिए पांच सौ रुपये की रकम कुछ मायने रखती थी।
बहादुर सोहन ने आगे बढ़कर चुनौती स्वीकार की सभी
अपने घर जाकर आधी रात को भूत के साक्षात्कार की कल्पना में डूब गए।
• भुवन भास्कर अस्ताचलगामी हो चुके थे! (भूत पलाश के फूल)
और कुछ ही क्षणों में निशाने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी ।
सोहन ने सार में जाकर तीनों गायों और बैल जोड़ी को सानी पानी दिया,
उनकी पीठ सहलायी तथा मिट्टी तेल की ढिबरी के सहारे गाए दुहने लगा।
सार के पशुओं की पूरी साज संभाल, बांधना छोड़ना और दवा-दारु,
पिताजी ने पुष्ट कद-काठी के सोहन को सौंप रखी थी। अब तक सोहन की मां भोजन ने बना चुकी थी ।
अतः भगवान जी के सिंहासन के पास दीपक और अगरबत्ती जला सोहन, भोजन करने लगा।
अब उसे अभियान पर जाना था, अतः धोती-कुरता पहिन, अलवाइन ओढ़,
एक बड़ा डंडा हाथ में ले वह पीपल की ओर तेजी से बढ़ा। पूरी राह सूनसान थी।
अपने रोने से नीरवता भंग करती ‘धीलू’ कुत्ते की आवाज पर संभावित अनिष्ट से आशंकित सोहन का दिल
तेजी से धड़कने लगा। तभी जमीन में बिछ गये सूखे पत्तों की सरसराहट के साथ कोई चीज उसके पैर से टकरायी,
जिसके गुदगुदे स्पर्श से उसके होश फाख्ता हो गये। “कौन है रे” की बड़बड़ाहट से सोहन को पता चला कि
इस अंधकार में जमीन पर और कोई नहीं, बल्कि ननकू पागल था।
उसके तीनों साथी रास्ते के नाले में छिपकर उसकी दुर्गति पर हँस रहे थे।
रात ओस से भींग चुकी थी, अब वे सब ठंड से ठिठुरने लगे थे,
अतः शिवलाल, माही और सुमरन तीनों आंगन के जलते अधहरा में तापते, सोहन के वापिस आने का इंतजार करने लगे ।
अचानक सोहन…
पिछले वर्ष पास के बरगद पर झूलती “अधनू” की लाश को याद कर घर घर काँपने लगा,
तभी पीपल पेड़ पर बने उल्लू के नीड़ से आती आवाज ने उसके तन में झुरझुरी पैदा कर दी।
उसकी सांस धौंकनी की तरह चलने लगी। अब वह अपने बड़बोलेपन पर बहुत पछता रहा था।
उसने खीसे से माचिस निकाल सुलगायी और उसका गहरा कश ले कुछ हिम्मत बटोरी।
इस समय वह ….
अपनी मंजिल के काफी निकट था। किन्तु क्षण भर के लिए तेज प्रकाश के बाद पुन गहन अंधकार छा गया ।
और नजदीक खड़े चीड़ के लम्बे पेड़ पर कुछ अस्पष्ट बुदबुदाहट सुनायी दी।
यहां सोहन के दोस्तों की निगाह घड़ी के काँटों पर टिकी थी जो कुछ क्षण में बारह पर स्थिर होने वाले थे।
अधहरा की लकड़िया बुझने लगी थी अतः वे उनकी राख झड़ा ही रहे थे कि
तभी हांफता, पसीने से तरबतर अपनी खुली हुई धोती को किसी प्रकार घसीटता
“बचाओ बचाओ” की आवाज के साथ सोहन धम्म से आंगन में गिरकर बेहोश हो गया।
उसकी सारी हेकड़ी निकल गयी थी। उसकी धोती भी गीली हो गयी थी।
उसकी हालत देख हंसी मजाक का सारा माहौल एकदम गंभीर हो गया।
माही चटपट अंदर जाकर पानी लाया। सोहन पर पड़े ठंडे छीटों ने उसमें चेतना वापिस लायी।
सुमरन ने आंगन की निर्धूम वह्नि पर ही चाय बनायी, जिसे पीकर सोहन स्वस्थ हुआ
“भैया, मैने पीपल की जड़ पर खील तो ठोंक दी, पर ज्यों ही लौटने लगा, भूत ने मेरी धोती पकड़ ली, उठने न देता था,
बड़ी मुश्किल से भगा हूँ धोती छुड़ाकर।”
एक ही सांस में अपनी फटी धोती दिखाकर सोहन ने अपनी बड़ी बड़ी आंखों में भूत की पूरी तस्वीर ही उतार दी थी।
आधी रात बीत चुकी थी ….(भूत पलाश के फूल)
और सभी भयभीत थे, अतः वे सुबह के इन्तजार में सुमरन की परछी में ही सो गये।
वनांचल की बलि की तरह सुबह ही यह खबर पूरे गांव में फैल गयी।
थोड़ी देर में गांव के सभी बूढ़े बच्चे, भुतहा पीपल के नीचे खड़े थे।
सब यह देखकर भौचक्के रह गये थे कि सोहन द्वारा ठोके गये खीले में दबकर धोती का एक छोर भी ठुक गया था,
इसीलिए वापिसी में सोहन अपनी जगह से उठ न पा रहा था।
वहां का नजारा देखकर सभी समझ चुके थे कि सोहन के साथ क्या हुआ था ?
शर्त में हारा सोहन चुपचाप नीची निगाह किये खड़ा था,
जबकि सभी लोग सोहन के भूत के करिश्मे पर जोर जोर से हंस रहे थे।
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नमस्कार! मैं रेखा दीक्षित एडवोकेट, मैं एडवोकेट ब्लॉगर व युट्यूबर हूं । अपने प्रयास से अपने पाठकों के जीवन की समस्याओं को दूर कर ,जीवन में उत्साह लाकर खुशियां बांटना चाहती हूँ। अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर मैंने अपने ब्लॉक को सजाया संवारा है, जिसमें आपको योग ,धार्मिक, दर्शन, व्रत-त्योहार , महापुरुषों से संबंधित प्रेरक प्रसंग, जीवन दर्शन, स्वास्थ्य , मनोविज्ञान, सामाजिक विकृतियों, सामाजिक कुरीतियां,धार्मिक ग्रंथ, विधि संबंधी, जानकारी, स्वरचित कविताएं एवं रोचक कहानियां एवं स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां उपलब्ध हो सकेंगी । संपर्क करें : info.indiantreasure@gmail.com