बालकविता संग्रह बाल रश्मि - कवि रवींद्रनाथ श्रीवास्तव "प्रशांत"!! Total Post View :- 818

बालकविता संग्रह बाल रश्मि – कवि रविंद्रनाथ श्रीवास्तव “प्रशांत”!!

नमस्कार दोस्तों !! बालकविता संग्रह बाल रश्मि कवि रवीद्रनाथ श्रीवास्तव “प्रशांत” जी द्वारा लिखा गया है। जिसमें बालकों को प्रेरित करने वाली मौलिक कविताएं बड़े ही सरल शब्दों में लिखी गई हैं।

कवि साहित्यकार शिक्षाविद एवं पूर्व प्राचार्य स्वर्गीय रविंद्रनाथ श्रीवास्तव “प्रशांत” द्वारा बच्चों की ज्ञानवर्धक कविताओं को संकलित किया गया है। सरल सहज शब्दों या भाषा भाव शैली से युक्त कविताएं बाल मन के हृदय को समझने में आसान कविताएं हैं। आइए बालकविता संग्रह बाल रश्मि से दो कविताएं आपके लिए प्रस्तुत करते हैं।

बाल कविता संग्रह बाल रश्मि कवि स्वर्गीय श्री रविंद्र नाथ श्रीवास्तव प्रशांत

बालकविता संग्रह ‘बाल रश्मि’ “कोकिल”!


कुहू कुहू करती कोयल तुम्

विजन देश से आती हो।

अपने इस सुमधुर स्वर से

सबका चित्त चुराती हो ।।

छोटी सी है कुटिया मेरी,

छोटा सा आँगन उस पर

छोटा सा मन मन्दिर मेरा,

करो मौज उसमें उड़कर ।।

आओ उड़कर हम तुम दोनों,

छू लें ‘रवि के कर सुकुमार।

घूम घूमकर दशों दिशा में,

करने जावें प्रेम प्रचार ।।

एक बार फिर से तो बोलो,

कोकिल अपने मीठे बोल।

मेरे दुखी हृदय में झट से,

आकर तो दो अमृत घोल ।।

प्रात ही उठकर करता हूँ।

सदा तुम्हारा ही में ध्यान।

मुझको अपना लेने में क्या.

होवेगा तेरा अपमान।।

मेरी भी इच्छा होती है,

छोड़ जगत् के सब व्यवहार ।

उड़ जाऊँ मैं उस प्रदेश में ,

जहाँ नहीं है दुर्व्यवहार ।।

पिंजड़े में, मैं नहीं रखूँगा,

कभी न दूँगा तुमको कष्ट ।

आज तुम्हारा रूप हृदय में,

है दिखलाई देता स्पष्ट ।।

कोकिल ! इस निर्धन की पूजन,

को आकर कर लो स्वीकार ।

किन्तु छोड़कर मुझे अकेले,

चलीं कहाँ तुम पंख पसार ।।

“मेरा बगीचा” !

फल फूलों से भरा हुआ है,

मेरा एक बगीचा ।

हरियाली हरदम दिखती है,

मानो बिछा हरा गलीचा ।।

बाल अरुण के उदय पूर्व ही,

मैं सोकर उठ जाता हूँ।

घूम घूम कर नित उसमें मैं,

अपना मन बहलाता हूँ ।।

प्रात- समीर ले सुगन्ध जब,

यहाँ वहाँ बिखराता है।

तब उससे अलि-वृन्द मस्त हो,

अपनी छटा दिखाता है ।।

पुष्पों की सुगन्ध पाकर,

आत्म-विभोर हो जाता हूँ।

नित्य जिसे सेवन कर मैं,

नव-प्राण पुनः पा जाता हूँ ।।

वायु स्पर्श से धीरे धीरे

जब सब पौधे हिलते हैं।

प्रिय का स्वागत मानों तब वे

शीश झुकाकर करते हैं ।।

नई नई शोभा से वे सब,

नया रूप झलकाते हैं।

प्रकृति के नए कार्यकलाप,

का भान हमें कराते हैं ।।

टोकनी ले जब माली आता,

वे सहर्ष गिर जाते हैं।

पाने प्रभु का प्यार अलौकिक,

सबके सब मिट जाते हैं।

सुन्दर हार बना फूलों का,

पुजारी नित्य चढ़ाता है।

दुर्लभ पद-रज पाने को,

पुष्प सकल निज खोता है ।।

प्रस्तुत हिंदी कविताएं बाल कविता संग्रह बाल रश्मि स्वर्गीय श्री रविंद्र नाथ श्रीवास्तव प्रशांत द्वारा लिखा गया है

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