? श्रीमद्भगवद्गीता एवं श्रीमद्भागवत पुराण में क्या अंतर है ?
आज बहुत से लोग श्रीमद्भगवद्गीता एवं श्रीमद्भागवत पुराण के बीच अंतर को नहीं समझ पाते कुछ प्रश्न ऐसे भी हैं की
श्रीमद्भागवत गीता को कृष्ण पुराण क्यों नहीं कहा जाता ?
यह जानने के पहले हमें पुराण क्या है और
पुराण किसे कहते हैं ?
यह जानना जरूरी है । हमारे सनातन धर्म में 18 पुराण माने गए हैं और इन पुराणों में हमारी समस्त संस्कृति का निचोड़ या सार लिखा गया है ।
तथा जीवन में जितने भी आयोजनों के द्वारा हम अपने जीवन को सुगम बनाते हैं । उन सारी चीजों के सम्बन्ध मेंं शास्त्र पुराणों में लिखे गए हैं ।
? वेद चार हैं वेदों की भाषा कठिन होने के कारण सामान्य वर्ग को समझ में आना मुश्किल होता था अतः उसका सरलीकरण करके पुराण बनाए गए ।
पुराण से तात्पर्य है पुराना जो भी पुराना साहित्य है वही पुराणों में पाया जाता है जिसमें अथर्व वेद सामवेद यजुर्वेद और ऋग्वेद के सारे विषय सलिप्त है ।
इसके साथ साथ पुराणों में देवी देवताओं का पुरातन इतिहास लिखित किया गया है । अलग-अलग देवी-देवताओं के नाम से जो पुराण लिखे गए हैं, उनमें उन्हीं देवी देवताओं को प्रमुख माना गया है।
? इस तरह से पुराण 18 प्रकार के होते हैं। जिनके नाम निम्नानुसार हैं।ब्रम्हपुराण, पद्मपुराण, विष्णुपुराण, वायु पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण,अग्निपुराण, भविष्यपुराण, ब्रम्हवैवर्तपुराण, लिंग पुराण, वराहपुराण, स्कन्दपुराण,वामन पुराण, कूर्मपुराण, मत्स्यपुराण, गरुड़पुराण, ब्रम्हाण्डपुराण।
क्या है श्रीमद्भगवत पुराण ?
? श्रीमद्भागवत पुराण में कृष्ण जी के जन्म से लेकर के उनकी समस्त जीवन लीलाओं के बारे में उल्लेख किया गया है इसी में उनकी लीलाओं का उल्लेख करते हुए संपूर्ण जीवन दर्शन को बताया गया है एवं कृष्ण चरित्र का वर्णन किया गया है ।
श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान श्री कृष्ण को ही एकमात्र परमेश्वर माना जाकर उनकी ही लीलाओं की चर्चा की गई है ।श्रीमद्भागवत पुराण अत्यंत रोचक एवं कृष्ण भक्ति से ओतप्रोत ग्रंथ है। जिसका साप्ताहिक वाचन हमारे हिंदू धर्म में लगभग प्रत्येक घरों में समयानुसार किया जाता है।
? श्रीमद्भागवत पुराण के जरिए व्यक्ति में एक सुंदर व्यक्तित्व की संरचना को प्रदर्शित किया जाकर बहुत कुछ सीखने को मिलता है ।
साथ ही ईश्वर के मानव अवतार को देखकर उनके कर्म योग और ज्ञान योग के तत्व को जानकर मनुष्य अपने जीवन में सुंदर तम परिवर्तन लाकर मनुष्य जीवन की श्रेष्ठतम ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकता है ।
एवं परमात्मा से स्वयं को जोड़ने का अद्भुत अनोखा व रुचिकर भक्ति मार्ग अपनाकर सुखमय जीवन को प्राप्त कर सकता है।
? श्रीमद्भागवत पुराण में श्रीकृष्ण को ही परमेश्वर माना जाकर कृष्णभक्ति व प्रेम का चित्रण किया गया है ।
भगवान के विभिन्न अवतारों का वर्णन किया गया है।श्रीकृष्ण के लीलावतारों का बृहद चित्रण किया गया है।
?इसके अलावा श्रीमद्भागवत पुराण श्रीकृष्ण के प्रयाण के पश्चात का ग्रन्थ है। इस प्रकार पुराण हमे जीवनदर्शन,अध्यात्म व भक्ति का संदेश देता है। यह अत्यंत ही संक्षिप्त परिचय श्रीमद्भागवत पुराण के सम्बंध में है।
श्रीमद्भगवत गीता में क्या है ?
? श्रीमद्भगवत गीता स्वयं श्रीकृष्ण की वाणी है। सनातन धर्म के दो महाकाव्य हैं, रामायण व महाभारत। आइये जानते हैं,
गीता का उद्भव कब, क्यों, और कैसे हुआ ?
श्रीमद्भागवत गीता नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक गीत है जिसे हम महाकाव्य के नाम से भी जानते हैं । श्रीमद्भागवत गीता महाकाव्य है ।
श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता को गीत के रूप में अर्जुन को सुनाया था इसीलिए इसका नाम गीता पड़ा । गीता में 18 अध्याय हैं ।
कौरव पाण्डव का जन्म
? आज से 5000 वर्ष पूर्व कलयुग की शुरुआत में कुरु वंश के राजा भरत जिनके नाम से महाभारत नाम पड़ा था उन्हीं के वंशज धृतराष्ट्र और पांडु थे ।
धृतराष्ट्र और पांडु सगे भाई से किंतु धृतराष्ट्र बड़े होते हुए भी अंधे होने के कारण राजगद्दी प्राप्त नहीं कर सके और उनके छोटे भाई पांडु को राज्याभिषेक किया गया ।
किंतु अल्पायु में ही पांडु की मृत्यु हो जाने के कारण उन्हें राज्य का भार धृतराष्ट्र को दिया गया एवं पांडु के पांच पुत्रों युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल सहदेव इनकी जिम्मेदारी भी धृतराष्ट्र पर पड़ी तथा धृतराष्ट्र के सौ पुत्र कौरव कहलाए, पांडु के पांच पुत्र पांडव कहलाए ।
कौरवों का छल
? दोनों ही एक ही महल में रहते हुए पले बढ़े और एक ही गुरु आचार्य द्रोण से शिक्षा प्राप्त करके बड़े हुए । किंतु अत्यंत महत्वाकांक्षी होने के कारण धृतराष्ट्र एवं उनके जेष्ठ पुत्र दुर्योधन ने कभी भी पांडवों को उचित सम्मान और प्रेम नहीं दिया ।
तथा हमेशा उनके साथ छल बल का प्रयोग करते रहे एवं मृत्यु तक करने का प्रयास किया । मामा शकुनि के साथ मिलकर के दुर्योधन ने पांडवों को जुआ में छल से हराया ।
तत्पश्चात उनकी पत्नी द्रोपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र कर अपमानित करने का प्रयास किया जहां पर श्री कृष्ण के हस्तक्षेप से द्रौपदी के सम्मान की रक्षा हुई ।
किंतु जुए में समस्त राज्य हार चुकने के कारण युधिष्ठिर सहित पांचों पांडवों को 13 वर्ष का वनवास भोगना पड़ा ।
दुर्योधन का हठ तथा युध्द
? वनवास से लौटने के पश्चात जब उन्होंने दुर्योधन से अपने मात्र 5 गांव की मांग की , तब दुर्योधन ने अहंकार से कहा कि वह एक सुई की नोंक के बराबर भी जमीन नहीं देगा।
जिसके कारण आपस में युद्ध की स्थिति आ गई। जिसमें संधि करने का प्रयास भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं शांति दूत बनकर किया किंतु दुर्योधन नहीं माना अंतिम युद्ध की स्थिति आई ।
? कुरुक्षेत्र को युद्ध स्थल निर्धारित किया जाकर दोनों पक्षों की सेनाएं आमने सामने आकर खड़ी हो गई इसके पश्चात अर्जुन के द्वारा अपने विपक्षियों में अपने गुरुओं को अपने पुत्र पुत्रों को बंधुओं को शाखाओं को मित्रों को देख कर के मन में ग्लानि पैदा हुई।
युध्दस्थल में अर्जुन का शोक
और वह शोक करने लगा कि मैं अपने संबंधियों के साथ युद्ध नहीं करूंगा । उन्हें मार कर के मुझे यदि स्वर्ग भी प्राप्त हो तो भी मैं उनका वध नहीं करूंगा ।इस प्रकार शोकाकुल हो करके अर्जुन ने अपने धनुष को नीचे रख दिया और बैठ गए ।
? उस समय भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश सुनाया था। जिसमें कर्मयोग ज्ञानयोग और भक्तियोग का दर्शन कराते हुए अपने विराट रूप को अर्जुन को दिव्य दृष्टि दे कर दिखाया था ।
तथा यह बताया था कि यह सारे तुम्हारे कुटुंबी मुझ में पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं । इसीलिए हे अर्जुन तुम शोक मत करो और युद्ध करो ।
श्रीकृष्ण का अर्जुन को उपदेश
इस प्रकार कर्म करना ही तुम्हारा कौशल है । इसे क्षत्रिय होने के नाते तुम्हें पूर्ण करना होगा और यह सारे कृत्य करते हुए तुम अपने सारे कर्म मुझे समर्पित कर दो इस प्रकार गीतमय संदेश अर्जुन को दिया था। जिसे भागवत गीता कहा गया।
? इसने 18 अध्याय हैं । जिसमें अध्याय 2 में समस्त गीता का सार बताते हुए कर्मयोग ज्ञानयोग और कुछ अंशों में भक्ति योग के बारे में श्री कृष्ण अर्जुन से वार्ता करते हैं ।
सम्पूर्ण गीता के प्रत्येक अध्याय को श्लोक व अर्थ सहित सुनने के लिए लिंक में क्लिक (टच) करें ???
तथा अर्जुन के प्रश्नो का उत्तर देतें है। तथा एक दार्शनिक की भांति जीवन दर्शन की व्याख्या कर अर्जुन को कर्तव्यपथ पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
इसी में वार्ता के बीच में अर्जुन के द्वारा श्रीकृष्ण से प्रश्न पूछे जाते हैं जिनका समाधान पूर्वक श्री कृष्ण उत्तर देते हैं और आगे अपने विराट रूप के दर्शन कराने के पश्चात अर्जुन के संतुष्ट होने पर उन्हें अपने मनोहारी रूप में वापस आते हैं और फिर अर्जुन तत्व ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात युद्ध के लिए तैयार होते हैं ।
? अर्थात गीता मात्र उस एकमात्र उस क्षण का उपदेश है जो कि अर्जुन के द्वारा अपने विपक्षियों को देखकर शोकाकुल अवस्था में अपने कर्तव्य से विमुख होने पर श्री कृष्ण के द्वारा दिया गया था ।
श्रीमद्भगवत गीता व श्रीमद्भगवत पुराण में अंतर
- इसे कृष्ण पुराण नहीं कह सकते क्योंकि यह पुराण (पुराना) नहीं है ।
- यह कृष्ण उपदेश है और यह उपदेश गीतमय ढंग से दिया गया था इसीलिए इसे गीता कहा गया और भागवत गीता को महाकाव्य की संज्ञा दी गई है ।
- पुराण के अनुसार पुराणों में ईश्वर के संपूर्ण चरित्र का वर्णन किया जाता है ।
- किंतु भागवत गीता में कृष्ण के संपूर्ण चरित्र का वर्णन नहीं है । यहां पर मात्र उस स्थिति का वर्णन है अर्जुन की दशा का वर्णन है ।
- जिसमे श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन को उनका कर्म करने के लिए प्रेरित किया गया तथा अर्जुन को मानव जीवन के कर्तव्यों को समझाया है।
- अतः इसे कृष्ण पुराण नहीं कहा जाता। भगवत गीता अपने आप में एक परम पवित्र ग्रंथ है, जिसका अध्ययन प्रत्येक घर में प्रतिदिन किया जाता है ।
- साथ ही इसे क्योंकि स्वयं भगवान कृष्ण ने अपने मुख से कहा था इसलिए इसे कृष्ण वाणी के रूप में भी सुना जाता है।
- यह एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी है बहुत से लोग इसी भ्रम में रहते हैं कि श्रीमद्भागवत पुराण एवं श्रीमद्भागवत गीता एक ही ग्रंथ है ।
- जबकि यह दोनों भिन्न-भिन्न ग्रन्थ हैं । श्रीमदभागवत जिसे पुराण कहा जाता है । और श्रीमद्भागवत गीता कृष्ण वाणी में गीत है ।
- इस प्रकार यह दोनों ही ग्रंथ परम पवित्र एवं महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ भिन्न-भिन्न है ।
- इनके पृथक पृथक अध्ययन से ही सम्बंधित प्रश्नों के समाधान हो जाते हैं ।
- अतः इसकी जानकारी हम सभी को आवश्यक रूप से होना चाहिए।
- अतः ज्यादा से ज्यादा इस आलेख को शेयर करें ताकि भ्रम की स्थिति जो कि श्रीमद्भागवत गीता एवं श्रीमद्भागवत पुराण के सम्बन्ध में लोगों में है, वह दूर हो सके।
साथ ही मैंने छोटा सा प्रयास किया है कि इन प्रश्नों का भी समाधान हो सके कि गीता को कृष्ण पुराण क्यों नहीं कहा जाता ?
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० आलेख स्वरचित एवं मौलिक है।
✍️ श्रीमती रेखा दीक्षित एडवोकेट
सहस्त्रधारा रोड देवधारा मण्डला
नमस्कार! मैं रेखा दीक्षित एडवोकेट, मैं एडवोकेट ब्लॉगर व युट्यूबर हूं । अपने प्रयास से अपने पाठकों के जीवन की समस्याओं को दूर कर ,जीवन में उत्साह लाकर खुशियां बांटना चाहती हूँ। अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर मैंने अपने ब्लॉक को सजाया संवारा है, जिसमें आपको योग ,धार्मिक, दर्शन, व्रत-त्योहार , महापुरुषों से संबंधित प्रेरक प्रसंग, जीवन दर्शन, स्वास्थ्य , मनोविज्ञान, सामाजिक विकृतियों, सामाजिक कुरीतियां,धार्मिक ग्रंथ, विधि संबंधी, जानकारी, स्वरचित कविताएं एवं रोचक कहानियां एवं स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां उपलब्ध हो सकेंगी । संपर्क करें : info.indiantreasure@gmail.com
बहुत शानदार…. बहुत बढ़िया लेख very interesting and informative
बहुत बहुत धन्यवाद?
Learned something new today… Keep going!!
Thankyou,?
This blog shows how thouroughly you read before posting. ???
Thankyou
Atiuttam
गीता के चरण कौन कौन से है
इसके बारे मे कुछ विस्तार से जानकारी दीजिए
🙏 जी