कहानी पेज की हांडी : कथा संग्रह पलाश के फूल से उध्दरित! Total Post View :- 952

कहानी पेज की हांडी : कथा संग्रह पलाश के फूल से उद्धरित!

कहानी पेज की हांडी – श्रीमति मनोरमा दीक्षित

नमस्कार दोस्तों! “कहानी पेज की हांडी” अभावों भरे ग्रामीण समाज का सजीव चित्रण करती है। ग्रामीण भाषा में अभावों और छोटी-छोटी खुशियों का मार्मिक चित्रण जिसे सेवानिवृत्त प्राचार्य श्रीमती मनोरमा दीक्षित ने अपने भावों से सराबोर कर मन को सुकून पहुंचाने वाला एहसास प्रस्तुत किया है तो चलिए पढ़ते हैं कहानी पेज की हांडी

पेज की हांडी (कहानी)

पेज की हांडी को चूल्हे से उतारकर पीतल की टठिया में जुड़वा कर सुम्मो ने लाखिया को जोर से बुलाया-

या पेज भाजी पी लेबे तब्बई जावे अस्कूल, चकोड़ा भाजी औ पिसी नून रखिस हवय।

“तैं रोजई रोज पेज पिवाथै”

मैं दादी (आजा) घर जाऊं वा मोला बिस्कुट देही, लखिया ने गुस्सा कर जवाब दिया ।

डबडबाई आँखों को अपनी धोती से पोंछती सुम्मो, बिना बाप की इस बेटी की बातों से बड़ी दुखी हुई।

तैं पढ़ लिख लेबे बेटी मोर हस मूरख झैँ रहबे। साहबिन बनवे ता, बरा-सुंहारी खावे। सुम्मो ने बेटी को दिलासा दिया।

पर लखिया का बाल मन कहां मानता? वह खीजकर बोली, दाई मैं दार-भात खाहूं दार-भात।

तैं मोला नानी घर भेज देवे। मैं ओखर पास पढ़वो।

सुम्मो लखिया को समझाती है।

“तैं मोर कहे ला पतियाही बेटी, खूब पढिही ता तोला सबै कुछु मिलिही। तैं मोटर गाड़ी में बैठिही बेटी”।

सुमो ने समझा-बझाकर उसे स्कूल भेजा। कल लखिया हरी पीली प्लास्टिक की पानी की बोतल के लिए मचल गई थी।

मन ही मन दुखियाती सुम्मो खुंटी खोलकर चिल्हर गिनने लगी।दस कर एक नोट, दुई पांच और तीन एक रुपैया कर सिक्का।

वह मांगू की दुकान गई। वहां सुम्मो ने लाइन से लगी रंग बिरंगी प्लास्टिक की बोतल का दाम मांगू से पूछा।

“काकी बीस रुपये की है तुम दे दो समझ के” मांगू बोला!

सुम्मो बीस रुपये में एक पानी की बोतल और दो रुपये वाला बिस्कुट पैकेट लेकर स्कूल पहुँची।

स्कूल में सब बच्चे लाइन से बैठे मध्यान्ह भोजन कर रहे थे। बच्चों को भात दाल रोटी और सब्जी खाते देख सुम्मो मुंह बाए खड़ी रह गई।

स्कूल की बहन जी बोली –

अरे सुम्मो कैसे आई?

बहन जी के आवाज से चेती सुम्मो ने हड़बड़ा कर कहा-

“वा लखिया ला या प्लास्टिक की बोतल मा पानी लाय हों बाई जी!”

अरे यह तो बड़ी सुंदर है और यह बिस्कुट क्या हमें खिलाने लाई हो? बहन जी हंस कर बोली!

“मोर लखिया नहीं दिखा परै बाई जी! सुम्मो ने मन की बात कह दी।

“लखिया यहां आना” सुधा बहन जी ने आवाज लगाई!!

पर यह क्या सफेद शर्ट और मैरून स्कर्ट पहिने दाल भात से सनी उंगलियों को चाटती लखिया हंस रही थी।

“या नवा नवा कपड़ा कहां ले पाईस तैं?” सुम्मो ने आश्चर्य से पूछा!!

खुशी में डूबी लखिया बिना रुके बोल उठी- गुरु जी हम सफ्फन ला दीहिस हैं। या किताबौं, पेन्सिलौ मिलिस हवय दाई”!

सुम्मो यह सब देख बहिनजी के पैर पड़ने लगी। “धन्न हवय जेन टुरियन ला खवाथै पहिनाथै, औ सिलेट किताबौ देथै।

अरे सुनो तुम भी तो जरा चखो कि हम कैसा खाना तुम्हारी बेटी को खिला रहे हैं। बहन जी ने अपनी बात पूरी की।

मध्यान भोजन की जांच करने आए सरपंच जी भी तश्तरी में बहुत थोड़ा सा खाना चख रहे थे।

गांव के स्कूल में जब से मध्यान्ह पौष्टिक भोजन मिल रहा है कुपोषण की समस्या समाप्त होती जा रही है।

अब लखिया को “दार भात” खाने के लिए नानी के घर जाने की जरूरत नहीं है।

मध्यान्ह भोजन और स्कूलों में मिलती मुफ्त शिक्षा से ग्रामीणों के जीवन में सुख की एक छोटी सी झलक देती कहानी पेज की हांडी आपको कैसी लगी अपने विचारों को कमेंट के माध्यम से अवश्य प्रेषित करें।

ऐसी ही रोचक कहानियों को पढ़ने के लिए देखते रहे आपकी अपनी वेबसाइट

http://Indiantreasure. in

अन्य विषयों से संबंधित पोस्ट भी अवश्य पढ़ें!

महर्षि वाग्भट्ट के 5 नियम ; आपको कभी बीमार नहीं होने देंगे!

किसी भी पूजा की तैयारी कैसे करें ?

एलोपेसिया एरीटा क्या है ; बाल झड़ने की बीमारी गंजापन या इंद्रलोप का इलाज कैसे करें !

भूलने की बीमारी अम्नेसिया : जाने कारण लक्षण और बचाव?9

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!