पूजा में आरती का महत्व क्या है Total Post View :- 2535

आरती कैसे करते हैं

क्या आप जानते हैं ,”आरती कैसे करते हैं”। इसका क्या महत्व है। कब करनी चाहिए आरती । ऐसे कई प्रश्नों का उत्तर आज आपको इस लेख में  मिलेंगे। 

यह भगवद आराधना का विशेष तरीका है। जिसमें दीपज्योति के माध्यम से हम ईश्वर से स्वयं को एकाकार करते हैं।

     आरती में रुई की बत्ती व घी का प्रयोग करें!
आरती कैसे करते हैं

 “आरती कैसे करते हैं” और इसके क्या लाभ हैं। ऐसे अनेकों प्रश्नों के उत्तर आज आपको मिलेंगे।

ईश्वर के प्रति अनन्य श्रद्धा व प्रेम प्रदर्शित करने का बेजोड़ तरीका है आरती!

भक्ति और पूजा के विशेष काल चतुर्मास में हम ईश्वर की आराधना नित्य प्रति करते हैं।

नित्य पूजा पद्धति में आरती का विशेष स्थान है। लगभग प्रत्येक घरों में आरती की जाती है।

ऐसा माना जाता है की ईश्वर की पूजा के पश्चात अर्थात देव मूर्ति के स्नान, चंदन , वंदन, फूल ,अक्षत , भोग इत्यादि के पश्चात आरती का विधान है।

आरती के विषय मे अत्यंत महत्वपूर्ण व लाभकारी जानकारी निम्न बिंदुओं पर आप तक पहुचाने का मैंने प्रयास किया है वे बिंदु हैं….

  • आरती का महत्व!
  • प्रचलित मान्यताएं!
  • किस समय आरती करे !
  • कैसे करें आरती !
  • कैसी हो आरती की थाली !
  • आरती का रहस्य!
  • पँचदेवो की आरती की विधि!
  • माँ अम्बे जी की आरती!


आरती का महत्व!


ऐसा माना जाता है कि यदि किसी भी पूजा में करते वक्त हम मंत्र, जप, पाठ इत्यादि नहीं कर पा रहे हैं,

तब ऐसी स्थिति में हमारे द्वारा की जाने वाली आरती ही उक्त समस्त जप, मंत्र, पाठ आदि का लाभ या फल देने वाली होती है।


प्रचलित मान्यतायें!


ऐसी मान्यता है कि आरती की पांच बत्तियां पंच तत्व का प्रतीक होती है।

जल, वायु ,अग्नि, पृथ्वी, आकाश और इन्हीं की से हमारा शरीर उत्पन्न होता है, और इन्हीं पंचतत्व में हमारा शरीर विलीन भी हो जाता है।

ऐसा माना जाता है कि इन पंच बत्तियों से आरती करते वक्त जो प्रकाश का मंडल उत्पन्न होता है , वह आरती करने वाले की चारों ओर उत्पन्न हो जाता है।

और उसके जीवन को आलोकित करता है तथा उसकी जो तामसिक प्रवृत्ति हैं वह सात्विक प्रवृत्ति में परिवर्तित होने लगती हैं।

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किस समय करें आरती  !


सुबह संधि काल में आरती करने का विशेष महत्व है ।वैसे पांच संधिकाल होते हैं।

किंतु सुबह और शाम का संधि काल विशेष महत्वपूर्ण होता है।

सुबह के संधिकाल में देवताओं के आगमन का समय माना जाता है ।

इस समय हमें अत्यंत श्रद्धा के साथ प्रसन्नता पूर्वक देवताओं का आवाहन करना चाहिए और आरती के द्वारा देवताओं का स्वागत करना चाहिए।

यह संधि काल सूर्योदय के समय का होता है ,अतः सूर्योदय के समय की जाने वाली आरती हमें देवताओं का आशीर्वाद प्रदान करती है ।


इसी प्रकार संध्याकालीन सूर्यास्त के समय जो संधिकाल होता है, उस समय में तामसिक व्यक्तियों का आगमन होना शुरू हो जाता है ।

तब आरती जलाकर हम उस ज्योति मंडल को अपने चारों ओर बना लेते हैं, ताकि वह तामसिक प्रवृतियां हमारे ऊपर हावी ना होने पाए ।

इसीलिए संध्या काल में भी आरती की जानी चाहिए। इस प्रकार सुबह और शाम प्रतिदिन दो बार प्रत्येक घर में आरती किया जाना चाहिए ।

यह ध्यान रखें कि आरती के समय यदि हो सके तो परिवार के प्रत्येक सदस्य को शामिल होना चाहिए ।

जिससे परिवार में सकारात्मक प्रवृत्तियों में वृद्धि होती है और नकारात्मकता दूर होती है।


 कैसे की जानी चाहिए आरती ?


 अत्यंत श्रद्धा के साथ और पूरे भक्ति भाव के साथ आरती करना चाहिए। 

पुजारी मंदिरों मे “आरती कैसे करते हैं”,यह विधि इस प्रकार है।

 भगवान के श्री चरणों में चार बार आरती की थाल घुमाना चाहिए।

उसके बाद नाभि प्रदेश में दो बार आरती घुमाना चाहिए

मुख पर एक बार आरती की थाल घुमा कर संपूर्ण मूर्ति पर सर से लेकर पांव तक सात बार गोलाकार रूप में थाली घुमाना चाहिए ।

इसके पश्चात सभी दिशाओं में गोल घूमते हुए आरती को घुमाना चाहिए जिसको प्रदक्षिणा कहते हैं।

फिर थाल में रखे छोटे पात्र से जल लेकर आरती की थाल के चारों और जल घुमाना चाहिए।

इससे आरती शांत की जाती है। ॐ की आकृति बनाते हुए बाएं से दाएं घड़ी की सुई की दिशा में आरती घुमाना चाहिए।

कैसी हो आरती की थाली !

  •  प्रतिदिन आरती के बाद थाली धोकर दोबारा उसमें आरती की जाना चाहिए।
  •  थाली में कुमकुम ,अक्षत, पुष्प, छोटे से पात्र में गंगाजल, रखें।
  • मौली, कुछ सिक्के, मिठाई प्रसाद इत्यादि से सजाकर आरती की जानी चाहिए।
  • इसमें घी का प्रयोग किया जाना चाहिए और रुई से बत्तियां होनी चाहिए।
  • पांच बत्तियों से आरती की जाती है। विषम संख्या में आरती की बत्ती रखी जानी चाहिए जैसे 3, 5, 7 आदि।
  •  थाल पीतल तांबे या चांदी की होती है। जिसमें पांच चीजें प्रमुखता से रखी जानी चाहिए ।
  • इसके अलावा सोने या चांदी के सिक्के विशेष पूजा के अवसरों पर आरती की थाल में रखे जाते हैं।
  •  आटे की दीपक भी आरती में प्रयोग किए जाते हैं जो अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
  •  केवल यही जानना पर्याप्त नही है की “आरती कैसे करते हैं”।आरती की थाल कैसी हो। यह उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।

आरती उतारने का रहस्य क्या है!

  क्या है रहस्य आरती उतारने का? क्यों उतारी जाती हैं आरती ? जानिए-

स्त्रियां अपने पुत्र, पति व भाई के युद्ध से सकुशल घर लौटने और विजय की कामना के साथ आरती उतारती थी।

रक्षाबंधन में भाई की आरती उतारी जाती है । तात्पर्य अपने प्रिय व्यक्ति के प्रति शुभकामनाएं एवं श्रद्धा व प्रेम को प्रदर्शित करना है।

इसी प्रकार भगवान की आरती उतारते हुए यही भाव हमारे भीतर रहने चाहिए।

जिसमें ईश्वर की कुशलता श्रद्धा प्रेम व अपने हृदय में निरंतर वास करने की कामना करें।

 अत्यंत श्रद्धा के साथ ईश्वर की आरती की जाना चाहिए।

पँचदेवो की आरती की विधि!


पँचदेवो की “आरती कैसे करते हैैं”? देेेवमंत्रों के अक्षर संख्या पर आधारित होती हैं आरती की संख्या। इस क्रम में भगवान विष्णु के मंत्र

श्री विष्णुजी

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !द्वादश अक्षरी होने से 12 बार श्री विष्णु की आरती करने की मान्यता है।

शिव जी

का मन्त्र नमः शिवाय! पंचाक्षरी मन्त्र है। तथा शिव परिवार ( शिव पार्वती,गणेश, कार्तिकेय,व नन्दी) भी संख्या में 5 है। अतः शिवजी की आरती 5 बार घुमाया जाता है।


माँ दुर्गा

दुर्गा के 9 रूप हैं। जिसमें 9 शक्तियाँ विराजमान है।दुर्गा जी का नवार्ण मन्त्र महामंत्र कहलाता है।


सूर्यदेव

की सात किरणें पूरे जगत को प्रकाशित करती हैं।तथा अपने सात घोड़ों वाले रथ में विराजमान है। सूर्यदेव की आरती सात बार घुमाने की मान्यता है।


श्री गणेश
श्री गणेश जी का जन्म भी चतुर्थी को हुआ था। तथा वे चतुर्थी के आदिष्ठाता माने जाते है। समस्त चतुर्थी पर उनका अधिकार है। अतः गणेशजी की चार बार आरती उतारनी चाहिए।


अन्य देवता
इसके अतिरिक्त अन्य देवताओं की आरती कम से कम 7 बार अवश्य की जानी चाहिए।

देवताओं की आरती उतारने की संख्या अधिक हो सकती है। किन्तु कम नही होनी चाहिए।

नवरात्रि में भक्ति भाव से करें माँ दुर्गा की आरती

  • जय अंबे गौरी मैया जय श्यामा गौरी
  • मैया जय मंगल करणी मैया जय आनंद करणी
  • तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ,ओम जय अंबे गौरी
  • मांग सिंदूर विराजत टीको मृग मद को
  • उज्जवल से दो नैना चंद्र बदननीको ओम जय अंबे गौरी
  • कनक समान कलेवर रक्तांबर राजे
  • रक्तपुष्प गले माला कंठन् परसाजे,ओम जय अंबे गौरी
  • केहरी वाहन राजत खड्ग खप्पर धारी
  • सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी, ओम जय अंबे गौरी
  • कानन कुंडल शोभित नासाग्रे मोती
  • कोटिक चंद्र दिवाकर राजत सम ज्योति, ओम जय अंबे गौरी
  • शुंभ निशुंभ बिदारे महिषासुर घाती
  • धूम्र विलोचन नैना निशदिन बदमाती ओम जय अंबे गौरी
  • चंड मुंड संहारे शोणित बीज हरे
  • मधु कैटभ दोउ मारे सुर भय हीन करे, ओम जय अंबे गौरी
  • ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी
  • आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी ओम ,जय अंबे गौरी
  • चौसठ योगिनी गावत नृत्य करत भैरों
  • बाजत ताल मृदंगा और बाजत डमरू ,ओम जय अंबे गौरी
  • तुम ही जग की माता तुम ही हो भरता
  • भक्तन की दुख हर्ता सुख संपति कर्ता ,ओम जय अंबे गौरी
  • भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी
  • मन वांछित फल पावत सेवत नर नारी, ओम जय अंबे गौरी
  • कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती
  • श्रीमाल केेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ,ओम जय अंबे गौरी
  • जय अंबे जी की आरती जो कोई नर गावे,
  • कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे, ओम जय अंबे गौरी
  • जय अंबे गौरी मैया जय श्यामा गौरी
  • तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ओम
  • जय अंबे गौरी

ऐसी अन्य जानकारियों के लिए अवश्य देखें👇👇

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आशा है आपको यह लेख “आरती कैसे करते हैं” अवश्य अच्छा लगा होगा।

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15 thoughts on “आरती कैसे करते हैं

  1. अंत में आरती देकर बहुत अच्छा किया आपने!!
    जय माता दी!!!????

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