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आमलकी एकादशी व्रत पूजा; महत्व व पूजनविधि! Amalaki Ekadashi fasting worship; Importance and worship!

आमलकी एकादशी व्रत पूजा फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी को की जाती है।

आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का निवास होने के कारण आज आंवले का पूजन किया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि आंवले के वृक्ष में ऊपर के भाग में ब्रह्मा जी का निवास है।

मध्य भाग में शिव जी का निवास और जड़ में विष्णु जी निवास करते हैं।

इसीलिए इस एकादशी व्रत को शिव भक्त और विष्णु भक्त दोनों ही बड़े श्रद्धा से मनाते हैं।

इस लेख में आप पाएंगे

  • आमलकी एकादशी कब है।
  • पूजनविधि क्या है।
  • कौन सी व्रतकथा कहते है।
  • व्रत का पारण कैसे करते हैं
  • इस व्रत का महत्व क्या है।

आमलकी एकादशी कब है।When is Amalaki Ekadashi?

  • आमलकी एकादशी उपवास का प्रारम्भ 3 मार्च 2023, दिन शुक्रवार 6.42 प्रातःकाल।
  • पारण समय 4 मार्च 2023 शनिवार 6.41 से 10.35 सुबह तक

पूजन विधि क्या है What is the worship method

  • सर्वप्रथम व्रत रहने वाले को प्रातः काल स्नान के जल में गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए।
  • गंगाजल से संपूर्ण घर में छिड़ककर घर को भी पवित्र कर लेना चाहिए।
  • फिर स्नान आदि से शुद्ध होकर पूजा के जल में भी गंगा जल डालें तथा आंवले के वृक्ष को स्नान कराएं।
  • फिर वृक्ष का धूप दीप चंदन रोली पुष्प अक्षत आदि से पूजन करें।
  • वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।
  • इस दिन आंवला खाना तथा आंवले का दान करना उत्तम उत्तम बताया गया है।

कौन सी व्रत कथा कहते है Which fast story do you tell?

  • प्राचीन काल में भारत देश में चित्र सेन नामक राजा राज करते थे।
  • उनके राज्य में एकादशी व्रत का बहुत महत्व था । समस्त राजा प्रजा एकादशी व्रत किया करते थे।
  • एक दिन वह राजा जंगल में शिकार खेलते खेलते काफी दूर निकल गया।
  • तभी कुछ जंगली जातियों ने उन्हें आकर घेर लिया। म्लेच्छों ने राजा के ऊपर अस्त्र शस्त्रों का कठिन प्रयोग किया ।
  • किंतु राजा को कोई कष्ट नहीं हुआ। यह देखकर वे सब आश्चर्यचकित रह गए।
  • जब उन जंगली जातियों की संख्या देखते ही देखते बहुत बढ़ गई ।
  • तो राजा संज्ञा हीन होकर पृथ्वी पर धराशाई हो गए। उसी समय उनके शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई।
  • जो उन समस्त राक्षसों को मार कर अदृश्य हो गई। जब राजा के चेतना लौटी तो उन्होंने देखा कि समस्त म्लेच्छ मरे पड़े हैं।
  • अब वे इस उधेड़बुन में पड़ गए कि उन्हें किसने मारा। तभी आकाशवाणी से यह सुनाई पड़ा कि हे राजन
  • यह समस्त आक्रामक तुम्हारे आमलकी एकादशी व्रत पूजा के प्रभाव से मर गए हैं।
  • राजा बहुत प्रसन्न हुआ तथा समस्त राज्य में इस एकादशी के महत्व को कह सुनाया।
  • म्लेच्छों के विनाश होने से समस्त प्रजा सुख चैन की बंसी बजाने लगी।

श्रीनारायण कवच (हिंदी में)

श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध, (भाग-5)

व्रत का पारण कैसे करते हैं How to fast

  • आमलकी एकादशी व्रत पूजा का पारण दूसरे दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी को करते हैं।
  • इस दिन श्याम जी की जात लगाई जाती है। इसके लिए एक जगह थोड़ी सी मिट्टी बिछाएं।
  • उसके ऊपर एक घी का दीपक रखें। दीपक के नीचे थोड़ा चावल रखें ।
  • फिर दीपक के आगे आग रखना चाहिए। अग्नि में घी डालें।
  • रोली चावल जल फूल तथा नारियल आदि चढ़ाकर पूजन करें।
  • फिर रोली का टीका काढ़ कर दोनों हाथ जोड़कर धन्यवाद करें।
  • इस दिन ब्राह्मण भोजन करना चाहिए। तथा प्रसाद भी उसी दिन खाना चाहिए ।
  • इस प्रकार आमलकी एकादशी व्रत पूजा का पारण कर श्रद्धा पूर्वक दान दक्षिणा दें।

व्रत का महत्व क्या है What is the importance of fast

  • आमलकी एकादशी व्रत पूजा भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।
  • अतः इस पूजा के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर समस्त ऐश्वर्य को प्रदान करते हैं।
  • सभी एकादशी मोक्ष को प्रदान करने वाली तिथि मानी गई है।
  • अतः भगवान विष्णु की प्रार्थना के हेतु प्रसन्नता के लिए एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए।
  • मास में दो बार एकादशी पड़ती है। शुक्ल पक्ष एकादशी और कृष्ण पक्ष एकादशी।
  • अतः आमलकी एकादशी व्रत पूजा से संबंधित जानकारी अपने परिवार एवं मित्रों को भी अवश्य पहुंचावे।
  • एकादशी के दिन श्रीमद्भागवत गीता या विष्णु सहस्त्रनाम अवश्य पढ़ें।

एकादशी व्रत का नाम व महात्म्य

  • युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा : श्रीकृष्ण ! मुझे फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम और माहात्म्य बताने की कृपा कीजिये ।
  • भगवान श्रीकृष्ण बोले: महाभाग धर्मनन्दन ! फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘आमलकी’ है । इसका पवित्र व्रत विष्णुलोक की प्राप्ति करानेवाला है । राजा मान्धाता ने भी महात्मा वशिष्ठजी से इसी प्रकार का प्रश्न पूछा था, जिसके जवाब में वशिष्ठजी ने कहा था :
  • ‘महाभाग ! भगवान विष्णु के थूकने पर उनके मुख से चन्द्रमा के समान कान्तिमान एक बिन्दु प्रकट होकर पृथ्वी पर गिरा । उसीसे आमलक (आँवले) का महान वृक्ष उत्पन्न हुआ, जो सभी वृक्षों का आदिभूत कहलाता है । इसी समय प्रजा की सृष्टि करने के लिए भगवान ने ब्रह्माजी को उत्पन्न किया और ब्रह्माजी ने देवता, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, नाग तथा निर्मल अंतःकरण वाले महर्षियों को जन्म दिया । उनमें से देवता और ॠषि उस स्थान पर आये, जहाँ विष्णुप्रिय आमलक का वृक्ष था । महाभाग ! उसे देखकर देवताओं को बड़ा विस्मय हुआ क्योंकि उस वृक्ष के बारे में वे नहीं जानते थे । उन्हें इस प्रकार विस्मित देख आकाशवाणी हुई: ‘महर्षियो ! यह सर्वश्रेष्ठ आमलक का वृक्ष है, जो विष्णु को प्रिय है ।
  • इसके स्मरणमात्र से गोदान का फल मिलता है । स्पर्श करने से इससे दुगना और फल भक्षण करने से तिगुना पुण्य प्राप्त होता है । यह सब पापों को हरनेवाला वैष्णव वृक्ष है । इसके मूल में विष्णु, उसके ऊपर ब्रह्मा, स्कन्ध में परमेश्वर भगवान रुद्र, शाखाओं में मुनि, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण तथा फलों में समस्त प्रजापति वास करते हैं । आमलक सर्वदेवमय है । अत: विष्णुभक्त पुरुषों के लिए यह परम पूज्य है । इसलिए सदा प्रयत्नपूर्वक आमलक का सेवन करना चाहिए ।’
  • ॠषि बोले : आप कौन हैं ? देवता हैं या कोई और ? हमें ठीक ठीक बताइये ।
  • पुन : आकाशवाणी हुई : जो सम्पूर्ण भूतों के कर्त्ता और समस्त भुवनों के स्रष्टा हैं, जिन्हें विद्वान पुरुष भी कठिनता से देख पाते हैं, मैं वही सनातन विष्णु हूँ।
  • देवाधिदेव भगवान विष्णु का यह कथन सुनकर वे ॠषिगण भगवान की स्तुति करने लगे । इससे भगवान श्रीहरि संतुष्ट हुए और बोले : ‘महर्षियो ! तुम्हें कौन सा अभीष्ट वरदान दूँ ?
  • ॠषि बोले : भगवन् ! यदि आप संतुष्ट हैं तो हम लोगों के हित के लिए कोई ऐसा व्रत बतलाइये, जो स्वर्ग और मोक्षरुपी फल प्रदान करनेवाला हो ।
  • श्रीविष्णुजी बोले : महर्षियो ! फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष में यदि पुष्य नक्षत्र से युक्त एकादशी हो तो वह महान पुण्य देनेवाली और बड़े बड़े पातकों का नाश करनेवाली होती है । इस दिन आँवले के वृक्ष के पास जाकर वहाँ रात्रि में जागरण करना चाहिए । इससे मनुष्य सब पापों से छुट जाता है और सहस्र गोदान का फल प्राप्त करता है । विप्रगण ! यह व्रत सभी व्रतों में उत्तम है, जिसे मैंने तुम लोगों को बताया है ।
  • ॠषि बोले : भगवन् ! इस व्रत की विधि बताइये । इसके देवता और मंत्र क्या हैं ? पूजन कैसे करें? उस समय स्नान और दान कैसे किया जाता है?
  • भगवान श्रीविष्णुजी ने कहा : द्विजवरो ! इस एकादशी को व्रती प्रात:काल दन्तधावन करके यह संकल्प करे कि ‘ हे पुण्डरीकाक्ष ! हे अच्युत ! मैं एकादशी को निराहार रहकर दुसरे दिन भोजन करुँगा । आप मुझे शरण में रखें ।’ ऐसा नियम लेने के बाद पतित, चोर, पाखण्डी, दुराचारी, गुरुपत्नीगामी तथा मर्यादा भंग करनेवाले मनुष्यों से वह वार्तालाप न करे । अपने मन को वश में रखते हुए नदी में, पोखरे में, कुएँ पर अथवा घर में ही स्नान करे । स्नान के पहले शरीर में मिट्टी लगाये ।

मृत्तिका लगाने का मंत्र

अश्वक्रान्ते रथक्रान्ते विष्णुक्रान्ते वसुन्धरे ।

मृत्तिके हर मे पापं जन्मकोटयां समर्जितम् ॥

वसुन्धरे ! तुम्हारे ऊपर अश्व और रथ चला करते हैं तथा वामन अवतार के समय भगवान विष्णु ने भी तुम्हें अपने पैरों से नापा था । मृत्तिके ! मैंने करोड़ों जन्मों में जो पाप किये हैं, मेरे उन सब पापों को हर लो ।’

स्नान का मंत्र

त्वं मात: सर्वभूतानां जीवनं तत्तु रक्षकम्।
स्वेदजोद्भिज्जजातीनां रसानां पतये नम:॥
स्नातोSहं सर्वतीर्थेषु ह्रदप्रस्रवणेषु च्।
नदीषु देवखातेषु इदं स्नानं तु मे भवेत्॥

‘जल की अधिष्ठात्री देवी ! मातः ! तुम सम्पूर्ण भूतों के लिए जीवन हो । वही जीवन, जो स्वेदज और उद्भिज्ज जाति के जीवों का भी रक्षक है । तुम रसों की स्वामिनी हो । तुम्हें नमस्कार है । आज मैं सम्पूर्ण तीर्थों, कुण्डों, झरनों, नदियों और देवसम्बन्धी सरोवरों में स्नान कर चुका । मेरा यह स्नान उक्त सभी स्नानों का फल देनेवाला हो ।’

  • विद्वान पुरुष को चाहिए कि वह परशुरामजी की सोने की प्रतिमा बनवाये । प्रतिमा अपनी शक्ति और धन के अनुसार एक या आधे माशे सुवर्ण की होनी चाहिए । स्नान के पश्चात् घर आकर पूजा और हवन करे । इसके बाद सब प्रकार की सामग्री लेकर आँवले के वृक्ष के पास जाय । वहाँ वृक्ष के चारों ओर की जमीन झाड़ बुहार, लीप पोतकर शुद्ध करे ।
  • शुद्ध की हुई भूमि में मंत्रपाठपूर्वक जल से भरे हुए नवीन कलश की स्थापना करे । कलश में पंचरत्न और दिव्य गन्ध आदि छोड़ दे । श्वेत चन्दन से उसका लेपन करे । उसके कण्ठ में फूल की माला पहनाये । सब प्रकार के धूप की सुगन्ध फैलाये । जलते हुए दीपकों की श्रेणी सजाकर रखे । तात्पर्य यह है कि सब ओर से सुन्दर और मनोहर दृश्य उपस्थित करे ।
  • पूजा के लिए नवीन छाता, जूता और वस्त्र भी मँगाकर रखे । कलश के ऊपर एक पात्र रखकर उसे श्रेष्ठ लाजों(खीलों) से भर दे । फिर उसके ऊपर परशुरामजी की मूर्ति (सुवर्ण की) स्थापित करे।

‘विशोकाय नम:’ कहकर उनके चरणों की,
‘विश्वरुपिणे नम:’ से दोनों घुटनों की,
‘उग्राय नम:’ से जाँघो की,
‘दामोदराय नम:’ से कटिभाग की,
‘पधनाभाय नम:’ से उदर की,
‘श्रीवत्सधारिणे नम:’ से वक्ष: स्थल की,
‘चक्रिणे नम:’ से बायीं बाँह की,
‘गदिने नम:’ से दाहिनी बाँह की,
‘वैकुण्ठाय नम:’ से कण्ठ की,
‘यज्ञमुखाय नम:’ से मुख की,
‘विशोकनिधये नम:’ से नासिका की,
‘वासुदेवाय नम:’ से नेत्रों की,
‘वामनाय नम:’ से ललाट की,
‘सर्वात्मने नम:’ से संपूर्ण अंगो तथा मस्तक की पूजा करे ।

ये ही पूजा के मंत्र हैं। तदनन्तर भक्तियुक्त चित्त से शुद्ध फल के द्वारा देवाधिदेव परशुरामजी को अर्ध्य प्रदान करे ।

अर्ध्य का मंत्र इस प्रकार है :

नमस्ते देवदेवेश जामदग्न्य नमोSस्तु ते ।
गृहाणार्ध्यमिमं दत्तमामलक्या युतं हरे ॥

‘देवदेवेश्वर ! जमदग्निनन्दन ! श्री विष्णुस्वरुप परशुरामजी ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है । आँवले के फल के साथ दिया हुआ मेरा यह अर्ध्य ग्रहण कीजिये ।’

  • तदनन्तर भक्तियुक्त चित्त से जागरण करे । नृत्य, संगीत, वाघ, धार्मिक उपाख्यान तथा श्रीविष्णु संबंधी कथा वार्ता आदि के द्वारा वह रात्रि व्यतीत करे । उसके बाद भगवान विष्णु के नाम ले लेकर आमलक वृक्ष की परिक्रमा एक सौ आठ या अट्ठाईस बार करे ।
  • फिर सवेरा होने पर श्रीहरि की आरती करे । ब्राह्मण की पूजा करके वहाँ की सब सामग्री उसे निवेदित कर दे । परशुरामजी का कलश, दो वस्त्र, जूता आदि सभी वस्तुएँ दान कर दे और यह भावना करे कि : ‘परशुरामजी के स्वरुप में भगवान विष्णु मुझ पर प्रसन्न हों ।’
  • तत्पश्चात् आमलक का स्पर्श करके उसकी प्रदक्षिणा करे और स्नान करने के बाद विधिपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराये । तदनन्तर कुटुम्बियों के साथ बैठकर स्वयं भी भोजन करे ।
  • सम्पूर्ण तीर्थों के सेवन से जो पुण्य प्राप्त होता है तथा सब प्रकार के दान देने दे जो फल मिलता है, वह सब उपर्युक्त विधि के पालन से सुलभ होता है । समस्त यज्ञों की अपेक्षा भी अधिक फल मिलता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है । यह व्रत सब व्रतों में उत्तम है ।’
  • वशिष्ठजी कहते हैं : महाराज ! इतना कहकर देवेश्वर भगवान विष्णु वहीं अन्तर्धान हो गये । तत्पश्चात् उन समस्त महर्षियों ने उक्त व्रत का पूर्णरुप से पालन किया । नृपश्रेष्ठ ! इसी प्रकार तुम्हें भी इस व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! यह दुर्धर्ष व्रत मनुष्य को सब पापों से मुक्त करनेवाला है ।

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3 thoughts on “आमलकी एकादशी व्रत पूजा; महत्व व पूजनविधि! Amalaki Ekadashi fasting worship; Importance and worship!

  1. आमलकी एकादशी व्रत की पूजन, पुण्य लाभ आदि के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए आपका बहुत धन्यवाद मेम…👍☺️👌👑💞

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