हलासन करने की विधि व फायदे | Method And Benefits Of Doing Halasana ; इसे करने के दो तरीके हैं। यह कमर की चौड़ाई को कम करके मोटापे को घटाता है।
आज हम आपको हलासन करने की विधि व फायदे बताते हैं। ये दोनों विधियां करने में आसान हैं। फिर भी जो आपको सुविधाजनक लगे उसे ही करें। इस आसन की दो विधियाँ हैं नीचे दोनों विधियों का क्रमश: उल्लेख किया जा रहा है। पहली विधि कुछ सरल है ।
हलासन करने की विधि-1
- पीठ के बल लेटकर पूरे शरीर को एकदम सीधा फैला दें। दोनों एड़ियाँ तथा पाँवों के अँगूठे परस्पर सटे रहें।
- हथेलियों को शरीर के एकदम समीप दोनों बगल में भूमि पर रखें।
- गर्दन तथा सिर को सीधा कर लें फिर दोनों पाँवों को फैलाकर कड़ा करें।
- पाँवों के अंगूठों को भी इस प्रकार फैला दें कि वे सिर की विपरीत दिशा में निर्देश करें।
- अब साँस लेने के साथ ही दोनों पाँवों को एक साथ तब तक ऊपर की ओर उठायें जब तक कि वे लम्बरूप स्थिति में न आ जायें।
- दोनों हथेलियों को भूमि पर यथा स्थान बनाये रहें।
- जब आप उच्च स्थिति पर पहुँच जायें, तब श्वास को छोड़ने के साथ ही पाँवों को सिर की ओर झुकाना आरम्भ कर दें
- तथा उनके द्वारा सिर के आगे पृथ्वी को उसी दूरी पर छूने का प्रयत्न करें,
- जहाँ तक कि पाँच के अंगूठों के लिये छूना सम्भव हो सके। इस स्थिति में जहाँ तक जा सकते हो जाएं।
- फिर जहाँ टिक सकते हो, वहाँ टिक कर स्वयं को स्थिर कर लें।
- श्वास छोड़ने की क्रिया समाप्त हो जावे. तब तक स्वाभाविक रूप से श्वास लेने और छोड़ते रहें, जब तक कि आसन सम्पूर्ण न हो जाये ।
- इस स्थिति में 8 से 10 सैकिण्ड तक रहें ।
- पूर्वोक्त स्थिति में पाँवों को एकदम कड़ा रखना चाहिए.उन्हें घुटनों पर से मोड़ना नहीं चाहिए
- तथा उनकी अँगुलियाँ आगे की ओर तनी हुई अथवा भूमि का स्पर्श करती हुई स्थिति में रहनी चाहिए।
- दोनों हथेलियों को भूमि पर रखते समय बाहें भी तनी हुई तथा स्थिर रहनी चाहिएं।
वापस लौटे
- इसके बाद पीठ को भूमि पर लौटाना आरम्भ करें तथा 1-1 इंच करके पीठ को भूमि की ओर आने दें।
- धीरे-धीरे एक-सी गति से पृथ्वी पर आते समय पाँवों तथा उनकी अँगुलियों को एकदम कडा बनाये रखना चाहिए।
- जब एड़ियाँ भूमि का स्पर्श कर लें, तब सम्पूर्ण शरीर को 6 से 8 सैकिण्ड तक विश्राम करने दें।
- यह एक चक्र पूरा हुआ। आरम्भ में उक्त क्रिया को दो बार ही दुहराएं,
- बाद में अधिक से अधिक चार बार तक दुहराते रहें
हलासन करने की विधि- 2
- पीठ के बल पृथ्वी पर लेटकर पूरे शरीर को सीधा कर दें। दोनों एड़ियाँ तथा पाँवों के अँगूठे परस्पर सटे रहे।
- दोनों हथेलियों को शरीर के एकदम समीप बगल में भूमि पर रखें। गर्दन तथा सिर को सीधा कर लें।
- अब, श्वास खींचते ओर उठाते हुए हुए दोनों हाथों को समानान्तर रखते हुए ऊपर ( सिर के सामने लाएं तथा हथेलियों के पृष्ठ-भाग को भूमि पर समानान्तर पर रख दें।
- श्वास लेने तथा हाथ उठाने की क्रिया एक साथ सम्पन्न हो तथा हाथों द्वारा पृथ्वी का स्पर्श होने तक श्वास लेने की क्रिया जारी रहे।
- जब हाथ पृथ्वी का स्पर्श कर उठें, तब श्वास छोड़नी चाहिए।
- उसके तुरन्त बाद ही श्वास लेना तथा दोनों पाँवों को ऊपर उठाना प्रारम्भ करें तथा श्वास छोड़ते ही उन्हें एकदम सीधा आसमान को और उठा दें।
- जब पाँव पूरी तरह ऊपर उठ जाये, तब श्वास छोड़ना आरम्भ करें
- तथा उसके साथ ही पाँवों को सिर के सामने पृथ्वी की ओर तथा हाथ की अंगुलियों से ऊपर की ओर झुकाना आरम्भ करें।
- ऐसा करते समय यदि पाँवों की अँगुलियाँ पृथ्वी का स्पर्श न कर सकें तो उन्हें जहाँ तक नीचे ले जाना सम्भव हो, वहीं तक ले जाये।
- इस अवधि में श्वास छोड़ने की क्रिया समाप्त हो जानी चाहिए,
- तत्पश्चात् स्वाभाविक रूप से श्वास लेनी या छोड़नी चाहिए ।
- उक्त स्थिति में दोनों पाँव एकदम कड़े बने रहें ,
- उनकी अँगुलियाँ बाहर की ओर फैली हुई पृथ्वी पर तथा उसके अधिकतम समीप बनी रहें।
- घुटने न तो ढीले और न मुड़े हुए हो रहे बाँहों, हाथों तथा हथेलियों को एक-दूसरे के समानान्तर दूरी पर रखना चाहिए,
- परन्तु टांगों (पाँवों) तथा अंगुलियों को एक-दूसरे के अधिकतम समीप रहना चाहिए।
वापस लौटे
- दस सैकिण्ड तक उक्त अवस्था में रहने के बाद धीरे धीरे नियन्त्रित रूप से वापिस लौटें।
- पहले कन्धों को पृथ्वी पर आने दें, फिर काँख पसली. कुल्हे के मध्य भाग, कमर के पिछले भाग, कूल्हों
- तथा अन्त में जाँघों पाँवों एवं एड़ियों को एक-एक इंच करके पृथ्वी पर लाएं।
- लौटते समय हाथों को यथा स्थान ही रहने देना चाहिए। केवल पाँवों को ही समेटे ।
- जब एड़ियाँ भूमि का स्पर्श कर लें, तब दोनों हाथों को ऊपर उठायें तथा उन्हें समानान्तर दूरी पर रखते हुए पृथ्वी पर वापिस ले आये।
- तदुपरान्त सम्पूर्ण शरीर को ढीला छोड़कर 6 से 8 सैकिण्ड तक विश्राम करें।
- इस प्रकार अभ्यास का एक चक्र पूरा हो जायेगा।
- आरम्भ में केवल एक चक्र पूरा करें। फिर उत्तरोत्तर अभ्यास को बहते हुए चार चक्र तक ले जायें। इतना ही पर्याप्त है।
हलासन करने के फायदे
- यह अभ्यास सभी यौन-ग्रन्थियों के दोषों को दूर कर उन्हें पुष्ट एवं सक्रिय बनाता है।
- इससे उदासीनता, काम-शक्ति को कमी व नपुंसकता सम्बन्धी विकृतियाँ दूर होती हैं।
- यह मेरुदण्ड को लचीला बनाकर शरीर के अनावश्यक वजन को घटाता है।
- कमर की चौड़ाई को कम करके मोटापे को घटाता है।
- स्नायु संस्थान एवं पाचन-संस्थान को शक्ति प्रदान कर, शरीर को सुडौल बनाता है।
- इस अभ्यास से रीढ़ के प्रत्येक भाग का व्यायाम हो जाता है।
- इसके कारण शरीर में रक्त सञ्चार तीव्रता से होता है ।
- और वह शरीर के ऊपरी भागों में विशेष रूप से एकत्र होता है, अतः इससे मुखमण्डल कान्तिपूर्ण बनता है।
- तथा युवावस्था की वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त यह पेट, छाती तथा फेफड़ों के अनेक रोगों को भी दूर कर देता है।
- यह आसन रक्त सञ्चरण को नियमित बनाता, चर्बी को घटाता व क्रोध को हटाता है।
- इससे मधुमेह रोग समूल नष्ट हो जाता है। इससे मनुष्य की प्रज्ञा तथा बुद्धि भी तीव्र होती है।
- मस्तिष्क सम्बन्धी कार्य करने वाले बुद्धिजीवियों व युवावस्था प्राप्त लड़कियों के लिये इसका नियमित अभ्यास बहुत लाभकर सिद्ध होता है।
- ‘कुण्डलिनी‘ को जाग्रत करने में इस आसन से बहुत सहायता मिलती है
विशेष-
- इस आसन में कुछ अभ्यासी हाथों को बाँधकर सिर का घेरा बनाते हैं
- तथा कुछ लोग हाथों से पज्जों की सन्धि को थाम लेना ही पूर्णावस्था मानते हैं।
सावधानी-
- इस आसन में लौटते समय एड़ियों को बहुत धीरे से फर्श पर वापिस लाना चाहिए।
- एड़ियों को तनिक झटका नहीं लगने देना चाहिए।
- अन्यथा पेट की नसों के अव्यवस्थित हो जाने का भय उपस्थित हो सकता है।
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निष्कर्ष
आज अपने हलासन करने के 2 तरीके जाने। इसमें से आपको जो सुविधाजनक लगे उसे करें। योगासन हेल्थ के लिए बहुत लाभकारी होता है। इसे अपनाएं।
आशा है आपको हलासन करने की विधि व फायदे | Method And Benefits Of Doing Halasana से सम्बंधित जानकारी अवश्य अच्छी लगी होगी। लेख को अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।
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