सर्वांगासन करने की विधि व फायदे | Method And Benefits Of Doing Sarvangasana Total Post View :- 1058

सर्वांगासन करने की विधि व फायदे

सर्वांगासन करने की विधि व फायदे ; शीर्षासन के बाद लाभ की दृष्टि से यह दूसरा सर्वोत्तम आसन है। यह यौवन शक्ति प्रदान करता है। इस आसन के द्वारा शरीर के सभी अंगों का व्यायाम होता है।

सर्वांगासन दो तरह का होता है। एक सर्वांगासन दूसरा अर्द्ध सर्वांगासन। आज हम आपको सर्वांगासन व अर्द्ध सर्वांगासन करने की विधि व उससे होने वाले लाभ बताएंगे।

इसी श्रंखला में अपने भुजंगासन करने की विधि व फायदे, शलभासन करने की विधि व फायदे और धनुरासन करने की विधि व फायदे जाने। आगे जानते हैं-

सर्वांगासन करने की विधि

  • सर्वांगासन करने के लिए पीठ के बल फर्श पर एकदम सीधे लेटकर छत की ओर देखें।
  • दोनों हथेलियाँ पृथ्वी पर तथा शरीर के समीप रहनी चाहिएं।
  • एड़ियों तथा पाँव के अंगूठों को परस्पर सटा लें। अब श्वास लेते हुए दोनों पाँवों को एक-साथ ऊपर उठायें।
  • जब तक पाँव ऊपर को लम्बायमान स्थिति में आएं, तब तक श्वास लेने की क्रिया भी पूरी हो जानी चाहिए।
  • अब श्वास को छोड़ना तथा दोनों पाँवों को एक साथ आकाश की ओर ऊपर उठाना आरम्भ करें ।
  • श्वास छोड़ने की क्रिया समाप्त होने तक यह क्रिया भी पूरी हो जानी चाहिए।
  • तदुपरान्त आप स्वाभाविक श्वास लें तथा छोड़ें।
  • पाँवों को ऊपर उठाते समय अपनी दोनों हथेलियों को कुल्लों के नीचे लाकर, शरीर को ऊपर उठाने में दोनों हाथों का सहारा देना चाहिए।
  • तथा उन्हें शरीर का भार सहन करने का आधार बनाना चाहिए। जितना अधिक हो सके, उतना शरीर को ऊँचा उठावें ।

अंतिम स्थिति में

  • अन्तिम स्थिति में आपका शरीर कन्धों पर स्थिर टिका रहना चाहिए तथा ठोड़ी सीने से सटी होनी चाहिए।
  • हथेलियाँ पीठ पर कंधों के समीप तथा कुहनियाँ एवं बाँहें भूमि पर टिकी रहनी चाहिए।
  • दोनों पाँव हुए. परस्पर सटे हुए तथा कड़े बने रहें। दोनों एड़ियाँ भी सटी रहें।
  • पाँव के अँगूठे छत (आकाश) की ओर रहें। शरीर को स्थिर बनाये रहें
  • तथा इस स्थिति में 30 सैकिण्ड तक रहते हुए स्वाभाविक रूप से श्वास लेते और छोड़ते रहें।
  • आगे चलकर जब अभ्यास बढ़ जाये, तब इस स्थिति में तीन मिनट तक रहा जा सकता।
  • इसके बाद पाँवों को घुटनों पर से मोड़ लें तथा धीरे-धीरे हथेलियों को कूल्हों की ओर लाते हुए शरीर को भूमि पर लौट आने दें।
  • ऐसा करते समय हथेलियाँ शरीर के भार को सहारा देती रहेंगी,
  • दोनों हाथ तथा कन्धों से शरीर के भार को नियन्त्रित रखें।
  • लौटते समय पहले कूल्हे पृथ्वी पर आयेंगे।
  • अब एड़ियों तथा पाँव के अँगूठों को कूल्हों के एकदम समीप नीचे लाकर पाँवों को सामने की ओर फैला दें तथा विश्राम करें।
  • जितनी देर तक शरीर कन्धों पर टिका रहा हो, उससे चतुर्थांश तक विश्राम करें।

अर्द्ध सर्वांगासन करने की विधि

  • जिन्हें पूर्ण सर्वाङ्गासन करने में कठिनाई का अनुभव हो, उन्हें पहले ‘अर्द्ध-सर्वाङ्गासन’ करना चाहिए।
  • इसके लिये पूर्व स्थिति की प्रारम्भिक क्रियाओं के बाद हथेलियों को पीठ पर रखते हुए ,
  • सामान्य रूप से श्वास लेने तथा छोड़ने की क्रिया करनी चाहिए
  • तथा पाँवों को सुविधापूर्वक जितना ऊँचा ले जा सकें, उतना ऊँचा ले जाने के बाद उन्हें धीरे-धीरे नीचे ले आना चाहिए।
  • जब अर्द्ध- सर्वाङ्गासन के अभ्यास में पूर्ण सफलता प्राप्त हो जाये, तब पूर्ण ‘सर्वाङ्गासन’ का अभ्यास करना चाहिए।

सर्वांगासन करने के फायदे

  • इस अभ्यास से शरीर के सभी अङ्गों का व्यायाम हो जाता है।
  • वे लचकीले, फुर्तीले, चुस्त तथा पुष्ट बनते हैं।
  • हर प्रकार के तनाव, थकान अथवा दबाव की शिकायतें दूर होती हैं।
  • पुराना कब्ज, सिर-दर्द, आँखों अथवा मस्तक में दर्द, गलगण्ड तथा कण्ठ और जिगर के सभी रोग इस अभ्यास से दूर हो जाते हैं।
  • शरीर का रक्त शुद्ध होता है। इससे प्रजनन अङ्गों कामेन्द्रियों तथा हड्डियों का विकास होता है। पाचन क्रिया तीव्र होती है।
  • अण्ड- वृद्धि, दमा, हृदय की धड़कन में वृद्धि, फीलपाँव खाँसी, कष्टार्त्तव, प्रमेह, बाँझपन, रक्ताल्पता, मोटापा तथा यौनाङ्ग-दोष दूर होते हैं।
  • विपरीत रक्त संचार के कारण यह आन्तरिक कोशिकाओं. तन्तुओं तथा अन्य अवयवों का पोषण करता है।
  • फेफड़ों की क्रियाशीलता को बढ़ाता है ।
  • नपुन्सकता को दूर करता है। गल-ग्रन्थि को सक्रिय तथा मेरुदण्ड एवं स्नायु तन्त्र को सुव्यवस्थित रखता है।
  • मेरुदण्ड में लचीलापन लाकर शरीर में रक्त परिभ्रमण को ठीक करता है।
  • कण्ठ स्वर पर भी इसका उत्तम प्रभाव पड़ता है।

सर्वांगासन करने में सावधानी बरतें

  • इस आसन को एक बार 5 मिनट से अधिक समय तक नहीं करना चाहिए।
  • कुछ देर ‘शवासन’ की स्थिति में विश्राम करने के बाद इसे पुनः दुहराया जा सकता है।
  • परन्तु तीन बार से अधिक पुनरावृत्ति नहीं करनी चाहिए।
  • सामान्यतः इसे एक बार करना ही पर्याप्त रहता है।
  • 14 वर्ष से कम आयु वालों के लिए यह अभ्यास वर्जित है।
  • इससे अधिक आयु वाले स्त्री पुरुष इस लाभकर अभ्यास को कर सकते हैं।
  • कुछ लोग सर्वाङ्गासन की स्थिति में रहते हुए अन्य क्रियाएं भी करते हैं, जो निम्नानुसार हैं
  • (1) दोनों पाँवों को ‘V’ आकार में फैलाना, (2) दोनों पाँवों को आगे-पीछे फैलाना,
  • (3) घड़ को दाँये-बाँये मोड़ना, (4) ऊपर ही ऊपर पाँवों को पद्मासन की स्थिति में लाना,
  • (5) ऊपर ही ऊपर पाँव को साइकिल चलाने की भाँति चलाना तथा
  • (6) हाथों का सहारा दिये बिना सर्वाङ्गासन की स्थिति में रहना।
  • परन्तु इन क्रियाओं को करना आवश्यक नहीं है।

निष्कर्ष

आज आपने सर्वांगासन करने की विधि व फायदे, और अर्द्ध सर्वांगासन करने के फायदे जाने । सर्वांगासन में कुछ सावधानी विशेष के बारे में भी आपने जानकारी प्राप्त की।

आशा है आपको सर्वांगासन करने की विधि व फायदे से सम्बंधित लेख अवश्य पसंद आया होगा। लेख को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद।

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