Total Post View :- 560

श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत कथा व महात्म्य |(वैशाख शुक्ल चतुर्दशी)

श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत कथा व महात्म्य (वैशाख शुक्ल चतुर्दशी) – हिरण्यकश्यप के वध हेतु एवं भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु जिस दिन भगवान ने नृसिंह रूप धारण किया था, वह तिथि वैशाख माह की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी थी।

अपने भक्तों को सुख देने कब लिए जब भगवान स्वयं अवतार ग्रहण करते हैं, तब वह तिथि और मास भी पुण्य के कारक बन जाते हैं। आज हम आपको उसी पवित्र तिथि की कथा और महत्व के बारे में बताएंगे।

श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत कथा

जब हिरण्यकशिपु नामक दैत्य का वध करके देवाधिदेव जगद्गुरु भगवान् नृसिंह सुखपूर्वक विराजमान हुए, तब उनकी गोदमें बैठे हुए ज्ञानियों में श्रेष्ठ प्रह्लादजीने उनसे इस प्रकार प्रश्न किया-

‘सर्वव्यापी भगवान् नारायण! नृसिंहका अद्भुत रूप धारण करनेवाले आपको नमस्कार है। सुरश्रेष्ठ मैं आपका भक्त हूँ, अतः यथार्थ बात जाननेके लिये आपसे पूछता हूँ।

स्वामिन् ! आपके प्रति मेरी अभेद-भक्ति अनेक प्रकार से स्थिर हुई है। प्रभो! मैं आपको इतना प्रिय कैसे हुआ? इसका कारण बताइये।’

भगवान् नृसिंह बोले- वत्स तुम पूर्वजन्म में ब्राह्मण के पुत्र थे। फिर भी तुमने वेदों का अध्ययन नहीं किया। उस समय तुम्हारा नाम वसुदेव था।

उस जन्म में तुमसे कुछ भी पुण्य नहीं बन सका। केवल श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत के प्रभावसे मेरे प्रति तुम्हारी भक्ति हुई। पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने सृष्टि- रचना के लिये इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था।

श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत के प्रभाव से ही उन्होंने चराचर जगत की रचना की है। और भी बहुत से देवताओं, प्राचीन ऋषियों तथा परम बुद्धिमान् राजाओं ने श्रीनृसिंह चतुर्दशी के उत्तम व्रत का पालन किया है।

और उस व्रत के प्रभाव से उन्हें सब प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त हुई हैं। स्त्री या पुरुष जो कोई भी इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करते हैं, उन्हें मैं सौख्य, भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान करता हूँ।

प्रह्लाद ने पूछा- देव! मैं आपकी प्रीति और भक्ति प्रदान करने वाले श्रीनृसिंह चतुर्दशी नामक उत्तम व्रत की विधि को सुनना चाहता हूँ।

प्रभो! किस महीने में और किस दिन को यह व्रत आता है? आप बताने की कृपा कीजिये।

भगवान् नृसिंह बोले-बेटा प्रह्लाद। तुम्हारा कल्याण हो। एकाग्रचित्त होकर इस व्रतको श्रवण करो। यह व्रत मेरे प्रादुर्भाव से सम्बन्ध रखता है,

श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत विधि व कथा

वैशाख के शुक्लपक्ष को चतुर्दशी तिथि को इसका अनुष्ठान करना चाहिये। इससे मुझे बड़ा संतोष होता है। पुत्र! भक्तों को सुख देने के लिये जिस प्रकार मेरा आविर्भाव हुआ, वह प्रसंग सुनो।

पश्चिम दिशा में एक विशेष कारण से मैं प्रकट हुआ था। वह स्थान अब मूलस्थान (मुलतान) क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है, जो परम पवित्र और समस्त पापों का नाशक है।

उस क्षेत्र में हारीत नामक एक प्रसिद्ध ब्राह्मण रहते थे, जो वेदों के पारगामो विद्वान् और ज्ञान-ध्यान में सदा तत्पर रहने वाले थे। उनकी स्त्रीका नाम लीलावती था।

वह भी परम पुण्यमयी, सतीरूपा तथा स्वामी के अधीन रहने वाली थी। उन दोनों ने बहुत समय तक बड़ी भारी तपस्या की तपस्या में ही उनके इक्क़ीस युग बीत गये।

तब उस क्षेत्र में प्रकट होकर मैंने उन दोनों को प्रत्यक्ष दर्शन दिया। उस समय उन्होंने मुझसे कहा-‘भगवन्। यदि आप मुझे वर देना चाहते हैं तो इसी समय आपके समान पुत्र मुझे प्राप्त हो।’

बेटा प्रह्लाद ! उनकी बात सुनकर मैंने उत्तर दिया- ‘ब्रह्मन् । निस्संदेह मैं आप दोनों का पुत्र हूँ,

किंतु में सम्पूर्ण विश्व की सृष्टि करने वाला साक्षात् परात्पर परमात्मा हूँ,

सदा रहने वाला सनातन पुरुष हूँ: अत: गर्भ में नहीं निवास करूंगा।’ तब हारीत ने कहा “अच्छा, ऐसा ही हो।’ तब से मैं भक्त के कारण उस क्षेत्र में निवास करता हूँ।

मेरे श्रेष्ठ भक्त को चाहिये कि उस तीर्थ में आकर मेरा दर्शन करे। इससे उसकी सारी बाधाओं का मैं निरन्तर नाश करता रहता हूँ।

जो हारीत और लीलावती के साथ मेरे बालरूप का ध्यान करके रात्रि में मेरा पूजन करता है, वह नर से नारायण हो जाता है।

श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत का संकल्प लेने की विधि

बेटा श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत का दिन आने पर भक्त पुरुष प्रातः काल दन्तधावन करके इन्द्रियों को काबू में रखते हुए मेरे सामने व्रत का इस प्रकार संकल्प करे-

‘भगवन्! आज मैं आपका व्रत करूंगा। इसे निर्विघ्नतापूर्वक पूर्ण कराइये।’

व्रत में स्थित होकर दुष्ट पुरुषों से वार्तालाप आदि नहीं करना चाहिये। फिर मध्याह्नकाल में नदी आदि के निर्मल जल में, घर पर, देव सम्बन्धी कुण्ड में अथवा

किसी सुन्दर तालाब के भीतर वैदिक मन्त्रों से स्नान करे। मिट्टी, गोबर, आँवले का फल और तिल लेकर उनसे सब पापों की शान्ति के लिये विधिपूर्वक स्नान करे।

तत्पश्चात् दो सुन्दर वस्त्र धारण करके सन्ध्या-तर्पण आदि नित्यकर्म का अनुष्ठान करना चाहिये। उसके बाद पूजा स्थल लीपकर उसमें सुन्दर अष्टदल कमल बनाये।

कमल के ऊपर पञ्चरत्न सहित ताँबे का कलश स्थापित करे। कलश के ऊपर चावलों से भरा हुआ पात्र रखे और पात्र में अपनी शक्ति के अनुसार सोने की लक्ष्मी सहित मेरी प्रतिमा बनवाकर स्थापित करे।

तत्पश्चात् उसे पञ्चामृत से स्नान कराये। इसके बाद शास्त्रज्ञ और लोभहीन ब्राह्मण को बुलाकर आचार्य बनाये तथा उसे आगे रखकर भगवान्‌ की अर्चना करे।

पूजा के मण्डप बनवाकर उसे फूल के गुच्छों से सजा दे।

फिर उस ऋतु में सुलभ होने वाले फूलों से और षोडशोपचार की सामग्रियों से विधिपूर्वक मेरा पूजन करे।

पूजा में नियम पूर्वक रहकर मुझसे सम्बन्ध रखनेवाले पौराणिक मन्त्रों का उपयोग करे। जो चन्दन, कपूर, रोली, सामयिक पुष्प तथा तुलसीदल मुझे अर्पण करता है, वह निश्चय ही मुक्त हो जाता है।

समस्त कामनाओं की सिद्धि के लिये जगद्गुरु श्रीहरि को सदा कृष्णागरु का बना हुआ धूप निवेदन करना चाहिये; क्योंकि वह उन्हें बहुत प्रिय है।

एक बड़ा दीप जलाकर रखना चाहिये, जो अज्ञानरूपी अन्धकार का नाश करनेवाला है। फिर घण्टे की आवाज के साथ आरती उतारनी चाहिये ।

तदनन्तर नैवेद्य निवेदन करे, जिसका मन्त्र इस प्रकार है-

नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम् । ददामि ते रमाकान्त सर्वपापक्षयं कुरु ॥

(पद्मपुराण, उत्तरखण्ड १७०। ६२)

अर्थात् हे लक्ष्मीकान्त ! मैं आपके लिये भक्ष्य भोज्यसहित नैवेद्य तथा शर्करा निवेदन करता हूँ। आप मेरे सब पापोंका नाश कीजिये ।

तत्पश्चात् भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करे-

‘नृसिंह ! अच्युत! देवेश्वर! आपके शुभ जन्मदिन को मैं सब भोगों का परित्याग करके उपवास करूँगा।

स्वामिन् ! आप इससे प्रसन्न हों तथा मेरे पाप और जन्म के बन्धन को दूर करें।’ पालन करे। रात में गीत और वाद्यों की ध्वनि के साथ जागरण करना चाहिये।

भगवान् श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत की कथा से सम्बन्ध रखनेवाले पौराणिक प्रसंग का पाठ भी करना उचित है। फिर प्रातः काल होने पर स्नान के अनन्तर नये पूर्वोक्त विधि से यत्नपूर्वक मेरी पूजा करे।

श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत के निमित्त दान करे

उसके बाद स्वस्थ चित्त होकर मेरे आगे वैष्णव श्राद्ध करे। तदनन्तर इस लोक और परलोक दोनों पर विजय पाने की इच्छा से सुपात्र ब्राह्मणों को

गौ, भूमि, तिल, सुवर्ण, ओढ़ने-बिछौने आदि के का सहित चारपाई, सप्तधान्य तथा अन्यान्य वस्तुएँ भी अपनी शक्ति के अनुसार दान करनी चाहिये।

शास्त्रोक्त फल पाने की इच्छा हो तो धन की कृपणता नहीं करनी चाहिये। अन्त में ब्राह्मणों को भोजन कराये और उन्हें उत्तम दक्षिणा दे।

धनहीन व्यक्तियों को भी चाहिये कि वे इस व्रत का अनुष्ठान करें और शक्ति के अनुसार दान दें। मेरे व्रत में सभी वर्ण के मनुष्यों का अधिकार है।

मेरी शरण में आये हुए भक्तों को विशेषरूप से इसका अनुष्ठान करना चाहिये । इसके बाद व्रत करने वाले पुरुषों को इस प्रकार प्रार्थन करनी चाहिये –

श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत प्रार्थना

विशाल रूप धारण करने वाले भगवान् नृसिंह! करोड़ों कालों के लिये भी आपको परास्त करना कठिन है। बालरूप धारी प्रभो! आपको नमस्कार है।

बालावस्था तथा बालकरूप धारण करनेवाले श्रीनृसिंहभगवान् को नमस्कार है। जो सर्वत्र व्यापक, सबको आनन्दित करनेवाले, स्वतः प्रकट होनेवाले,

सर्वजीव स्वरूप, विश्व के स्वामी, देवस्वरूप और सूर्यमण्डलमें स्थित रहनेवाले हैं, उन भगवान् को प्रणाम है। दयासिन्धो! आपको नमस्कार है।

आप तेईस तत्त्वों के साक्षी चौबीसवें तत्त्वरूप हैं। काल, रुद्र और अग्नि आपके ही स्वरूप हैं। यह जगत् भी आपसे भिन्न नहीं है।

नर और सिंहका रूप धारण करनेवाले आप भगवान् को नमस्कार है। देवेश! मेरे वंश में जो मनुष्य उत्पन्न हो चुके हैं और जो उत्पन्न होने वाले हैं, उन सबका दुःखदायी भवसागर से उद्धार कीजिये।

जगत्पते! मैं पातक के समुद्र में डूबा हुआ हूँ। नाना प्रकार की व्याधियाँ ही इस समुद्रकी जलराशि हैं। इसमें रहनेवाले जीव मेरा तिरस्कार करते हैं।

इस कारण मैं महान् दुःखमें पड़ गया हूँ। शेषशायी देवेश्वर! मुझेह अपने हाथों का सहारा दीजिये और इस व्रत से प्रसन्न हो मुझे भोग और मोक्ष प्रदान कीजिये।

श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत विसर्जन

इस प्रकार प्रार्थना करके विधिपूर्वक देवताओं का विसर्जन करे। उपहार आदि की सभी वस्तुएँ आचार्य को निवेदन करे। ब्राह्मणों को दक्षिणा से संतुष्ट करके विदा करे।

फिर भगवान का चिन्तन करते हुए भाई-बन्धुओं के साथ भोजन करे। जो मध्याह्न काल में यथाशक्ति इस श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत का अनुष्ठान करता है ।

और लीलावती देवी के साथ हारीत मुनि एवं भगवान् नृसिंह का पूजन करता है, वह श्रीनृसिंह के प्रसा दसे सदा मनोवाञ्छित वस्तुओं को प्राप्त करता रहता है। इतना ही नहीं, उसे सनातन मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अंत में दो शब्द

श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत कथा विधि (वैशाख शुक्ल चतुर्दशी) से सम्बंधित समस्त जानकारी इस आर्टिकल श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत कथा व महात्म्य में प्रस्तुत की गई है।

आशा है इस जानकारी से आप अवश्य लाभान्वित होंगे। इसका उद्देश्य है कि यदि व्रत न् भी करें तो कम से कम श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत कथा का पठन पाठन अवश्य करें।

लेख को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद!

Spread the love

One thought on “श्रीनृसिंह चतुर्दशी व्रत कथा व महात्म्य |(वैशाख शुक्ल चतुर्दशी)

  1. जय जय नरसिंह अवतार …🙏💐👑❤️
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय..🙏💐

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!