नमस्कार दोस्तों ! शिक्षाप्रद व प्रेरक कहानी चुन, मुन, धुन, आरी, प्यारी – श्रीमती मनोरमा दीक्षित मंडला द्वारा लिखी गई है। ऐसी कहानियां बच्चों का मानसिक विकास करती हैं और बच्चों में सूझबूझ पैदा करती हैं । सही गलत का निर्णय लेने की इच्छा बताएं पैदा करती हैं ।
अतः शिक्षाप्रद व प्रेरक कहानियां अवश्य ही बच्चों को सुनाई जानी चाहिए । अवश्य पढ़ें व बच्चों को भी सुनाएं। शिक्षाप्रद व प्रेरक कहानी चुन, मुन, धुन, आरी, प्यारी (श्रीमती मनोरमा दीक्षित मंडला) !
शिक्षाप्रद व प्रेरक कहानी ; “चुन मुन धुन आरी प्यारी” (श्रीमती मनोरमा दीक्षित) (मण्डला)
बस्तर के घने जंगल में जहाँ सभी तरह के जीवजन्तु निवास करते थे में निराली नामक बकरी अपने पांच बच्चोंचुन मुन धुन आरी एवं प्यारी के साथ आराम से रहती थी। यह रोज जंगल में चरने जाती थी।
जाने के पहिले वह उन्हें दूध पिला और प्यार दुलार कर समझाती थी “सुनो मेरे बच्चों में जंगल में चरने जाती हूँ।
मेरे जाने के बाद तुम दरवाजा अच्छी तरह बंद कर लेना जब मैं शाम को आऊंगी तब कहूँगी ‘चुन किवाड़ा खोलो
और मुन किवाड़ा खोलो, पुन किवाड़ा खोलो और आरी किवाड़ा खोलो और प्यारी किवाड़ा खोलो।
तब मेरी आवाज पहिचान कर तुम दरवाजा खोल देना। बच्चों ने पूछा- माँ ऐसा क्यों कहती हो?
निराली बोली- अरे बच्चो यहाँ अपने घर के पास ही एक भेड़िया रहता है।जो छोटे बच्चों को खा जाता है। तुम्हें उससे बच के रहना है। बच्चों ने कहा- माँ हम ऐसा ही करेंगे।
बस यह क्रम रोज का था। निराली बच्चों को नित्य यह सब समझाती थी।
शिक्षाप्रद व प्रेरक कहानी
वही पड़ोस में रहने वाला भेड़िया भी रोज यह सब बातें सुनता था।
निराली के सुन्दर खिलौनों से गुदगुर्द बच्चों पर उसकी नीयतः लगी थी।
निराली के जाने के बाद शाम के समय भेडिया ‘चपरा’ निराली सी आवाज बना बोला ;
चुन किवाड़ खोलो और मुन किवाड़ खोलो..प्यारी किवाड़ खोलो। अब बच्चे खुश हो गये।
वे अंदर से ही बोले- माँ. आप आज जल्दी कैसे आ गयी?
वह आवाज बना बोला- अरे बेटा, आज जंगल में एक शेर दहाड़ रहा था, अतः मैं आ गयी।
बच्चों ने विश्वास कर हंसते हंसते किवाड़ खोल दिया। फिर क्या था, पलभर में ही पाँचों बच्चों को खाकर
डकार लेता हुआ चालाक “चपरा” अपने घर जाकर आराम करने लगा।
अब रात हो चुकी थी और निराली आ रही थी। तभी दूर से ही उसे उसके घर का दरवाजा खुला दिखा।
अब उसका माथा ठनका घर से सभी बच्चे नदारद थे । वह सिसक सिसक कर रोने लगी ।
किन्तु तभी उसने धैर्य धारण कर समस्या पर विचार करना शुरू किया।
अब वह समझ चुकी थी कि चपरा भेड़िया ने ही उसके बच्चों को खा लिया है।
यह उसके घर गयी पर वह तो द्वार बन्द कर खराटे भर रहा था।
अब निराली पड़ोस में …
रहने वाले लहार भैया दयाराम के पास पहुंची और आपबीती उसे रो रोकर सुनाई।
लुहार दयाराम सचमुच ही बहुत दयालु था। वह चुन मुन .आरी प्यारी को बहुत प्यार करता था।
निराली बोली- मैया मेरी लोहे की पैनी सींग बनाकर मेरी सींग में लगा दो में चपरा से बदला लूँगी ।
उसका सत्यानाश करूँगी। भैया मेरा कलेजा जल रहा है।
दयाराम ने कहा प्यारी बहन तुम बिल्कुल फिकर मत करो में अभी सब कुछ किये देता हूँ।
दयाराम ने भट्टी जलाकर और निराली के सींगों की नाप लेकर खूब पैना सींग बना उसके सींगों में उन्हें पहना दिया।
इधर भेड़िया जो बच्चों को केवल निगल कर सो गया था. घर से बाहर निकला। उसने निराली से नमस्ते किया ।
निराली ने भी हँसकर नमस्ते किया और बडी चालाकी से हंसकर टहलने लगी।
अब चपरा बेफिक्र हो गया कि किसी को मुझ पर शक नहीं है,
तभी तेजी से दौड़ती निराली ने उछलकर भेडिया चपरा के पेट में अपनी पैनी लोहे की सींग गड़ा दी।
सींग गड़ते ही भेड़िया का पेट फट गया और रक्त के फव्वारे के साथ चपरा अचेत हो जमीन पर गिर गया
और फिर हुआ चमत्कार कि चुन, मुन धुन, आरी, प्यारी दौड़कर निराली से लिपट गये और माँ का दूध पीने लगे।
प्यारी अब परम सुखी हो गयी थी अपने बच्चों को सकुशल पाकर वह उन्हें सहला
रही थी और चाट चाटकर प्यार कर रही थी।
बच्चों किसी ने सच ही कहा है जाको राखे साइया मार सके न कोय।
बच्चों बुरे काम का बुरा नतीजा होता है, अतः तुम बुरे काम से सदा बचना ।
शिक्षाप्रद व प्रेरक कहानी : चुन, मुन, धुन, आरी, प्यारी (श्रीमती मनोरम दीक्षित मण्डला)
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