शलभासन करने की विधि व फायदे | Method And Benefits Of Doing Shalabhasana – शलभासन नाभि से लेकर पैर तक शरीर के सम्पूर्ण अंगों को लचीला बनाता है।
प्रतिदिन मात्र 6 से 7 बार शलभासन करने के अनेक लाभ है। यह दो प्रकार से किया जाता है। जिसे शलभासन कि अर्द्ध-शलभासन कहते हैं। आज हम आपको शलभासन करने की विधि व फायदे बताएंगे।
शलभासन करने की विधि
- फर्श पर पेट के बल लेट जायें तथा अपने दाँये अथवा बाँये गाल को पृथ्वी पर रखें।
- दोनों हाथों को शरीर से एकदम सटाकर शरीर के दोनों तरफ पीछे की ओर फैला दें तथा मुट्ठियाँ बाँध लें।
- हाथ के अँगूठे तथा तर्जनी वाले भाग को फर्श पर रखें।
- पाँवों को एड़ियों को परस्पर सटाकर, अँगूठों को पृथ्वी पर सपाट स्थिति में रखें।
- अब खूब गहरी श्वास लेकर ‘कुम्भक’ करें तथा अपने सिर को सीधा रखते हुए ठोड़ी को फर्श पर टिका दें।
- जिस स्थान पर ठोड़ी टिकाई जाये, वहाँ पहले ही से एक तह किया हुआ तौलिया रख लेना उचित होगा।
- अब दोनों पाँवों को कड़ा करके, उन्हें एक साथ जितना ऊँचा उठा सकते हो, उठायें।
- अपने शरीर का अधिकांश भार दोनों मुट्ठियों पर रखना चाहिए।
- इस स्थिति में सम्पूर्ण ऊपरी भाग पर भारी दबाव पड़ेगा।
- पांवों को एकदम कड़ा बनाये रखें। घुटनों को तो मोड़ें और न ही झुकाएं।
इसके बाद
- कुछ सैकिण्डों तक उपर्युक्त स्थिति में रहने का प्रयत्न करें।
- श्वास को रोके हुए सम्पूर्ण शरीर को दृढ़ बनाये रहे।
- फिर साँस छोड़ते तथा समय दोनों पाँवों को एक धीरे-धीरे नीचे झुकाना आरम्भ करें।
- जब तक पाँव फर्श का स्पर्श करें, तब तक श्वास छोड़ने की क्रिया भी समाप्त हो जानी चाहिए।
- बाद में गाल को पुनः भूमि पर रखते हुए स्वाभाविक रूप मे श्वास लें ।
- सम्पूर्ण शरीर को विश्राम की स्थिति में ले आये।
- 6 से 8 सैकिण्ड तक विश्राम करने के बाद उक्त क्रिया को पुनः दुहराये।
- पहले दिन तीन बार तथा दूसरे दिन से नित्य चार से सात बार तक उक्त अभ्यास को दुहराना चाहिए।
अर्द्ध शलभासन करने की विधि
- जिन लोगों को आरम्भ में पूर्ण आसन के अभ्यास में कठिनाई का अनुभव हो उन्हें ‘अर्द्ध शलभासन’ करना चाहिए।
- इसमें तथा पूर्वोक्त आसन में अन्तर केवल इतना ही है कि इसमें एक बार में दोनों पाँवों के स्थान पर केवल एक ही पाँव को ऊंचा उठाया जाता है।
- पहले केवल दाँया पाँव उठाया जाये तो दूसरी बार बाँया पाँव ऊपर उठाना चाहिए।
- इस प्रकार बारी-बारी से एक-एक पाँव को उठाना तथा गिराना चाहिए।
- इस आसन का प्रत्येक पाँव द्वारा 3-3 बार अर्थात् कुल 6 बार अभ्यास करना चाहिए।
शलभासन करने के लाभ
- यह आसन भी मेरुदण्ड को लचीला तथा पाँव के अंगूठे से नाभि पर्यन्त शरीर के निम्न भागों को क्रियाशील बनाता है।
- यह रक्त सञ्चालन की क्रिया को तीव्र करता है।
- इसके प्रभाव से मुख, आँखें, फेफड़े, छाती, गर्दन, कन्धे तथा शरीर के ऊपरी भाग भी पुष्ट तथा क्रियाशील बनते हैं।
- इस आसन के अभ्यास से पेट के अनेक रोग दूर होते हैं तथा गुर्दे और यकृत् पुष्ट बनते हैं।
- गैस बनना, पेट में गुड़गुड़ाहट रहना, बदहज्मी, मुँह से थूक आते रहना, पेशाब का खुलकर न आना आदि शिकायतें इस अभ्यास से दूर होती हैं।
- इससे अम्लता दूर होती है, भूख बढ़ती है, मानसिक निराशा नष्ट होती है ।
- स्मरण शक्ति का विकास होता है। कटि-विकार तथा स्त्रियों के गर्भाशय सम्बंधी रोगों में भी लाभ करता है ।

विशेष-
कुछ लोग इस अभ्यास में छाती तक गर्दन को उठाकर तथा हाथों का कोण बनाकर नितम्बों पर भी रखते हैं। इस आसन के साथ ‘कुम्भक‘ भी किया जाता है।
पूर्व में हमने भुजंगासन , पदमासन, योग निद्रा करने की विधि व उसके लाभ के बारे में बताया है।
निष्कर्ष
आज आपने शलभासन करने की विधि व फायदे | Method And Benefits Of Doing Shalabhasana के बारे में जाना। योगासन को अपने जीवन का हिस्सा बनाये और निरोगी रहें।
आशा है आपको शलभासन करने की विधि व फायदे से सम्बंधित यह लेख अवश्य अच्छा लगा होगा। हमारी रिसर्च टीम के प्रयासों से हमारे लिए यह लिख पाना अम्भव हो सका है।
लेख को अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद
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