कार्तिक पूर्णिमा 2020 कथाएं व रहस्य पूजाा विधि तथाा व्रत के के उद्यापन के संबंध में उपयोगी जानकारी है ।
कार्तिक मास का अंतिम दिन 30 नवम्बर ,कार्तिक पूर्णिमा 2020; अद्भुत रहस्य भरी कथाएं हैैं ।
इसे देव दिवाली व त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। आज कार्तिक व्रती, व्रत का उद्यापन करते हैं।
बड़ी धूमधाम के साथ इसे मनाया जाता है, आइए जानते हैं कि ऐसे कौन से रहस्य हैं जो इसे महत्वपूर्ण बनाते हैं।
पहली कथा इस प्रकार है!
शास्त्रों में उल्लेख है कि आज ही के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था।
और शंखासुर का वध करके वेदों को वापस मुक्त कराया था।
शंखासुर की कथा सुने ?https://youtu.be/a2KdA2ugIKc
इस जीत की खुशी में देवताओं ने दीप जलाकर उत्सव मनाया था।
वेदों की पानी से उत्तपत्ति की कथा सुने ?https://youtu.be/EMkVcMoQg5U
तभी से कार्तिक पूर्णिमा को दीपदान कर उत्सव मनाया जाता है।
दूसरी कथा इस प्रकार है!
शास्त्रानुसार आज के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कर देवताओं को भयमुक्त किया था ।
जिसके उपलक्ष्य में देवताओं ने दीप जलाकर उत्सव मनाया था।
कथानुसार तारकासुर नामक राक्षस था ।जिसके तीन पुत्र थे। तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली।
शिवनन्दन कार्तिकेयजी ने तारकासुर का वध कर दिया जिससे तीनो असुर बहुत दुखी थे।
उन्होंने बदला लेने के लिए ब्रम्हा जी की कठिन तपस्या की व उन्हें प्रसन्न किया।
और अमरता का वरदान मांगा। किन्तु ब्रम्हाजी से दूसरा वर मांगने कहा ;
तो तीनों असुरों ने कहा कि तीन रथ बनवाये जिसमे बैठकर सारी पृथ्वी व आकाश को घूमा जा सके।
व जब एक हजार साल बाद हम तीनों मिले तो ये रथ एक हो जाएं।
और जो देवता तीनो रथ को एक ही बाण से मारने की क्षमता रखता हो वही हमारी मृत्यु का कारण बने।
तब ब्रम्हा जी ने मयदानव से तारकाक्ष का सोने ,कमलाक्ष का सोने व विद्युन्माली का लोहे का रथ तैयार करवाया।
जिसे पाकर तीनों दानव बहुत खुश हुए तथा तीनो लोकों पर अपना कब्जा जमा लिया।
जिससे भयभीत होकर इंद्रदेव शिवजी के पास गए। तब शिवजी ने उन दानवों का वध करने के लिए रथ बनाया।
जिसकी सभी चीजें देवताओं से बनी हुई थीं। रथ के दोनों पहिये सूर्य-चंद्रमा, इंद्र, वरुण, यम, कुबेर चार घोड़े बने।
हिमालय धनुष, व शेषनाग प्रत्यंचा बने स्वयं शिव बाण व बाण की नोंक अग्निदेव बने।
स्वयं शिव रथ पर सवार होकर तीनो असुरों से युद्ध करने लगे।
जैसे ही तीनो रथ एक सीध में आये शिवजी ने बाण चलाकर तीनों असुरों का वध कर दिया ।
तभी से शिव जी को त्रिपुरारी कहा जाने लगा।उस दिन कार्तिक पूर्णिमा थी अतः उसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं।
3. आज गंगास्नान का विशेष महत्व है। अतः गंगाजल से घर पर या पवित्र नदियों में स्नान अवश्य करना चाहिए।
4. आज के दिन दीपदान का अनन्त गुना फल प्राप्त होता है।
आज 365 बत्तियों को एक बड़े दीपक में एक साथ रखकर घी या तेल में जलाया जाता है।
तीस बत्तियों का दीपक तीसा भी जलाया जाता है।
आज कार्तिक व्रती राधा कृष्ण की पूजा करती हैं।
व आज के दिन तुलसी जी की विदाई की जाती है।
कार्तिक व्रत उद्यापन विधि सुनें?https://youtu.be/6nbfAKtIKT0
तथा तुलसी जी की विदाई में 31 अठवाई , श्रृंगार, की सम्पूर्ण सामग्री व वस्त्र इत्यादि समर्पित की जाती है।
6.आज के दिन एक ब्राह्मण व एक ब्राह्मणी को भोजन कराकर, दान अपनी सुविधानुसार अवश्य करना चाहिए।
आज कार्तिक व्रती निर्जल व्रत रहते है तथा विशेष रूप तुलसी जी की पूजा व विभिन्न दान इत्यादि करते हैं।
इस प्रकार इस महापुनीत पर्व कार्तिक पूर्णिमा से भगवान विष्णु के अत्यंत प्रिय मास व कार्तिक व्रत पूर्ण होते हैं।
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