उत्तानपादासन करने की विधि व फायदे | Method And Benefits Of Doing Uttanpadasana ; यह आसन मेरुदण्ड व मांसपेशियों को सुदृढ़ बनाता है। शरीर को लचीला बनाता है। पेट की चर्बी को कम करता है।
आज हम आपको उत्तानपादासन व अर्द्ध उत्तानपादासन रने की विधि व फायदे | Method And Benefits Of Doing Uttanpadasana बताएंगे। यह जानकारी बहुत महत्वपूर्ण
उत्तानपादासन करने की विधि
- उक्त आसन करने के लिए भूमि पर चित्त लेट जायें। शरीर एकदम सीधा रहे।
- दोनों हथेलियाँ भूमि का स्पर्श करती रहें एवं दोनों एड़ियाँ परस्पर सती रहें। दृष्टि छत की ओर (ऊपर) रहे।
- अब धीरे-धीरे श्वास खींचते हुए अपने फेफड़ों में पर्याप्त वायु भर लें तथा ‘कुम्भक करें।
- अर्थात् कुछ देर तक वायु को भीतर ही रोके रहें।
- जब श्वास लेना पूरा हो जाये, तब दोनों पाँवों को एक साथ, एक सीध में, धीरे-धीरे पृथ्वी से लगभग 10 इंच ऊपर उठायें ।
- उठाते समय दोनों पाँव परस्पर मिले हुए एकदम सीधे तथा तने हुए रहने चाहिए।
- यह कुम्भक’ अर्थात् श्वास को रोके रखने की स्थिति में होनी चाहिए।
- केवल 6 से 8 सैकिण्ड तक इस स्थिति में रहें।
- जब दोनों पाँव भूमि में लगभग 10 इंच ऊपर उठे रहते हैं, ब उन पर अधिक जोर पड़ता है। यदि उन्हें अधिक ऊँचा उठा लिया तो अधिक जोर नहीं पड़ता।
- अत: प्रारम्भिक अवस्था में यदि अधिक पड़ने के कारण कुछ तकलीफ का अनुभव हो तो पाँवों को और अधिक ऊँचा उठा लेना चाहिए।
- इसके बाद केवल 10 इंच तक ही ऊपर उठाये रखने का अभ्यास करना चाहिए।
पैरों को नीचे लाएं
- अब श्वास छोड़ते हुए, दोनों पाँवों को इस प्रकार एक साथ धीरे धीरे नीचे लायें ।
- जब तक आपके श्वास छोड़ने की क्रिया पूरी हो तब तक दोनों पाँव भी नीचे आ जायें।
- इस प्रकार अभ्यास का एक चक्र पूरा हो जाने पर 6 से 8 सैकिण्ड तक विश्राम करें।
- तदुपरान्त इसी प्रक्रिया को 11 बार तक दुहरायें ।
अर्द्ध-उत्तानपादासन
अर्द्ध उत्तानपादासन करने की विधि
- यदि उक्त अभ्यास के करने में रीढ़ अथवा पीठ में कष्ट का अनुभव हो तो अर्द्ध उत्तानपादासन करें।
- दोनों पाँवों को एक साथ ऊँचा उठाने की बजाय बारी-बारी से केवल एक ही पाँव को ऊंचा उठाते हुए उक्त अभ्यास करें। इसे ‘अर्द्ध-उत्तानपादासन’
- कहा जाता है। यदि पहली बार बाँया पाँव ऊपर उठाया हो तो दूसरी बार दाँया पाँव ऊपर उठाना चाहिए।
- इस प्रकार प्रत्येक पाँव द्वारा बारी बारी से 10-10 बार अभ्यास करना चाहिए।
- इससे मेरुदण्ड पर पड़ने वाला जोर घट जायेगा तथा कष्ट का अनुभव नहीं होगा।
उत्तानपादासन को करने के नियम
- प्रथम दिन के अभ्यास में उक्त अभ्यासों को केवल तीन- चार बार दुहराना ही पर्याप्त रहेगा।
- इसके बाद नित्य एक दो बार अभ्यास क्रम में वृद्धि करनी चाहिए तथा अन्त में 10 बार तक दुहराना चाहिए।
- ‘अर्द्ध उत्तानपादासन’ के अभ्यास में सफलता मिल जाने पर दोनों पाँवों को एक साथ ऊपर उठाते हुए पूर्ण ‘उत्तानपादासन का अभ्यास भी करना चाहिए।
विशेष
- इस आसन से मेरुदण्ड पर अत्यधिक जोर पड़ता है, अतः मेरुदण्ड में किसी प्रकार की पीड़ा अथवा आघातादि का कष्ट हो तो ‘पूर्ण उत्तानपादासन’ नहीं करना चाहिए।
- ऐसी स्थिति में यदि सम्भव हो सके तो ‘अर्द्ध-उत्तानपादासन’ किया जा सकता है और इसी से पर्याप्त लाभ हो सकता है।
उत्तानपादासन करने के लाभ-
- इस आसन से मेरुदण्ड (रीढ़ की हड्डी) सशक्त होता है। तथा आन्तरिक कोशिकाएं पुष्ट होती है।
- यह सम्पूर्ण स्नायु तन्त्र को क्रियाशील बनाकर, पेट तथा उसके समीपस्थ भाग के भार को सन्तुलित करता है एवं भीतर की अनेक गड़बड़ियों को मिटाता है।
- इससे अपच, कोष्ठबद्धता, स्नायु विकार, पीठ का दर्द एवं पीठ की अन्य गड़बड़ियाँ दूर होती है।
- तथा आमाशय को जलन मिटता है।
- खाना खाने के बाद खट्टी मीठी डकार आना, वमन होना, भोजन का हजम न होना, पेट में गैस बनना,
- नया रक्त न बनना, पाँवों का सो जाना तथा टाँगों का झन्नाटा आदि शिकायतें भी इस आसन के अभ्यास से दूर हो जाती हैं ।
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निष्कर्ष
आशा है आपको उत्तानपादासन करने की विधि व फायदे | Method And Benefits Of Doing Uttanpadasana सम्बन्धी यह जानकारी अवश्य अच्छी लगी होगी।
स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ नहीं है। योगासन को अपनाएं व स्वस्थ व निरोगी हो जाएं।
लेख को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद
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