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श्रीनारायण कवच (हिंदी में)

श्रीनारायण कवच (हिंदी में) का उपदेश विश्वरूप जी ने देवराज इंद्र को दिया था। जिसे प्राप्त कर इंद्र ने रणभूमि में असुरों को जीत लिया और त्रैलोक्य लक्ष्मी का उपभोग करने लगे।

जो भी मनुष्य इस नारायण कवच को समय पर सुनता है, और आदरपूर्वक इसे धारण करता है।। उसके सामने सभी प्राणी आदर से झुक जाते हैं। और वह सब प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है।

अपने पाठकों की सुविधा के लिए इसे हिंदी में प्रस्तुत कर रहें हैं। अतः अधिक से अधिक इसका लाभ उठा सकें।

अथ श्री नारायण कवचम

  • जब देवताओं ने विश्वरूप को पुरोहित बना लिया तब विश्वरूप ने कहा;
  • देवराज इंद्र भय का अवसर उपस्थित होने पर नारायण कवच धारण करके अपने शरीर की रक्षा कर लेनी चाहिए।
  • उसकी विधि यह है कि पहले हाथ पैर धो कर आचमन करें।
  • फिर हाथ में कुश की पवित्री धारण करके उत्तर मुंह बैठ जाए।
  • इसके बाद कवच धारण पर्यंत और कुछ ना बोलने का निश्चय करे।

अंगन्यास व करन्यास

  • पवित्रता से ॐ नमो नारायणाय और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इन मंत्रों के द्वारा हृदयादी अंगन्यास
  • तथा अंगूठादी करण्यास करें। पहले ॐ नमो नारायणाय इस अष्टाक्षर मंत्र की ॐ आदि 8 अक्षरों का
  • क्रमशः पैरों घुटनों जांघों पर ह्रदय वक्षस्थल मुख और सिर में न्यास करें।
  • अर्थात पूर्व उक्त मंत्र के मकार से लेकर ओंकार पर्यंत 8 अक्षरों का सिर से आरंभ करें ।
  • उन्हें आठ अंगों में विपरित क्रम से न्यास करें।
  • तदनंतर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस द्वादश अक्षर मंत्र के ॐ आदि 12 अक्षरों का,
  • दायीं तर्जनी से बाई तर्जनी तक दोनों हाथ की 8 अंगुलियों और दोनों अंगूठियों की दो अंगुलियों में न्यास करें।
  • फिर ॐ विष्णवे नमः इस मंत्र के पहले अक्षर ॐ का ह्रदय में,
  • वि का ब्रह्मरंध्र में, ष का भौंहों के बीच में, ण का चोटी में, वे का दोनों नेत्रों में,
  • और न का शरीर की सब गाँठों में न्यास करें। तदनंतर “ॐ म: अस्त्राय फट” कह कर दिग्बन्ध करें।
  • इस प्रकार न्यास करने से इस विधि को जानने वाला पुरुष मंत्र स्वरूप हो जाता है।

इष्टदेव का ध्यान करें।

  • इसके बाद समग्र ऐश्वर्य धर्म यश्लक्ष्मी ज्ञान और वैराग्य से परिपूर्ण इष्टदेव भगवान का ध्यान करें ।
  • और अपने को भी तदरूप ही चिंतन करें। तत्पश्चात विद्या तेज और तप:स्वरूप इस कवच का पाठ करें।

अथ कवचम!

भगवान श्रीहरि गरुणजी की पीठ पर अपने चरण कमल रखे हुए हैं।अणिमादी आठों सिद्धियां उनकी सेवा कर रही हैं।

8 हाथों में शंख चक्र ढाल तलवार गधा बाण धनुष और पाश धारण किए हुए हैं।

वे ही ओंकार स्वरूप प्रभु सब प्रकार से, सब ओर से मेरी रक्षा करें।

मत्स्य मूर्ति भगवान जल के भीतर जल जंतुओं से और वरुण के पास से मेरी रक्षा करें ।

माया से ब्रह्मचारी का रूप धारण करने वाले वामन भगवान स्थल पर

और विश्वरूप श्रीत्रिविक्रम भगवान आकाश में मेरी रक्षा करें।

भगवान के स्वरूप का ध्यान करें।

जिनके घोर अट्टहास से सब दिशाएं गूंज उठी थी और गर्भवती दैत्य पत्नियों के गर्भ गिर गए थे ।

वे दैत्य यूथ पतियों के शत्रु भगवान नरसिंह किले, जंगल, रणभूमि आदि विकट स्थानों में मेरी रक्षा करें।

अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण करने वाले यज्ञ मूर्ति वराह भगवान मार्ग में, परशुराम जी पर्वतों के शिखरों पर,

और लक्ष्मण जी के सहित भरत के बड़े भाई भगवान रामचंद्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें।

भगवान नारायण मारण मोहन आदि भयंकर अभिचारों और सब प्रकार के प्रमादों से मेरी रक्षा करें।

ऋषिश्रेष्ठ नर गर्व से, योगेश्वरभगवान दत्तात्रेय योग के विघ्नों से त्रिगुणाधिपति भगवानकपिल कर्मबंधनों से मेरी रक्षा करें।

ब्रह्मर्षि सनतकुमार कामदेव से, हयग्रीव भगवान मार्ग में चलते समय देवमूर्तियों को नमस्कार न करने के अपराध से,

देव ऋषि नारद सेवापराधों से भगवान कच्छप सब प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें।

भगवान धन्वंतरी कुपथ्य से, जितेंद्रिय भगवान ऋषभदेव सुख-दुख आदि भयदायक द्वंदों से,

यज्ञ भगवान लोकापवाद से, बलराम जी मनुष्य कृत कष्टों से,

और श्रीशेषजी क्रोध वश नामक सर्पों के गण से मेरी रक्षा करें।

भगवान श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास जी अज्ञान से तथा बुद्धदेव पाखंडीयों से और प्रमाद से मेरी रक्षा करें।

धर्म रक्षा के लिए महान अवतार धारण करने वाले भगवान कल्कि पापबहुल कलिकाल के दोषों से मेरी रक्षा करें।

भगवान के आयुधों का ध्यान करें।

प्रातः काल भगवान केशव अपनी गदा लेकर कुछ दिन चढ़ाने पर भगवान गोविंद अपनी बांसुरी लेकर,

दोपहर के पहले भगवान नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर और दोपहर को भगवान विष्णु चक्रराज सुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें।

तीसरे पहर में भगवान मधुसूदन अपना प्रचंड धनुष लेकर मेरी रक्षा करें।

सायं काल में ब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव, सूर्यास्त के बाद हृषिकेश,

अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्धरात्रि के समय अकेले भगवान पद्मनाभ मेरी रक्षा करें।

रात्रि के पिछले पहर में श्रीवत्सलांछन श्रीहरि, उषाकाल में खड्गधारी भगवान जनार्दन,

सूर्योदय से पूर्व श्री दामोदर और संपूर्ण संध्या में काल मूर्ति भगवान विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें।

सुदर्शन आप का आकार चक्र ( रथ के पहिए) की तरह है।

आप के किनारे का भाग प्रलय कालीन अग्नि के समान अत्यंत तीव्र है।

आप भगवान की प्रेरणा से सब ओर घूमते रहते हैं।

जैसे आग वायु की सहायता से सूखी घास फूस को जला डालती है ,

वैसे ही आप हमारी शत्रु सेना को शीघ्र से शीघ्र जला दीजिए, जला दीजिए।

कौमोद की गदा आप से छूटने वाली चिंगारियों का स्पर्श वज्र के समान असह्य है।

शत्रुनाश हेतु प्रार्थना

आप भगवान अजीत की प्रिया हैं। मैं उनका सेवक हूं। अतः आप कुष्मांड-विनायक यक्ष-राक्षस भूत-प्रेत आदि ग्रहों को,

अभी कुचल डालिए। कुचल डालिए । तथा मेरे शत्रुओं को चूर चूर कर दीजिए।

शंख श्रेष्ठ आप भगवान श्री कृष्ण के फूटने से भयंकर शब्द करके मेरे शत्रुओं का दिल दहला दीजिए।

एवं यातुधान, प्रमथ, प्रेत, मातृका, पिशाच तथा ब्रह्मराक्षस आदि भयावने प्राणियों को यहां से झटपट भगा दीजिए।

भगवान की प्यारी तलवार आप की धार बहुत ही तीक्ष्ण है।

आप भगवान की प्रेरणा से मेरे शत्रुओं को छिन्न-भिन्न कर दीजिए।

भगवान की प्यारी ढाल आप में सैकड़ों चंद्राकार मंडल हैं।आप पापदृष्टि पापात्मा शत्रुओं की आंखें बंद कर दीजिए।

और उन्हें सदा के लिए अंधा बना दीजिए।सूर्य आदि ग्रह, धूमकेतु (पुच्छलतारे) आदि केतू, दुष्ट मनुष्य,

सर्प आदिरेंगने वाले जंतु, दाढ़ों वाले हिंसक पशु, भूत-प्रेत आदि तथा पापी प्राणियों से हमें जो जो भय हो ,

जो हमारे मंगल के विरोधी हैं । वे सभी भगवान के नाम रूप तथा आयुधों का कीर्तन करने से तत्काल नष्ट हो जाए।

बृहद रथन्तर आदि सामवेद स्त्रोतों से जिनकी स्तुति की जाती है ।

वह वेद मूर्ति भगवान गरुड़ और विश्वकसेनजी अपने नाम उच्चारण के प्रभाव से हमें सब प्रकार की विपत्तियों से बचाएं।

प्रार्थना करें।

श्री हरि के नाम रूप वाहन आयुध और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि इंद्रिय मन और प्राण को ,

सब प्रकार की आपत्तियों से बचाएं। जितना भी कार्य अथवा कारण रुप जगत है वास्तव में भगवान ही है। इस सत्य के प्रभाव से हमारे सारे उपद्रव नष्ट हो जाएं।

जो लोग ब्रह्मा और आत्मा की एकता का अनुभव कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में भगवान का स्वरूप समस्त विकल्पों भेदों से रहित है।

फिर भी वे अपनी माया शक्ति के द्वारा भूषण आयुध और रूप नामक शक्तियों को धारण करते हैं।

यह बात निश्चित रूप से सत्य है। सर्वज्ञ सर्वव्यापक भगवान श्रीहरि सदा सर्वत्र सब स्वरूप से हमारी रक्षा करें।

जो अपने भयंकर अट्टहास से सब लोगों के भय को भगा देते हैं और अपने तेज से सबका तेज ग्रस लेते हैं।

वे भगवान नरसिंह दिशा विदिशा में नीचे ऊपर बाहर भीतर सब और हमारी रक्षा करें।

( श्री नारायण कवच (हिंदी )

श्री नारायण कवच

https://youtu.be/3S8oXC7p0p0

नारायण कवच का महत्व

  • श्रीनारायण कवच (हिंदी में) को धारण करने वाला पुरुष जिसे भी अपने नेत्रों से देख लेता है।
  • अथवा पैर से छू लेता है वह तत्काल समस्त भयों से मुक्त हो जाता है।
  • जो इस वैष्णवी विद्या को धारण कर लेता है ,
  • उसे राजा डाकू प्रेत पिशाच आदि और बाघ आदि हिंसक जीवों से कभी किसी प्रकार का भय नहीं होता।

श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध

श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध, भाग-4

नारायण कवच का प्रभाव

  • देवराज प्राचीन काल की बात है एक कौशिक गोत्र ब्राह्मण था। उसने इस विद्या को धारण करके योग धारणा से अपना शरीर मरू भूमि त्याग दिया।
  • जहां उस ब्राह्मण का शरीर पड़ा था। उसके ऊपर से 1 दिन गंधर्व राज चित्ररथ अपनी स्त्रियों के साथ विमान पर बैठकर निकले।
  • वहां आते ही वे नीचे की ओर सिर किए विमान सहित आकाश से पृथ्वी पर गिर पड़े।
  • इस घटना से उनके आश्चर्य की सीमा न रही। जब उन्हें बालखिल्य मुनियों ने बताया कि यह श्रीनारायण कवच (हिंदी में) धारण करने का प्रभाव है।
  • तब उन्होंने उस ब्राह्मण देवता की हड्डियों को ले जाकर पूर्व वाहिनी सरस्वती नदी में प्रवाहित कर दिया ।
  • और फिर स्नान करके अपने लोक को चले गए। शुकदेव जी कहते हैं।
  • परीक्षित जो पुरुष इस नारायण कवच को समय पर सुनता है ।और जो आदर पूर्वक इसे धारण करता है ।
  • उसके सामने सभी प्राणी आदर से झुक जाते हैं। और वह सब प्रकार की भयों से मुक्त हो जाता है।
  • अतः श्रीनारायण कवच (हिंदी में) स्वयं नित्य पढें व अपने परिवार व मित्रों को भी अवश्य पढ़ावें।

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